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भारतीय मुक्केबाजी के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच ओ पी भारद्वाज का निधन

By भाषा | Updated: May 21, 2021 15:03 IST

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नयी दिल्ली, 21 मई मुक्केबाजी में भारत के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच ओ पी भारद्वाज का लंबी बीमारी और उम्र संबंधी परेशानियों के कारण शुक्रवार को निधन हो गया।

वह 82 वर्ष के थे। उनकी पत्नी संतोष का 10 दिन पहले ही बीमारी के कारण निधन हो गया था।

भारद्वाज को 1985 में द्रोणाचार्य पुरस्कार शुरू किये जाने पर बालचंद्र भास्कर भागवत (कुश्ती) और ओ एम नांबियार (एथलेटिक्स) के साथ प्रशिक्षकों को दिये जाने वाले इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

पूर्व मुक्केबाजी कोच और भारद्वाज के परिवार के करीबी मित्र टी एल गुप्ता ने पीटीआई -भाषा से कहा, ''स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों के कारण वह पिछले कई दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। उम्र संबंधी परेशानियां भी थी और 10 दिन पहले अपनी पत्नी के निधन से भी उन्हें आघात पहुंचा था। ''

भारद्वाज 1968 से 1989 तक भारतीय राष्ट्रीय मुक्केबाजी टीम के कोच थे। वह राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे।

उनके कोच रहते हुए भारतीय मुक्केबाजों ने एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और दक्षिण एशियाई खेलों में पदक जीते।

भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के अध्यक्ष अजय सिंह ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।

सिंह ने कहा, ‘‘ओ पी भारद्वाज मुक्केबाजी खेल के ध्वजवाहक थे। एक कोच के रूप में उन्होंने मुक्केबाजों और प्रशिक्षकों की एक पीढ़ी को प्रेरित किया जबकि एक चयनकर्ता के रूप में उनका काम दूरदर्शी और अद्वितीय रहा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के अपने साथियों के साथ इस अपूरणीय क्षति पर शोक व्यक्त करता हूं और उनकी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना करता हूं।’’

भारतीय मुक्केबाजी के अग्रज भारद्वाज राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला के पहले मुख्य प्रशिक्षक थे।

गुप्ता ने कहा, ‘‘उन्होंने पुणे में सेना स्कूल एवं शारीरिक प्रशिक्षण केंद्र में अपना करियर शुरू किया और सेना मशहूर कोच बने। राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) ने 1975 में जब मुक्केबाजी में कोचिंग डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा तो भारद्वाज को पाठ्यक्रम की शुरुआत के लिय चुना गया था। मुझे गर्व है कि मैं उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल था।’’

उन्होंने 2008 में कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को भी दो महीने तक मुक्केबाजी के गुर सिखाये थे।

पूर्व राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह भी उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल थे।

सिंह ने कहा, ‘‘मेरी भारद्वाज जी के साथ बहुत अच्छी दोस्ती थी। मैं एनआईएस में उनका शिष्य और सहायक था। उन्होंने ही भारतीय मुक्केबाजों को आगे तक पहुंचाने की नींव रखी थी। ’’

राष्ट्रीय महासंघ के पूर्व महासचिव ब्रिगेडियर (सेवानिवृत) पी के एम राजा ने कहा कि भारद्वाज का खेल में अपने योगदान के लिये बहुत सम्मान था।

उन्होंने कहा, ‘‘वह सेना खेल नियंत्रण बोर्ड के दिग्गज थे। सही मायनों में वह बेहतरीन कोच और प्रभावशाली व्यक्ति थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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