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ईआईए मसौदे का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद पर अदालती आदेश का केन्द्र क्यों कर रहा है विरोध: अदालत

By भाषा | Updated: January 27, 2021 14:15 IST

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नयी दिल्ली, 27 जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उसे समझ नहीं आ रहा कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के मसौदे का संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में अनुवाद करने के उसके आदेश का केन्द्र सरकार क्यों ‘‘जोरदार’’ विरोध कर रही है।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की एक विशेष पीठ ने कहा कि सरकार को ईआईए के मसौदे को लेकर स्थानीय भाषाओं की आपत्तियों को समझना होगा और इसके लिए ‘‘सभी 22 भाषाओं में इसका अनुवाद करने में क्या परेशानी है?’’

केन्द्र सरकार का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने पीठ को बतया कि ईआईए के मसौदे पर उन्हें अभी तक 20 लाख प्रतिक्रियां मिल चुकी हैं और इसलिए उसे इन भाषाओं में अनुवाद करने की कोई जरूरत नहीं है।

एएसजी ने दावा किया कि सभी 22 भाषाओं में इसे अनुवाद करने से कई प्रशासनिक परेशानियां उत्पन्न होंगी क्योंकि सरकार के पास ‘‘अनुवाद कराने के लिए साधन नहीं हैं।’’

उन्होंने यह भी कहा कि संविधान में भी यह नहीं कहा गया कि अधिसूचना का सभी भाषाओं में अनुवाद किया जाना जरूरी है।

अदालत ने इस दलील को स्वीकार ना करते हुए कहा कि ‘‘आधुनिक समय में यह वास्तव में असंभव कार्य नहीं हो सकता’’ और सरकार से सभी भाषाओं में ईआईए के मसौदे का अनुवाद करने में आने वाली परेशानियां को बताने को कहा।

अदालत ने यह भी कहा कि संविधान कहता है कि अंतिम अधिसूचना का सभी भाषाओं में अनुवाद जरूरी नहीं है लेकिन संविधान में इस मसौदे को लेकर ऐसा कुछ नहीं है, जिसे जनता की राय जानने के लिए जारी किया गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें समझ नहीं आता कि मसौदा सभी को समझ आए, इसके लिए उसका सभी भाषाओं में अनुवाद किए जाने के अदालत के आदेश का केन्द्र कैसे जोरदार विरोध कर रहा है।’’

अदालत ने सरकार को 25 फरवरी तक का समय देते हुए, उसे अनुवाद में आने वाली परेशानियां को बताने का निर्देश दिया।

मामले की अगली सुनवाई अब 25 फरवरी को ही होगी।

पीठ सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अदालत से उसके 30 जून 2020 को सुनाए फैसले पर पुन:विचार करने का अनुरोध किया था।

अदालत ने 30 जून के फैसले में पर्यावरण मंत्रालय को ईआईए के मसौदे की अधिसूचना का सभी 22 भाषाओं में अनुवाद करने को निर्देश दिया था। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विक्रांत तोंगड़ ने एक याचिका दायर कर अधिसूचना का सभी भाषाओं में अनुवाद करने और जनता की राय हासिल करने के लिए दिया गया समय बढ़ाने का अनुरोध किया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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