Ganesh Visarjan 2019:गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ गणेशोत्सव आज अनंत चतुर्दशी के मौके पर गणेश विसर्जन के साथ थम जायेगा। पूरे देश और खासकर महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से मनाये जाने वाले गणेशोत्सव की परंपरा काफी पुरानी है। बीच के वर्षों में गणेश चतुर्थी एक उत्सव का कार्यक्रम नहीं रहकर केवल घर में पूजन के रूप में रह गया था। बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे एक अलग स्वरूप दिया। गणेश चतुर्थी के मौके पर मूर्ति की स्थापना और फिर गणेश जी की प्रतिमा का विधिवत विसर्जन, इस उत्सव में ये दो ऐसे अहम मौके होते हैं जिसका दृश्य पूरी दुनिया को आकर्षित करता है।
गांव, शहर, कस्बों के चौक-चौराहों पर बड़े-बड़े पंडाल से लेकर आम लोग तक अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं और 3 से लेकर 11 दिनों में अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार उनको विसर्जित करते हैं। करीब 11 दिन चलने वाला गणेशोत्सव अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त हो जाता है। क्या आप जानते हैं भगवान गणेश की धूमधाम और पूरी भक्ति से पूजा-पाठ के बाद फिर उनकी प्रतिमा को क्यों विसर्जित कर दिया जाता है। जानिए इससे जुड़ी रोचक कहानी...
Ganesh Chaturthi: गणेश प्रतिमा का विसर्जन क्यों करते है?
पौराणिक कथा के मुताबिक श्री वेदव्यास जी ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिनों तक सुनाई थी। श्री गणेश जी ने इसे सुनते हुए अक्षरश: लिखा और ऐसे ही महाभारत ग्रंथ तैयार हुआ। वेद व्यास ने जब 10 दिन बाद आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन लगातार लिखने के बाद गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था।
इसके बाद वेदव्यास तत्काल श्री गणेश को पास के सरोवर में ले गये और उन्हें ठंडा करने के लिए जल में डुबो दिया। यही कारण है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
इसी कथा में यह भी वर्णित है कि गणपति के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया था। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने लगी, तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा। तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है।