आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा है और इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु आरती करने का विशेष महत्व है। गुरु आरती में आपके हृदय में उठ रहे भाव निखर कर सामने आते हैं। आइये आपको बताते हैं गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की आरती...
सद्गुरु की आरती
ॐ ये देवासो दिव्येकादशस्थ पृथिव्या मध्येकादश स्थ।
अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम्॥
ॐ अग्निर्देवता व्वातो देवता सूर्य्यो देवता चंद्रमा देवता।
व्वसवो देवता रुद्द्रा देवता ऽऽदित्या देवता मरुतो देवता।व्विश्वेदेवा देवता बृहस्पति द्देवतेन्द्रो देवता व्वरुणो देवता।कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि॥