Swami Vivekananda:स्वामी विवेकानंद का नाम आते ही भारतीय दर्शन, अध्यात्म और विचारों को दुनिया तक पहुंचाने में उनकी भूमिका की भी बात जरूर होती है। विवेकानंद का निधन महज 39 साल की उम्र में हो गया। हालांकि इस छोटे से जीवन में भी उन्होंने जो काम किए, जो बातें कही और जो विचार रखे उसने उन्हें एक अलग पंक्ति में ला खड़ा किया। स्वामी विवेकानंद जीवन भर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे थे
स्वामी विवेकानंद के बारे में मशहूर बांग्ला लेखक शंकर अपनी किताब 'द मॉन्क ऐज मैन' में लिखते हैं वे अपने जीवन भर में 31 बीमारियों से पीड़ित रहे। इसमें निद्रा, लीवर और किडनी की बीमारियां, मलेरिया, माइग्रेन, मधुमेह और दिल की बीमारियों आदि शामिल थे।
इतनी बीमारियों के होने के बावजूद विवेकानंद शारीरिक मजबूती पर जोर देते थे। वे शरीर के स्वस्थ्य रहने को कितना महत्व देते थे, इस बात का अंदाजा उनकी एक हैरान करने वाली बात से भी चलता है। उन्होंने कहा था, 'गीता पढ़ने से अच्छा फुटबाल खेलना है।'
विवेकानंद अनिद्रा की बीमारी से भी बुरी तरह पीड़ित थे। इसका जिक्र वे 29 मई, 1897 को शशि भूषण घोष को लिखे पत्र में भी करते हैं। उन्होंने कहा था, ‘मैं अपनी जिंदगी में कभी भी बिस्तर पर लेटते ही नहीं सो सका।’
Swami Vivekananda Jayanti: विवेकानंद ने 25 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। संन्यासी बनने के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद हुआ। नरेंद्र दत्त ने दरअसल 25 साल की उम्र में घर-बार छोड़ दिया था और सन्यासी बन गये थे।
रामकृष्ण परमहंस से 1881 में कोलकाता के दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में हुई थी। इसके बाद विवेकानंद का जीवन बदल गया।
कहते हैं कि विवेकानंद ने जब पहली बार परमहंस से मुलाकात की तो उन्होंने यही सवाल किया जो वे पहले भी कई लोगों से पूछ चुके थे कि 'क्या आपने भगवान को देखा है?'
परमहंस ने ये सवाल सुनने के बाद कहा- 'हां मैंने देखा है। मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना कि तुम्हें देख सकता हूं। ईश्वर को देखा जा सकता है, उनसे बातें की जा सकती हैं, लेकिन उन्हें चाहता ही कौन है?'
विवेकानंद को हुआ विचित्र अनुभव
परमहंस ने विवेकानंद से बातचीत करते हुए आगे कहा, 'लोग पत्नी-बच्चों के लिए, धन-दौलत के लिए आंसू बहाते हैं, लेकिन ईश्वर के दर्शन नहीं हुए इस कारण कौन रोता है? यदि कोई उन्हें हृदय से पुकारे तो वे अवश्य ही दर्शन देंगे।'
कहते हैं कि परमहंस के साथ दूसरी मुलाकात में विवेकानंद को और विचित्र अनुभव हुए। विवेकानंद ने ऐसा अनुभव किया कि जैसे कमरे की दीवारें, मंदिर का उद्यान और यहां तक कि पूरा ब्रह्मांड ही घूमते हुए कहीं विलीन होने लगा है।
विवेकानंद ये सब देख बेचैन हो गए। इस पर गुरु परमहंस खिलखिलाकर हंसे विवेकानंद का सीना स्पर्श कर उन्हें शांत किया और कहा- अच्छा, अभी रहने दे। समय आने पर सब होगा।
विवेकानंद ने आगे जाकर 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। उनके जन्मदिन यानी 12 जनवरी को भारत में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है और इसकी शुरुआत 1985 से हुई।