Lord Ganesha: काशी में विराजते हैं 56 विनायक, जिनमे प्रमुख हैं 'बड़ा गणेश', 'ढुण्ढिराज विनायक', 'सिद्ध विनायक', जानिए इनका माहात्म्य

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 6, 2024 07:05 AM2024-03-06T07:05:23+5:302024-03-06T07:05:23+5:30

काशी में केवल शिव ही नहीं बल्कि भगवान विनायक अपने 56 अलग-अलग रूपों में विराजते हैं। इनमें 'बड़ा गणेश', 'ढुण्ढिराज विनायक', 'सिद्ध विनायक' की विशेष महिमा मानी जाती है।

Lord Ganesha: 56 Vinayaks reside in Kashi, prominent among them are 'Bada Ganesha', 'Dhundhiraj Vinayak', 'Siddha Vinayak', know their importance | Lord Ganesha: काशी में विराजते हैं 56 विनायक, जिनमे प्रमुख हैं 'बड़ा गणेश', 'ढुण्ढिराज विनायक', 'सिद्ध विनायक', जानिए इनका माहात्म्य

'बड़ा गणेश', 'ढुण्ढिराज विनायक', 'सिद्ध विनायक'

Highlightsकाशी में केवल शिव ही नहीं बल्कि भगवान विनायक अपने 56 अलग-अलग रूपों में विराजते हैंइनमें 'बड़ा गणेश', 'ढुण्ढिराज विनायक', 'सिद्ध विनायक' की विशेष महिमा मानी जाती हैमान्यता है कि इनके दर्शन से समस्त विघ्न दूर होते हैं और समृद्धि, सिद्धि सहित ज्ञान की प्राप्ति होती है

Lord Ganesha: काशी धर्म की नगरी है, आध्यात्म की नगरी है, मोक्ष की नगरी है। काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है लेकिन क्या आप जानते हैं कि काशी में प्रथम पूज्य महादेव विश्वनाथ को नहीं बल्कि उनके पुत्र गणेश को माना जाता है।

जी हां, काशी में केवल शिव ही नहीं बल्कि भगवान विनायक अपने 56 अलग-अलग रूपों में विराजते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि काशी में भगवान गणेश के छप्पन रूप क्यों हैं, तो उसे जानने के लिए आपको काशी में प्रचलित मान्यता के बारे में जानना होगा।

काशी में विनायक के छप्पन रूप क्यों हैं

काशी खण्ड में वर्णित कथा के अनुसार एक समय सर्वलोक में बड़ी भारी अनावृष्टि हुई थी तब भगवान विष्णु समेत सभी देवता उसके प्रभाव से पीड़ित हो गये थे। इस कारण से भगवान ब्रह्मा व्याकुल हो गये, तभी उनकी दृष्टि राजा रिपुञ्ज्य पर पड़ी जो महाक्षेत्र में निश्चलेन्द्रिय होकर तपस्या कर रहा था।

ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर राजा का नाम दिवोदास रखा और उसे पृथ्वी का राजा बनने के लिए कहा। राजा दिवोदास ने भगवान ब्रह्मा का आदेश स्वीकरा तो कर लिया परंतु उसने ब्रह्मा जी से वचन लिया कि उसके राज्य में देवता लोग स्वर्ग में ही रहें तभी पृथ्वी पर उसका राज्य निष्कण्टक रहेगा।

राजा दिवोदास की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान ब्रह्मा ने सभी देवताओं को स्वर्ग प्रस्थान करने को कहा लेकिन महादेव शिव को उनकी प्यारी नगरी काशी को छोड़ने के लिए कहना इतना सरल न था। अतः जब मन्दराचल के तप से प्रसन्न हो भगवान शिव उसे वर देने चले तथा मन्दराचल ने भगवान शिव से पार्वती व परिवार सहित उस पर वास करने का वर मांगा।

ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से काशी छोड़ मन्दराचल में निवास करने की आग्रह की। भगवान विश्वेश्वर ने ब्रह्मा जी की बात मानकर एवं मन्दराचल की तपस्या से संतुष्ट होकर काशी छोड़ मन्दराचल पर गमन किया। भगवान विश्वेश्वर के साथ समस्त देवगण भी मन्दराचल को प्रस्थान कर गए।

प्रतिज्ञा अनुसार राजा दिवोदास पृथ्वी पर धर्मपूर्वक राज्य करने लगा तथा दिन-प्रतिदिन महान होने लगा तथा वह राजा साक्षात धर्मराज हो गया। इस कालावधि में भले ही भगवान विश्वेश्वर मन्दराचल में वास कर रहे थे परंतु वह काशी के वियोग से व्याकुल थे।

