नागचंद्रेश्वर मंदिरः नागपंचमी के दिन यहां नागराज तक्षक रहते हैं मौजूद, साल में सिर्फ एक दिन होता है दर्शन

By गुणातीत ओझा | Published: July 24, 2020 01:31 PM2020-07-24T13:31:07+5:302020-07-25T12:59:48+5:30

उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नाग पंचमी के दिन ही खुलता है। आइये आपको बताते हैं इस मंदिर के बारे में सबकुछ..

nag panchami 2020 know all about nagchandreshwar temple ujjain | नागचंद्रेश्वर मंदिरः नागपंचमी के दिन यहां नागराज तक्षक रहते हैं मौजूद, साल में सिर्फ एक दिन होता है दर्शन

साल में सिर्फ नागपंचमी पर्व पर एक दिन के लिए खोला जाता है यह मंदिर।

Highlightsउज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।नागचंद्रेश्वर मंदिर में  11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है , इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं।

Nagchandreshwar Temple Ujjain: हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्तिथ है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शन के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में मौजूद रहते हैं।

नागचंद्रेश्वर मंदिर में  11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

पौराणिक मान्यता (Nagchandreshwar Temple ka itihas)

सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया।

यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।

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