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WEF 2018 में पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण की कहीं तारीफ कहीं आलोचना, किसने क्या कहा?

By भारती द्विवेदी | Updated: January 23, 2018 20:12 IST

दावोस में नरेंद्र मोदी ने कई वैश्विक कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) संग हुई राउंड टेबल मीटिंग की मेजबानी की।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज स्विटजरलैंड के दावोस में 'वर्ल्ड इकनोमिक फोरम' के 48 वीं बैठक में शामिल हुए। वहां उन्होंने हिंदी में लोगों को संबोधित किया। वैश्विक मंच पर पीएम मोदी ने दुनिया की सामने जोरदार तरीके से अपनी बात रखी। पीएम मोदी की भाषण को लेकर भारत में नेताओं ने अलग-अलग प्रतिक्रिया दी है।

पीएम मोदी की दावोस यात्रा को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा- 'प्रिय प्रधानमंत्री जी हमें बताइये, 1 फीसदी भारतीय के पास वहां का 73 फीसदी पैसा क्यों है ? मैं आपके जानकारी के लिए एक रिपोर्ट प्रेषित कर रहा हूं।'

महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने पीएम मोदी के भाषण को वैश्विक नेता का भाषण करार दिया है।

भारती इंटरप्राइजेज के एमडी राजन मित्तल ने कहा कि पीएम मोदी ने एक वैश्विक राजनेता की तरह भाषण दिया है। न सिर्फ भारत के बारे में बल्कि ग्लोबलाइजेशन, क्लाइमेट चेंज और आतंकवाद के मुद्दों पर बात की है।

पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान ने पीएम मोदी के भाषण को एक उत्साही भाषण बताया है।

आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडू ने पीएम मोदी के भाषण को बेहतरीन बताते हुए कहा ये भारत के लिए ऐतिहासिक दिन है।

केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा पीएम मोदी का सपना 2020 तक नया इंडिया बनाने का है।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच की 48वीं बैठक को संबोधित किया। पीएम मोदी ने दुनिया को सामने मौजूद तीन खतरे क्लाइमेट चेंज, आतंकवाद और ग्लोबलाइजेशन का जिक्र किया।  

दावोस में WEF के मंच पर पीएम नरेंद्र मोदी का संबोधनः बड़ी बातें

- वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 48वीं बैठक में शामिल होते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। 20 साल पहले 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा यहां आए थे।

- 1997 में भारत की जीडीपी 2 बिलियन डॉलर था। दो दशकों के बाद यह लगभग छह गुना हो चुकी है। उस वर्ष इस फोरम का विषय था बिल्डिंग द नेटवर्क्ड सोसाइटी। आज 20 साल बाद डिजिटल प्राथमिकताओं को देखें तो 1997 वाला विषय सदियों पुराने युग की चर्चा लगती है। 1997 में यूरो मुद्रा प्रचलित नहीं थी और एशियन फाइनेंसियल क्राइसिस का पता नहीं था। 1997 में बहुत कम लोगों ने ओसामा बिन लादेन के बारे में सुना था। अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।

- आज डेटा बहुत बड़ी संपदा है। डेटा के पहाड़ बनते जा रहे हैं। उन पर नियंत्रण की दौड़ मची है। माना जा रहा है कि जो डेटा को काबू रखेगा वही दुनिया में अपना वर्चस्व बना सकेगा।

- वसुधैव कुटुंबम की धारणा दूरियों को मिटाने के लिए सार्थक है। लेकिन इस दौर की गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए हमारे बीच सहमति का अभाव है। परिवार में भी एक ओर जहां सौहार्द और सहयोग होता है वहीं कुछ मनमुटाव होते रहते हैं।

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