हिंदू पंचांग के मुताबिक, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं, इसे आवंला, रंगभरनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. आमलकी एकादशी को सभी एकादशियों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही आंवले के वृक्ष की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त आमलकी एकादशी के दिन विधि पूर्वक व्रत रखकर भगवान श्री हरि विष्णु और आंवला की पूजा करते हैं.
कुछ लोंगों का मत है कि आमलकी एकादशी 24 मार्च को रखा जायेगा जबकि कुछ लोंगों का मत है कि आमलकी एकादशी 25 मार्च 2021 को है. ज्योतिषाचार्यों का मत है कि एकादशी व्रत हमेशा उदया तिथि में रखा जाता है. चूंकि एकादशी तिथि 24 मार्च की सुबह 10 बजकर 23 मिनट को लग रही है जो कि 25 मार्च को सुबह 09 बजकर 47 मिनट तक रहेगी. इसके बाद द्वादशी तिथि लगेगी. ऐसे में एकादशी की उदया तिथि 25 मार्च को है. अतः एकादशी का व्रत 24 को न रखकर 25 मार्च 2021 को रखा जाएगा.
आमलकी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में चित्रसेन नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था और सभी प्रजाजन एकादशी का व्रत करते थे। वहीं राजा की आमलकी एकादशी के प्रति बहुत श्रद्धा थी। एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गये। तभी कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया। इसके बाद डाकुओं ने शस्त्रों से राजा पर हमला कर दिया। मगर देव कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो पुष्प में बदल जाते।
डाकुओं की संख्या अधिक होने से राजा संज्ञाहीन होकर धरती पर गिर गए। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और समस्त राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई। जब राजा की चेतना लौटी तो, उसने सभी राक्षसों का मरा हुआ पाया। यह देख राजा को आश्चर्य हुआ कि इन डाकुओं को किसने मारा? तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन! यह सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी का व्रत करने के प्रभाव से मारे गए हैं। तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है। इन्हें मारकर वहां पुन: तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई। यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और वापस लौटकर राज्य में सबको एकादशी का महत्व बतलाया।