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लोकसभा चुनाव: युवातुर्क कर रहे हैं दल का नेतृत्व, बदल गईं पीढ़ियां

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 12, 2019 16:04 IST

चुनाव 2019 के रण में उतरी बड़ी से लेकर छोटी लगभग दर्जन भर दल का नेतृत्व अपने कर रहे हैं।  2014 बनाम 2019 यानी पांच सालों में पूरी तरह बदल गया है।

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ठळक मुद्देजनसंघ के अटल-आडवाणी-जोशी दौर के नेता पार्टी संगठन ही नहीं चुनावी राजनीति से दूर हो चुके हैंदिसंबर 2017 में राहुल गांधी ने उनसे कांग्रेस अध्यक्ष की कमान थामीअखिलेश ने पार्टी को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया और मुलायम की भूमिका संरक्षक की रह गई है

लोकसभा चुनाव 2019 चरम पर है। हर दल के नेता बदले-बदले नजर आ रहे हैं। चुनावी बुखार से सियासी मैदान सज-धज कर तैयार हैं। राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल करने वाली तमाम राजनीतिक हस्तियों को आज भी सियासी दुनिया याद करती है। इन हस्तियों के वारिस मौजूदा पीढ़ी के नेता उस मुकाम को आगे बढ़ा रहे हैं।

राजनीति के महारथी रहे पिता, दादा, परदादा की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में अधिकांश राजनीतिक घराने के बच्चे वंशबेल को सींच रहे हैं। चुनाव 2019 के रण में उतरी बड़ी से लेकर छोटी लगभग दर्जन भर दल का नेतृत्व अपने कर रहे हैं।  2014 बनाम 2019 यानी पांच सालों में पूरी तरह बदल गया है।

2014 के चुनाव के बाद पांच सालों में हुए पीढ़ी परिवर्तन में हर दल शामिल हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस, 1980 में स्थापित भाजपा से लेकर द्रमुक और राजद से लेकर समाजवादी पार्टी जैसे दल शामिल हैं। इन पार्टियों के नेतृत्व का चेहरा पूरी तरह बदल गया है तो देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी भाजपा भी जनसंघ के नेताओं के पुराने दौर से आगे निकल चुकी है।

देश के सभी दल में बड़े बदलाव हुए...

राजनीतिक पार्टियों में बदलाव कोई अचरज की बात नहीं, मगर बीते पांच साल के भीतर देश की तमाम पार्टियों के नेतृत्व में जिस गति से बदलाव हुआ है, उसकी गति हाल के कई दशकों में शायद ही कभी देखी गई हो।

पार्टियों के नेतृत्व में हुआ यह बदलाव वास्तव में राजनीतिक पीढ़ी परिवर्तन है। भाजपा का नेतृत्व भी बदल गया। जनसंघ के अटल-आडवाणी-जोशी दौर के नेता पार्टी संगठन ही नहीं चुनावी राजनीति से दूर हो चुके हैं। 2014 में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे। भाजपा 30 साल के इतिहास में प्रचंड बहुमत से आई। लेकिन 2019 में अमित शाह कमान संभाले हुए हैं। 

मौजूदा चुनावी समर में पार्टी में पीढ़ियों का बदलाव पूरा हो गया है। पार्टियों के चेहरे बदलने की इस कड़ी में कांग्रेस पहली बार राहुल गांधी के नेतृत्व में लोकसभा के चुनाव मैदान में उतरी है। 2014 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते पार्टी ने चुनाव लड़ा था और दिसंबर 2017 में राहुल गांधी ने उनसे कांग्रेस अध्यक्ष की कमान थामी।

सपा, राजद, डीएमके और लोजपा में भी नए चेहरे

उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव भले मुख्यमंत्री थे, मगर समाजवादी पार्टी की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में ही थी। मगर 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सपा के आतंरिक घमासान में अखिलेश ने पार्टी को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया और मुलायम की भूमिका संरक्षक की रह गई है।

सपा भी अखिलेश के स्वतंत्र नेतृत्व में पहली बार लोकसभा में बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। बिहार में भी तेजस्वी यादव की अगुआई में राजद का यह पहला चुनाव है। लालू प्रसाद के जेल में होने की वजह से अब पार्टी की कमान संपूर्ण रूप से तेजस्वी के हाथों में ही आ चुकी है।

लोजपा की कमान तकनीकी तौर पर बेशक रामविलास पासवान के हाथों में है, मगर लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर उन्होंने बेटे चिराग पासवान को व्यावहारिक रूप से पार्टी की कमान पहले ही सौंप दी है। हरियाणा में इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के जेल में जाने के बाद कमान अभय चौटाला के पास है। पीडीपी की कमान महबूबा मुफ्ती के पास है।

दक्षिण भारत में भी हर दल में उठापटक

दक्षिण भारत में भी कई पार्टियों का नेतृत्व बदल गया है तो कुछ दल मौजूदा चुनाव को पार्टी की कमान अगली पीढ़ी को सौंपने का आधार बना रहे हैं। तमिलनाडु में करुणानिधि के निधन के बाद द्रमुक का नेतृत्व उनके बेटे स्टालिन के हाथ में आ गया है, जबकि जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक एक तरह से नेतृत्वविहीन हो गई है।

तेलंगाना में टीआरएस प्रमुख व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव इस लोकसभा को बेटे केटी रामाराव को पार्टी की बागडोर सौंपने का आधार बनाने में जुटे हैं। ऐसी ही स्थिति आंध्र प्रदेश में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू की है, जो लोकसभा के साथ सूबे की विधानसभा के चुनाव में बेटे नारा लोकेश को पार्टी के भविष्य के रूप में पेश कर रहे हैं।

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