गुड़ी पड़वा 2018 : जानें कब है गुड़ी पड़वा का पर्व, शुभ मुहूर्त व पूजा-विधि
By धीरज पाल | Published: March 16, 2018 02:29 PM2018-03-16T14:29:08+5:302018-03-16T15:08:57+5:30
गुड़ी पड़वा के दिन पारंपरिक तौर से मराठी महिलाएं 9 गज की साड़ी व पुरुष पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा पहनते हैं।
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक इस वक्त चैत्र का महीना चल रहा है। इस बार गुड़ी पड़वा 18 मार्च को पड़ रहा है। यह त्योहार मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा का त्यौहार नववर्ष या नव-सवंत्सर के आरंभ की खुशी में मनाया जाता है। पंचाग के मुताबिक प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नए साल की शुरुआत होती है। 18 मार्च से ही नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। हिंदू धर्म में गुड़ी पड़वा का त्योहार काफी महत्व होता है। इस दिन घरों में अलग उत्सव देखने को मिलता है। पारंपरिक तरीके से इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई कर घरों के सामने गुड़ी को सजाकर लटकाया जाता है।
गुड़ी पड़वा का त्योहार अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो के नाम से मनाते हैं। वहीं कर्नाटक में गुडी पड़वा को युगाड़ी पर्व के नाम से जानते हैं। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे उगाड़ी नाम से जानते हैं। बता दें कि अधिक मास होने के बावजूद प्रतिपदा के दिन ही नव संवत्सर आरंभ होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक मास भी मुख्य महीने का ही अंग माना जाता है। इसलिए मुख्य चैत्र के अतिरिक्त अधिक मास को भी नव सम्वत्सर का हिस्सा मानते हैं।
गुड़ी पड़वा का मुहूर्त
1. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर आरंभ होता है।
2. यदि प्रतिपदा दो दिन सूर्योदय के समय पड़ रही हो तो पहले दिन ही गुड़ी पड़वा मनाते हैं।
3. यदि सूर्योदय के समय किसी भी दिन प्रतिपदा न हो, तो तो नव-वर्ष उस दिन मनाते हैं जिस दिन प्रतिपदा का आरंभ व अन्त हो।
गुडी पडवा की पूजा-विधि
इस पूजा विधि को केवल गुड़ी पड़वा के चैत्र में ही किए जाने का विधान है।
# नव वर्ष फल श्रवण (नए साल का भविष्यफल जानना)
# तैल अभ्यंग (तैल से स्नान)
# निम्ब-पत्र प्राशन (नीम के पत्ते खाना)
# ध्वजारोपण
# चैत्र नवरात्रि का आरंभ
# घटस्थापना
गुड़ी पड़वा मनाने की विधि-
1. प्रातःकाल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है।
# इस दिन लोग घरों की सफाई करते हैं। गांवों में गोबर से घरों को लीपा जाता है।
# शास्त्रों के अनुसार इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए।
# सूर्योदय के तुरन्त बाद गुड़ी की पूजा का विधान है। इसमें अधिक देरी नहीं करनी चाहिए।
2.इस दिन लोग पारंपरिक वस्त्र धारण करते है। आम तौर पर मराठी महिलाएं इस दिन नौवारी (9 गज लंबी साड़ी) पहनती हैं और पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा या धोती-कुर्ता पहनते हैं।
3. परिजन इस पर्व को इकट्ठे होकर मनाते हैं व एक-दूसरे को नव संवत्सर की बधाई देते हैं।
4. इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परम्परा है।
5. पारम्परिक तौर पर मीठे नीम की पत्तियाँ प्रसाद के तौर पर खाकर इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत की जाती है। आम तौर पर इस दिन मीठे नीम की पत्तियों, गुड़ और इमली की चटनी बनायी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे रक्त साफ़ होता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसका स्वाद यह भी दिखाता है कि चटनी की ही तरह जीवन भी खट्टा-मीठा होता है।
6. गुड़ी पड़वा पर श्रीखण्ड, पूरन पोळी, खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं।
7. शाम के समय लोग लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी करते हैं।