8 जून से शुरू होगी कैलाश मानसरोवर यात्रा, जानें रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, किराया, यात्रा से जुड़ी 10 खास बातें
By गुलनीत कौर | Published: April 10, 2019 11:19 AM2019-04-10T11:19:33+5:302019-04-10T11:19:33+5:30
हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव विराजते हैं और इसी परवत के चरणों से बहने वाली झील का नाम मानसरोवर है। कहते हैं कि इस झील पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत संगम होता है। लोगों ने यहां 'ॐ" की पवित्र ध्वनि का भी एहसास कई बार किया है।
भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध शिव धामों में से एक कैलाश मानसरोवर की यात्रा 8 जून से शुरू हो रही है। यह यात्रा 8 जून से 8 सितंबर तक चलेगी। यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का पंजीकरण मंगलवार से प्रारंभ कर दिया गया है जिसकी आख़िरी तारीख 9 मई है। सूचना के अनुसार इस यात्रा के लिए 18 से 70 वर्ष की आयु के बीच के लोग ही पंजीकरण करा सकते हैं। यह यात्रा मंत्रालय द्वारा दो मार्गों से होकर गुजरेगी।
कैलाश मानसरोवर यात्रा किराया
मंत्रालय द्वारा यात्रा के लिए गठित किया गया पहला मार्ग लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरेगा। इस मार्ग से यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए यात्रा का कुल किराया 1.8 लाख रूपये प्रति व्यक्ति बताया गया है। इस रूट पर 60-60 लोगों के कुल 18 जत्थे जाएंगे। प्रत्येक जत्थे को 24 दिनों में अपनी यात्रा पूर्ण करनी है। यात्रा के दौरान हर व्यक्ति की सभी सुख सुविधाओं के साथ दिल्ली में तीन दिन रुकने की सुविधा भी दी जा रही है।
दूसरा मार्ग नाथूला दर्रे से होकर गुजरेगा। इस मार्ग पर यात्रयों को मोटर वाहन की सुविधा भी दी जाएगी। इस मार्ग से यात्रा कर रहे श्रद्धालुओं को 21 दिन का समय दिया जा रहा है। मंत्रालय की राय में यह मार्ग वरिष्ट नागरिकों के लिए अधिक सुव्दिहाजनक होगा। इस रूट का कुल किराया 2.5 लाख रूपये प्रति व्यक्ति बताया जा रहा है। इस मार्ग पर 50 जत्थे जाएंगे।
मंत्रालय द्वारा यात्रियों को अपनी पसंद का मार्ग चुनने की सुविधा भी दी जा रही है। श्रद्धालु चाहें तो उपरोक्त बताए गए दोनों मार्गों में से अपने लिए कोई भी मार्ग चुन सकते हैं। इतना ही नहीं, श्रद्धालु अपने लिए दोनों मार्ग भी चुन सकते हैं। किन्तु मार्ग चुनने के लिए कंप्यूटर से ड्रा के जरिए उन्हें मार्ग और जत्था आवंटित किया जाएगा।
क्यों जाएं कैलाश मानसरोवर?
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान शिव स्वयं कैलाश पर्वत पर अपने परिवार सहित निवास करते हैं। इसी विशाल पर्वत के निकट स्थित मानसरोवर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां की हवाओं में भगवान शिव की उपस्थिति का एहसास होता है। कैलाश पर्वत और मानसरोवर दोनों ही हिन्दू धर्म के तीर्थ स्थल हैं, जहां की यात्रा करना समस्त संसार के तीर्थ स्थलों की यात्रा करने के बराबर माना जाता है। आइए जानते हैं कैलाश मानसरोवर से जुड़े कुछ अनजाने तथ्य और इस यात्रा से जुड़ी कुछ खास बातें:
1. कैलाश मानसरोवर संस्कृत के दो शब्दों को मिलाकर बना है - मानस और सरोवर, अर्थात् मन का सरोवर। इस सरोवर के ठीक पास में 'रकसताल' नाम का सरोवर है। इन्हीं दो सरोवरों की उत्तरी दिशा में स्थित है विशाल कैलाश पर्वत।
2. यह विशाल पर्वत समुद्र की सतह से तकरीबन 22 हजार फुट ऊंचा है। इसी पर्वत की सतह पर कैलाश मानसरोवर झील है जो इसकी धार्मिक महत्ता को दर्शाता है।
3. कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील, दोनों के साथ ही चार धर्म जुड़े हैं - तिब्बती बौद्ध, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, हिन्दू धर्म। तिब्बती मानते हैं कि कैलाश पर्वत पर एक तिब्बती संत ने वर्षं तपस्या की थी। पर्वत पर बनने वाला स्वास्तिक का निशान डेमचौक और दोरजे फांगमो का निवास स्थान है।
4. वहीं बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान बुद्ध तथा मणिपद्मा का निवास है। जैनियों के मतानुसार यह पर्वत आदिनाथ ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है। हिन्दू धर्म के अनुसार कैलाश ब्रह्माण्ड की धुरी है और यह भगवान शिव का निवास स्थान है।
5. इन चार धर्मों के अलावा सिख धर्म के लोग भी यह मानते हैं कि उनके संस्थापक गुरु नानक ने यहाँ कुछ दिन रूककर तपस्या की थी। इसलिए उनके लिए भी कैलाश और मानसरोवर, दोनों पवित्र स्थल हैं।
6. कहते हैं कि कैलाश पर्वत की सतह यानी मानसरोवर झील पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत संगम होता है। लोगों ने यहां 'ॐ" की पवित्र ध्वनि का भी एहसास कई बार किया है।
7. हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव विराजते हैं और वाही अपनी जटाओं से धरती पर गंगा की धारा को प्रवाहित करते हैं।
8. हिन्दू पुराणों में ही मानसरोवर झील का जिक्र भी मिलता है जिसके अनुसार यह वही झील है जिसे धार्मिक ग्रंथों में 'क्षीर सागर' के नाम से जाना जाता है। इसी क्षीर सागर का मंथन कर देवताओं ने मूल्यवान वस्तुओं और 'अमृत' को पाया था। इसी क्षीर सागर को भगवान विष्णु का अस्थाई निवास भी माना जाता है। पुराणों के अनुसार हिंद महासागर उनका स्थाई निवास है।
9. मान्यता अनुसार महाराज मान्धाता ने सबसे पहले मानसरोवर झील की खोज की थी। उन्होंने इस झील के किनारे बैठ कई वर्षों तक तपस्या भी की थी।
10. बौद्ध धर्म के अनुयायी यह मानते हैं कि इस झील के बीचोबीच एक रहस्यमयी वृक्ष है, जिसके फलों में चमत्कारी औषधीय गुण हैं। इन फलों का सेवन कर बड़ी से बड़ी बीमारी का नाश हो जाता है।