मुंबई की चुनावी राजनीतिः कांग्रेस ने उत्तर और दक्षिण भारतीयों को दिया महत्व, वोट बैंक के लिहाज से नियुक्त किए राज्यपाल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 16, 2019 10:25 AM2019-09-16T10:25:14+5:302019-09-16T10:25:14+5:30

दक्षिण भारतीयों की संख्या साठ से अस्सी के दशक तक उत्तर भारतीयों से ज्यादा थी लेकिन कांग्रेस जानती थी कि मुंबई में रहने  वाले उत्तर भारतीय वोट बैंक देश की व्यावसायिक राजधानी पर पकड़ बनाकर रखने के लिए बेहद जरूरी है.

Electoral politics of Mumbai: Congress gave importance to North and South Indian giants | मुंबई की चुनावी राजनीतिः कांग्रेस ने उत्तर और दक्षिण भारतीयों को दिया महत्व, वोट बैंक के लिहाज से नियुक्त किए राज्यपाल

मुंबई की चुनावी राजनीतिः कांग्रेस ने उत्तर और दक्षिण भारतीयों को दिया महत्व, वोट बैंक के लिहाज से नियुक्त किए राज्यपाल

Highlights राज्यपालों का चयन भी मुंबई में उत्तर तथा दक्षिण भारतीय वोट बैंकों के नजरिए से किया. मुंबई में 1962 के चुनावों  में  उत्तर भारतीय वोटों को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ने में अहम भूमिका निभाई.

पहले मुंबई प्रांत और उसके बाद महाराष्ट्र के गठन के बाद भी कांग्रेस ने मुंबई में उत्तर एवं दक्षिण भारतीय दोनों सीटों के महत्व को समझा. दक्षिण भारतीयों की संख्या साठ से अस्सी के दशक तक उत्तर भारतीयों से ज्यादा थी लेकिन कांग्रेस जानती थी कि मुंबई में रहने  वाले उत्तर भारतीय वोट बैंक देश की व्यावसायिक राजधानी पर पकड़ बनाकर रखने के लिए बेहद जरूरी है. इसीलिए उसने राज्यपालों का चयन भी मुंबई में उत्तर तथा दक्षिण भारतीय वोट बैंकों के नजरिए से किया.

जब मुंबई अलग प्रांत था तब कांग्रेस सरकार ने 1948 से 1952 तक सर महाराज सिंह  और उनके बाद सर गिरिजाशंकर वाजपेयी जैसे हिंदीभाषी नेताओं को गवर्नर बनाया. 1 मई 1960 को जब मुंबई को राजधानी बनाकर महाराष्ट्र अलग प्रांत बना तब भी राज्यपालों का चयन  केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस  सरकारों ने उत्तर एवं दक्षिण भारतीय वोट बैंकों पर नजर रखकर किया. उत्तर प्रदेश के दिग्गज श्री श्रीप्रकाश महाराष्ट्र के नए राज्यपाल बनाए गए. श्री श्रीप्रकाश बेहद सम्मानित नेता थे और उनकी नियुक्ति ने मुंबई में 1962 के चुनावों  में  उत्तर भारतीय वोटों को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ने में अहम भूमिका निभाई.

बालासाहब ठाकरे जब मराठी अस्मिता की आवाज बुलंद करने लगे तो उनका प्रभाव कमतर करने के लिए केंद्र की कांग्रेस सरकार ने प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयालक्ष्मी पंडित को गवर्नर बना दिया. पंडित भी कांग्रेस की असरदार हिंदीभाषी नेता थीं.बालासाहब ठाकरे की जब दक्षिण भारतीयों के खिलाफ आवाज आंदोलन का शक्ल लेने लगी तब केरल के दिग्गज कांग्रेसी डॉ. पी.वी. चेरियन महाराष्ट्र के गवर्नर बना दिए गए.शिवसेना की 1966 में स्थापना के वक्त डॉ. चेरियन ही महाराष्ट्र  के राज्यपाल थे. चेरियन के उत्तराधिकारी भी हैदराबादी नवाब अली यावर जंग बने थे.

उत्तर-दक्षिण का यह संयोजन कांग्रेस ने 2014 तक जारी रखा. कोना प्रभाकरराव (आंध्र), डॉ. शंकरदयाल शर्मा (म.प्र.), के. ब्रrानंद रेड्डी (आंध्र), डॉ. पी.सी.  अलेक्जेंडर (तमिलनाडु), मोहम्मद फजल  (उ.प्र.), एस.एम. कृष्णा (कर्नाटक) तथा के. शंकरनारायणन (केरल) इसके उदाहरण हैं. ये सब उस वक्त राज्यपाल बने जब शिवसेना का मराठी अस्मिता का नारा एवं हिंदी भाषियों, खासकर उत्तर भारतीयों के विरोध का स्वर चरम पर पहुंच गया था. इसीलिए कांग्रेस ने हिंदी तथा दक्षिण भारतीय  भाषाओं के  मुंबई में बसे लोगों पर अपना ध्यान पूरी तरह केंद्रित किया तथा राज्यपालों की नियुक्ति में इन दोनों वोट बैंकों का ख्याल रखा.

Web Title: Electoral politics of Mumbai: Congress gave importance to North and South Indian giants

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