सिखों के आठवें गुरु श्री गुरु हरकिशन साहिब की आज 363वीं जयंती मनाई जा रही है। सबसे छोटी उम्र में सिखों के गुरु बनाये गये गुरु हरकिशन का जन्म 1656 में कीरतपुर (पंजाब) में हुआ था। हरकिशनजी को जब सिख धर्म की गुरु की गद्दी सौंपी गई तो उनकी उम्र महज 5 साल की थी। उन्हें उनके पिता पिता गुरु हरिराय जी (सिखों के 7वें गुरु) की मृत्यु के बाद 20 अक्टूबर, 1661 को ये जिम्मेदारी सौंप दी गई थी।
गुरु हरकिशन जी का जन्म गुरु हरिराय और माता कृष्णा जी (सुलाखना जी) के यहां हुआ। उस समय दिल्ली में औरंगजेब का शासन था। गुरु हरकिशन जी के पिता, गुरु हरिराय जी के दो पुत्र थे- राम राय और हरकिशन। हालांकि, गुरु हरिराय जी ने राम राय को पहले ही सिख धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन करने के कारण बेदखल कर दिया था। हरिराय जी की मृत्यु के बाद सिख धर्म की बागडोर उनके छोटे बेटे हरकिशन जी को सौंपी गई।
गुरु हरिराय जी ने अपनी मृत्यु से पहले गुरु हरकिशन को औरंगजेब से नहीं मिलने की सलाह दी। हालांकि, बाद में औरंगजेब के बहुत बुलावे के बाद हरकिशन जी उससे मिलने के लिए राजी हो गये और दिल्ली की ओर बढ़ चले। दिल्ली में वे राजा जय सिंह के महल पहुंचे। सिख इतिहास के अनुसार यही वह महल है जिसे आज 'गुरुद्वारा बंगला साहिब' के नाम से जाना जाता है। गुरुजी जब दिल्ली में थे उस समय यहां चेचक की महामारी फैली हुई थी।
इसे देख वे भी लोगों की सेवा में लग गये और अंत में उन्हें भी इस महामारी ने अपनी चपेट में ले लिया। बहुत कम उम्र में 1664 में हरकिशन जी दुनिया को छोड़ गये। कहते हैं कि निधन के समय उनके मुख से 'बाबा बकाले' शब्द निकले। सिख धर्म से जुड़े लोगों ने इसका मतलब निकाला कि अगले सिख गुरु बकाला से आएंगे। कई महीनों की खोज के बाद अगस्त-1664 में बकाला गांव से गुरु तेग बहादुर जी को नौवें गुरु के तौर पर मान्यता दी गई।
कहते हैं कि अपने आखिरी क्षणों में सिखों के आठवें गुरु हरकिशन जी ने किसी को दुख नहीं मनाने के निर्देश दिये थे। हरकिशनजी सबसे कम समय 2 साल, 5 महीने और 24 दिन सिखों के गुरु पद पर रहे। दिल्ली में स्थित बंग्ला साहिब गुरुद्वारा इन्हें ही समर्पित है।