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शिवकाशी के आतिशबाजी उद्योग के श्रमिक बाधाओं से लड़ते हुए करते हैं काम

By भाषा | Updated: October 3, 2021 17:58 IST

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(वी गंगाधरन)

शिवकाशी (तमिलनाडु), तीन अक्टूबर शिवकाशी के आतिशबाजी उद्योग के श्रमिक तमाम चुनौतियों से जूझते हुए अपने काम को अंजाम देते हैं। खासकर, असंगठित क्षेत्र में उद्योग के कष्टप्रद हालात के कारण कई श्रमिकों की शराब पर निर्भरता भी बढ़ जाती है।

जैसे ही सूरज डूबता है, शिवकाशी के अलमाराथूपट्टी जैसे गांवों में आतिशबाजी इकाइयों के कई कर्मचारी शराब की दुकान के चारों ओर जमा हो जाते हैं और अपनी पसंद की शराब खरीदते हैं। अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए शराब पर उनकी निर्भरता भी दिनों दिन बढ़ती जाती है।

एम एस वेलुसामी जैसे कई श्रमिक जो प्रति दिन मजदूरी के रूप में लगभग 300-350 रुपये कमाते हैं, सप्ताह में कम से कम दो से तीन दिन अपनी कमाई का आधा हिस्सा शराब का सेवन करने के लिए खर्च करते हैं।

श्रमिकों के कुछ वर्गों के लिए यह चुनौतीपूर्ण परिदृश्य है। पटाखा उद्योग में लगभग तीन लाख लोग बिना लाइसेंस वाली इकाइयों में हर रोज रासायनिक खतरे और हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों की आशंका का सामना करते हैं। पटाखों के निर्माण के दौरान रसायनों के मिश्रण के साथ सफेद धूसर पाउडर के कारण श्रमिकों की आंखें लाल दिखाई देती हैं। श्रमिक दिन का काम पूरा होने के बाद कारखाने के परिसर में जल्द से जल्द स्नान कर लेना चाहते हैं क्योंकि देरी से शरीर पर लगे रासायनिक पाउडर को हटाने में कठिनाई होगी।

निर्माण प्रक्रियाओं के कई स्तरों के दौरान अधिकांश श्रमिकों को सीधे किसी प्रकार के रासायनिक अवयवों को छूते या संभालते देखा जा सकता है। उद्योग के लोगों का कहना है कि सुबह-सुबह अलग-अलग स्थानों पर रसायनों को भरने और मिलाने जैसी खतरनाक प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है और ऐसे काम प्रशिक्षित पुरुषों को ही सौंपे जाते हैं। उनका कहना है कि अन्य सभी प्रक्रियाएं खतरनाक की श्रेणी में नहीं आती हैं।

कुछ कारखानों में, श्रमिकों का कहना है कि रसायनों के संपर्क में आने के प्रतिकूल प्रभावों को ‘‘निष्प्रभावी" करने के लिए केला खरीदने के वास्ते ‘‘केला भत्ता’’ के रूप में 20 रुपये मिलते हैं। यह आसानी से पच भी जाता है और पोषण में सहायक होता है। आतिशबाजी इकाइयों के मालिकों का कहना है कि वे ‘‘कर्मचारियों के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखते हैं। कर्मचारियों का बीमा भी करवाया जाता है’’ और समय-समय पर स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किए जाते हैं।

संगठित उद्योग में 20 साल से अधिक समय गुजार चुके वेलुसामी, वेंकटकारुमन और अन्य श्रमिकों ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘हम सब को एलर्जी या अन्य समस्याएं नहीं हुई हैं, लेकिन श्रमिकों के एक वर्ग में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।’’

विनियमित, लाइसेंस प्राप्त इकाइयों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित और अनिवार्य प्रथाओं के विपरीत, बिना लाइसेंस वाले और अवैध पटाखा निर्माण कुटीर उद्योग में श्रमिकों को गंभीर खतरों और दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। पिछले तीन साल में 12 से अधिक दुर्घटनाओं में कई श्रमिक हताहत हुए।

अवैध इकाइयों के खिलाफ कदम उठाए जाने पर विरुधुनगर जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कार्रवाई लगातार की जाती है लेकिन इसे केवल कानून लागू करने जैसे दृष्टिकोण से देखना सरल होगा। उन्होंने जोखिमों के बारे में अधिक जागरूकता और सुरक्षित तथा बेहतर लाभकारी अवसरों के लिए एक खाका तैयार करने पर जोर दिया।

अवैध इकाइयों के बारे में पूछे जाने पर अय्यन फायरवर्क्स के प्रबंध निदेशक जी अबीरुबेन ने कड़ी कार्रवाई की पैरवी की। मशीनों के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा, ‘‘रासायनिक मिश्रण और पटाखा में भरने की प्रक्रिया को मशीनीकृत करने के लिए (संगठित क्षेत्र में विनियमित, विधिवत लाइसेंस प्राप्त इकाइयों में) आतिशबाजी उद्योग में व्यवस्था पहले से ही चल रही है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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