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यस बैंक संकट को लेकर सरकार और आरबीआई क्यों सोती रही?

By शीलेष शर्मा | Updated: March 8, 2020 06:03 IST

चिदंबरम की दलील है कि 2014 से 2019 तक यस बैंक ऋण पर ऋण देती रही लेकिन आरबीआई और सरकार ने उसकी बैलेंस शीट पर आखिर नजर क्यों नहीं डाली और समय रहते अंकुश लगाने का काम क्यों नहीं किया.

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ठळक मुद्देयस बैंक में खाताधारकों के कोहराम के बीच अब मोदी सरकार और आरबीआई पर गंभीर आरोपों के साथ सवाल खड़े हो रहे है.  2014 से 2020 तक यस बैंक में डकैती होती रही और सरकार खामोश बैठी रही. यह सवाल पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने मोदी सरकार के सामने उठाया है.

यस बैंक में खाताधारकों के कोहराम के बीच अब मोदी सरकार और आरबीआई पर गंभीर आरोपों के साथ सवाल खड़े हो रहे है. 2014 से 2020 तक यस बैंक में डकैती होती रही और सरकार खामोश बैठी रही. यह सवाल पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने मोदी सरकार के सामने उठाया है.

चिदंबरम की दलील है कि 2014 से 2019 तक यस बैंक ऋण पर ऋण देती रही लेकिन आरबीआई और सरकार ने उसकी बैलेंस शीट पर आखिर नजर क्यों नहीं डाली और समय रहते अंकुश लगाने का काम क्यों नहीं किया.

आंकड़े बताते है कि मार्च 2014 में यस बैंक का जो बकाया ऋण था वह 55633 करोड़ की राशि थी जो 2015 में बढ़कर 75550 करोड़ हो गयी, 2016 में 98210 करोड़, 2017 में 132263 करोड़, 2018 में 203534 करोड़ और 2019 में 241499 करोड़ तक जा पहुंचा. आखिर यह सब कैसे हो गया , वित्त मंत्रालय और आरबीआई क्या कर रही थी.  सरकार ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया. 2019 में बैंक में नये सीईओ की नियुक्ति की गयी फिर भी कोई बदलाव क्यों नहीं आया.

हैरत की बात तो यह है कि आरबीआई के डिप्टी गर्वनर को यस बैंक की बोर्ड में मई 2019 में जब शामिल किया गया उस समय हालात  बद से बदत्तर हो रहे थे लेकिन कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई. जनवरी से मार्च 2019 की तिमाही में बैंक का घाटा सामने आया फिर भी सरकार खामोश बैठी रही.

पी. चिदंबरम ने इसे वित्तीय संस्थाओं का कुप्रबंधन बताते हुए मोदी सरकार को सीधे-सीधे जिम्मेदार करार दिया. उन्होंने वे आंकड़े भी पेश किए जो देश के बैकिंग क्षेत्र से जुड़े थे जिनके तहत ऋण की तुलना में उसकी वापसी ना के बराबर थी. 2014 के वित्तीय वर्ष में 778000 करोड़ की राशि को बट्टेखाते में डाला गया. जो 2018-2019 में दिये गये ऋण का 7.3 फीसदी था. चिदंबरम ने आश्चर्य व्यक्त किया कि यस बैंक द्वारा जो ऋण दिये जा रहे थे वह 35 फीसदी प्रति वर्ष तक जा पहुंचे थे जबकि नियमों के अनुसार यह प्रतिशत 8 से 10 तक नहीं होता.

चिदंबरम ने यह भी आरोप लगाया कि अपनी कमियों को छुपाने के लिए मोदी सरकार वित्तीय संस्थाओं पर दबाव डाल रही है जैसा कि उसने आईबीडीआई में एलआईसी का निवेश कराकर उसे मुक्त कराया था.

चिदंबरम का इशारा भारतीय स्टेट बैंक की ओर था जिसने सरकार के दबाव में 2450 करोड़ का निवेश यस बैंक में करने की घोषणा की है. कांग्रेस मानती है कि स्टेट बैंक द्वारा किया जाने वालो निवेश स्वेचछा से नहीं बल्कि दबाव में किया जा रहा निवेश है. जिससे बैकिंग सेक्टर के लिए भविष्य में गंभीर खतरे पैदा हो सकते है सरकार अपनी कमियों को छुपाने के लिए एक के बाद एक गलती दोहरा रही है.  

टॅग्स :यस बैंकपी चिदंबरममोदी सरकार
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