सावन के महीने का इंतजार शिवभक्तों को बेसब्री से रहता है। सावन का महीना आते ही भक्त साधना में रम जाते हैं। सावन के हर सोमवार पर व्रत रख भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। सावन मास को सर्वोत्तम महीना कहा जाता है। यह महीना भगवान भोलेनाथ को बहुत ही प्रिय होता है। आइये आपको बताते हैं वो बातें जो इस महीने को इतना खास बना देती है।
कहा जाता है किमृकंड ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की। लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा।
विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
कहा जाता है सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए भी भगवान शिव को सृष्टि चलाने के लिए इस महीने में धरती पर आना पड़ता है। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।