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श्रीमद्भगवद्गीता: पहला अध्याय, श्लोक 1: जानें धृतराष्ट्र की संजय से हुई बात आपके लिए कैसे काम आ सकती है

By रोहित कुमार पोरवाल | Updated: October 17, 2019 16:42 IST

अध्याय की शुरुआत कुरुवंश के राजा धृतराष्ट्र की संजय से बातचीत से होती है...

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श्रीमद्भगवद्गीता का पहले अध्याय का नाम 'कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण' है। अध्याय की शुरुआत कुरुवंश के राजा धृतराष्ट्र की संजय से बातचीत से होती है। संजय महर्षि व्यास का शिष्य माना जाता है और महाभारत के युद्ध के वक्त वह धृतराष्ट के सचिव की भूमिका में था। धृतराष्ट अंधा है और संजय के पास युद्ध का सीधा प्रसारण देखने की सुविधा और क्षमता होती है तो राजा उससे कहता है- 

धृतराष्ट्र उवाच- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय।।

श्लोक का अर्थ: धृतराष्ट्र ने कहा- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या कहा?

गीता के पहले अध्याय के पहले श्लोक के अर्थ को आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है-

धृतराष्ट्र ने कहा धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे.. इसका मतलब है कि धृतराष्ट्र को पता था कि कुरुवंश स्वामित्व वाली भूमि यानी कुरुक्षेत्र में स्वयं भगवान उसके भाई महाराज पांडू की संतानों की तरफ हैं, इसलिए उसने से धर्मक्षेत्रे यानी धर्म का क्षेत्र कहा।

धृतराष्ट्र के मुंह से निकले पहले शब्द से ही यह स्पष्ट है कि युद्ध धर्म के लिए लड़ा जा रहा है और जिसमें अधर्मी मारे जाएंगे, चूंकि उसके ज्ञान पर पुत्र मोह के कारण अहंकार का पर्दा पड़ा है इसलिए वह अपने भतीजों को कुछ भी अधिकार नहीं देना चाहता है। वह आशंकित है इसलिए संजय से पूछता है कि धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या कहा? 

एक ही वंश की संतानें होने पर भी धृतराष्ट्र अपने भतीजों को उनके पिता के नाम के साथ बुलाता है। वह कहता है कि अपने कथन में पांडवा कहता है, इसका मतलब है कि वह यह तय कर चुका है कि उसके भतीजे उससे अलग हैं उन्हें कोई अधिकार नहीं देना है। इससे समझा जा सकता है कि वह पांडवों के अधिकार को हड़पना चाहता है।

कुल मिलाकर पहले श्लोक से धृतराष्ट्र के आशंकित होने की बात सामने आती है। आशंका जीवन में कैसी भी हो.. दूसरे अर्थों में डर, या भय के कारण होती है। इंसान की कमजोरी को दर्शाती है। इसलिए पहले श्लोक से हम और आप यह सीख सकते हैं कि जो जीवन में कुछ करना है तो आशंका को घर न करने दें। अपनी जानकारी बढ़ाएं और अपने आप को मजबूत करें। ऐसा तब होगा जब आप सच के साथ पूरी सच्चाई से डटे रहेंगे और अपने आप को तैयार करेंगे। 

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