कुंभ 2019: सब कुछ छोड़कर नागा साधु बन रहे डॉक्टर, इंजिनियर, जानें क्या है कारण

By गुलनीत कौर | Published: February 4, 2019 06:32 PM2019-02-04T18:32:00+5:302019-02-04T18:32:00+5:30

नागा साधुओं को भगवान शिव के सच्चे भक्त के रूप में संबोधित किया जाता है। ये साधु कुंभ मेले के दौरान भारी संख्या में दिखते हैं। कड़ाके की ठंड में ये साधु निर्वस्त्र घूमते हैं।

Kumbh 2019: Doctors, engineers becoming Naga Sadhu in kumbh mela | कुंभ 2019: सब कुछ छोड़कर नागा साधु बन रहे डॉक्टर, इंजिनियर, जानें क्या है कारण

कुंभ 2019: सब कुछ छोड़कर नागा साधु बन रहे डॉक्टर, इंजिनियर, जानें क्या है कारण

हिन्दू धर्म का धार्मिक महाउत्सव कुंभ सभी हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में श्रद्धालुओं का बड़ा जमावड़ा लगता है। लेकिन भक्तों से भी पहले मेले में आने वाले नागा साधु इस उत्सव की शान होते हैं। लोग इनके पास आते हैं, इनके दर्शन करते हैं और अपनी मानवीय समस्याओं का समाधान पाते हैं। 

नागा साधु कठोर तप से बने हुए साधु होते हैं। जो लोग नागा साधुओं के बारे में विशेष जानकारी नहीं रखते उन्हें लगता है कि ये आम मनुष्यों से अलग होते हैं। ये हमारे जैसे नहीं होते। मान्यतानुसार नागा साधु अपने कठोर तप से ये लोग ईश्वरीय कृपा पा लेते हैं। इसलिए इन्हें अन्य मनुष्यों की तरह आम नहीं कहा जा सकता। किन्तु ये हमारे बीच से ही निकलकर साधु बने हैं, यह सबसे बड़ा सत्य है।

कौन हैं ये नागा साधु?

नागा साधुओं को भगवान शिव के सच्चे भक्त के रूप में संबोधित किया जाता है। ये साधु कुंभ मेले के दौरान भारी संख्या में दिखते हैं। कड़ाके की ठंड में ये साधु निर्वस्त्र घूमते हैं। शरीर पर केवल भस्म लगाते हैं और शिव के नाम का रुद्राक्ष धारण कर शिव उपासना में लीन रहते हैं।

कुंभ में डॉक्टर, इंजिनियर बनते हैं नागा साधु

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक हर साल हजारों की संख्या में नौजवान डॉक्टर, इंजिनियर, प्रोफेशनल कुंभ में नागा साधु बनने के लिए आते हैं। इसके अलावा ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे या हाल फिलहाल में 12वीं पास किए बच्चे भी कुंभ में नागा साधु बनने की परीक्षा देने के लिए आते हैं।

ये लोग कुंभ में आते हैं। नागा अखाड़ों के पास अपना नाम दर्ज कराते हैं। इन अखाड़ों से अनुमति मिलने के बाद ये सबसे पहले अपने सिर के बाल मुंडवाकर खुद का ही श्राद्ध (पिंड दान) करते हैं। इस तरह से इनकी नागा साधु बनने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। 

सभी धर्म-जाति के लोग

आपको जानकर हिरानी होगी कि वैराग्य पाने की इस चाह में केवल हिन्दू ही नहीं, ईसाई और मुसलमान भी शामिल होते हैं। ये लोग सिर्फ और सिर्फ इस बनावटी दुनिया से अलग होना चाहते हैं। इसलिए ये किस धर्म, जाति या समुदाय से हैं, इस बात का इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। ना ही नागा खादों की ओर से इस बात पर कोई रोक लगाई जाती है।

कैसे बनते हैं नागा साधु?

कहते हैं कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया भारतीय सेना के जवान बनने की प्रक्रिया से भी कठिन होती है। नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले व्यक्ति को अपना घर, परिवार हमेशा के लिए भूलना पड़ता है। नागा अखाड़े के साथ रहना पड़ता है। अखाड़े में दाखिल होने के बाद सबसे पहले व्यक्ति को ज़िंदा होते हुए भी अपना श्राद्ध करना होता है। वह खुद अपने हाथों अपना पिंडदान करता है। पूर्ण ब्रहाम्चर्या का पालन करता है। 12 वर्षों तक जप, तप करता है।

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पहले तीन साल संतों की सेवा

पिंडदान करने के पश्चात व्यक्ति का असली परीक्षा प्रारंभ होती है। इस दौरान उसे आने वाले तीन सालों तक अखाड़े के गुरुओं की सेवा करनी होती है। इसमें यदि वह सफल हो जाए तो इसके बाद अखाड़े द्वारा सन्यासी से महापुरुष बनाने की दीक्षा प्रदान की जाती है। इसमें वह महामंत्रों का निरंतर जप करता है। सिर्फ एक लंगोट पहनकर जप, तप एवं भ्रमण करता है। इन सबके बाद ही उसे अखाड़े में श्रीदिगंबर साधु होने का पड़ हासिल होता है।

कुंभ मेले में नागा साधु

कुंभ मेले में नागा साधु अखाड़ों के बीच रहते हैं। संत समाज में कुल 13 अखाड़े होते हैं जिनमें से 7 नागाओं के होते हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं - जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा। ये सातों अखाड़े नागा बनाते हैं। लाखों की संख्या में इन अखाड़ों में नागा साधु आते हैं, किन्तु मेला समाप्त होते ही ये साधु नाजाने कहाँ चले जाते हैं। इनमें से अधिकतर साधु पहाड़ों पर रहते हैं। वहां भी ये साधु निर्वस्त्र ही घूमते हैं।

पेट भरने के लिए मांगते हैं भीक्षा

नागा नियमों के अनुसार इन साधुओं को अपना पेट भरने के लिए दिन में कुल 7 घरों से भीक्षा (भीख) मांगनी होती है। यदि इन्हें सातों घरों से कुछ ना मिले तो भूखे ही सो जाते हैं। पेट भरने के लिए कोई काम नहीं कर सकते हैं। केवल भीख एवं दक्षिणा से ही अपना पेट भर सकते हैं। 

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