मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में बीजेपी के लिए सियासी जोड़-तोड़ की राह आसान होगी?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 10, 2020 10:42 PM2020-03-10T22:42:56+5:302020-03-10T22:42:56+5:30
एमपी के राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर सीएम गहलोत को सचिन पायलट के साथ सियासी संतुलन तो कायम करना ही होगा.
कांग्रेस की इस वक्त की सबसे कमजोर कड़ी मध्य प्रदेश में अंततः बीजेपी का कर्नाटकी दांव कामयाब हो गया है और इसके साथ ही राजस्थान भी एक बार फिर सियासी चर्चाओं का केन्द्र बन गया है.
हालांकि, राजनीति में कुछ भी संभव है, किन्तु राजस्थान में कांग्रेस की सरकार इस वक्त तो मजबूत स्थिति में है. सीएम अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के सियासी रिश्तों को लेकर अक्सर खबरें आती रही हैं ,बावजूद इसके, यहां एमपी जैसा एकदम असंतुलित सियासी समीकरण नहीं है.
यही नहीं, अपने पारिवारिक बैक ग्राउंड के कारण सचिन पायलट का ज्योतिरादित्य की तरह बीजेपी के साथ जाना भी उतना आसान नहीं है.
इसमें अप्रत्यक्ष रूप से सबसे बड़ी बाधा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी हैं. केन्द्रीय नेतृत्व से उनके सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं, लेकिन केन्द्र के पास राजे के अलावा ऐसा कोई सक्षम नेता नहीं है, जो इस तरह की सियासी जोड़-तोड़ को सत्ता के अंजाम तक पहुंचा सके. यदि बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे को हरी झंडी दिखाएगा, तो ही राजस्थान में कांग्रेस के लिए सियासी संकट की शुरूआत हो सकती है, क्योंकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री नहीं बनी तो वे किसी और को भी इस पद तक पहुंचने नहीं देंगी.
लेकिन, एमपी के राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर सीएम गहलोत को सचिन पायलट के साथ सियासी संतुलन तो कायम करना ही होगा.
इसके अलावा, कांग्रेस के कुछ प्रभावी वरिष्ठ नेता भी मंत्रिमंडल के विस्तार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिए प्रदेश में मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद ही यह साफ हो पाएगा कि राजस्थान में बीजेपी के लिए सियासी जोड़-तोड़ की राह आसान होगी या नहीं?