अतः काशी में पुनः गमन के लिए भगवान शिव ने 56 योगिनियों, देवताओं समेत गणेश जी को दिवोदास के राज्य में त्रुटि निकालने के लिए भेजा। वाराणसी में भगवान विनायक ने दिवोदास के राज में त्रुटियां निकालने में सफल रहे और उसके बाद तब वह अपनी अनेक मूर्तियों (छप्पन विनायकों) के रूप में वाराणसी में स्थित हो गये।

उसके बाद भगवान विष्णु के कथनानुसार राजा दिवोदास को काशी से उच्चाटित करके भगवान विश्वकर्मा ने जब काशी को भगवान शिव के लिए पुनर्निर्माण तो भगवान शिव विश्वनाथ रूप में समस्त देवताओं के साथ स्वयं मन्दराचल से काशी में आए।

भगवान गणेश के उन छप्पन विनायकों में से उनके आठ स्वरूपों को अष्ट प्रधान विनायक कहा गया। मान्यता अनुसार अष्ट प्रधान विनायक की यात्रा करने से भक्तों के समस्त विघ्न दूर हो जाते हैं तथा उन्हें समृद्धि, सिद्धि एवं ज्ञान की प्राप्ति होती है। इन अष्ट प्रधान विनायक यात्रा में शामिल विनायक के स्वरूप को ढुण्ढिराज विनायक, सिद्ध विनायक, त्रिसन्ध्य विनायक, आशा विनायक, क्षिप्र प्रसाधन विनायक, वक्रतुण्ड विनायक ज्ञान विनायक और अविमुक्त विनायक कहते हैं।

ढुण्ढिराज विनायक की महिमा

काशी में प्रवेश करते ही महादेव विश्वेश्वर ने सबसे पहले भगवान विनायक की स्तुति की। शिव ने काशी में गणेश का आह्वान ढुण्ढिराज के रूप में किया। महादेव ने विनायक स्तोत्र का उच्चारण करते हुए कहा कि काशी में भगवान गणेश ढुण्ढिराज नाम से विख्यात होंगे और जो भक्त काशी में विश्वेश्वर के दर्शन की इच्छा रखता है।

उसे विश्वनाथ का दर्शन करने से पहले ढुण्ढिराज विनायक का दर्शन-पूजन करना होगा। उसके बाद ही पूजा करने वाला भगवान विश्वेश्वर के सम्पूर्ण आशीर्वाद का भागी बनेगा। मान्यता अनुसार जो भी भक्त काशी में ढुण्ढिराज विनायक की नित्य आराधना करता है, उन्हें समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सिद्ध विनायक की महिमा

भगवान शिव के पुत्र गणेश सबसे प्रमुख देवों में से एक है एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा समर्पित रूप से इनकी पूजा की जाती है। श्री सिद्धीविनायक की प्रतिमा को स्वयंभू माना जाता है, जो लगभग 3.5 फीट ऊंची एवं 3 फीट चौड़ी है एवं जिनकी सूंड बाईं ओर है नारंगी चमकती त्रिनेत्र आकृति लाल पोशाक से सुसज्जित है।

सिद्धी विनायक मंदिर में विनायक की पूजा करने पर भक्तों को सिद्धी की प्राप्ति होती है। यह काशी के अष्ट विनायकों में से एक माने जाते हैं, जिन्हे पूजा जाता है। सिद्ध विनायक का मंदिर मणिकर्णिका कुंड में सीढ़ीयों पर स्थित है। मान्यता के अनुसार सिद्ध विनायक अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करते हैं।

बड़ा गणेश की महिमा

काशी में स्थापित बड़ा गणेश के बारे में मान्यता है कि यह स्वयंभू भगवान विनायक त्रिनेत्र स्वरूप हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि गणेश चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता गणेश भगवान के इस त्रिनेत्र स्वरूप के दर्शन करने से सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं और सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं। कितना भी बड़ा संकट हो या कष्ट हो, यहां गणेशजी के दर्शन करने से लाभ मिलता है।

स्वयंभू बड़ा गणेश वाराणसी के लोहटिया में स्थित है। यह स्थान काशी के मध्य में स्थित है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि काशी में गंगा के साथ मंदाकिनी नदी बहती थीं। इसलिए इसे अब मैदागिन कहा जाता है। यहीं पर गणेशजी की त्रिनेत्र वाली प्रतिमा मंदाकिनी कुंड से मिली थी। जिस दिन ये गणेश प्रतिमा मिली थी, उस दिन माघ मास की संकष्टी चतुर्थी थी। तभी से इस दिन यहां बड़ा मेला लगता है।

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