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एनएचआरसी आदेश लागू करने में विफल रहने का दावा करने संबंधी याचिका पर विचार क्यों करें: अदालत

By भाषा | Updated: August 16, 2021 18:27 IST

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक कार्यकर्ता को यह बताने के लिए कहा कि वह उसकी उस याचिका पर विचार क्यों करे, जिसमें आरोप लगाया गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) मणिपुर में न्यायेतर हत्याओं के दो पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा देने के अपने निर्देश को लागू करने में ‘‘विफल’’ रहा है। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली को एनएचआरसी के वकील ने सूचित किया था कि इसी तरह की याचिका उसी व्यक्ति, मानवाधिकार कार्यकर्ता सुहास चकमा द्वारा दाखिल की थी और इसे एक समन्वय पीठ ने खारिज कर दिया था और उन्हें उचित मंच से संपर्क करने की स्वतंत्रता मिली थी। एनएचआरसी की ओर से अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि क्योंकि मामला मणिपुर से संबंधित है, इसलिए यहां याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं है। उच्च न्यायालय ने चकमा को एक अतिरिक्त हलफनामे के साथ पिछले मामले की प्रति दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया, जिसमें कहा गया था कि इस याचिका पर यहां विचार क्यों किया जाए। अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए सात दिसंबर को सूचीबद्ध किया है। अदालत ने पहले मणिपुर को याचिका में एक पक्ष के रूप में शामिल किया था और उसे नोटिस जारी किया था। अदालत ने कहा कि राज्य के लिए कोई भी पेश नहीं हुआ। इसने पहले याचिका पर मणिपुर सरकार और एनएचआरसी से जवाब मांगा था। इसने राज्य सरकार से अपनी प्रतिक्रिया में यह बताने के लिए भी कहा था कि उसने पीड़ितों के परिजनों को पांच लाख रुपये का भुगतान करने के लिए एनएचआरसी के पांच मार्च, 2020 के निर्देश को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘नेशनल कैंपेन फॉर प्रिवेंशन ऑफ टॉर्चर’ चलाने वाली चकमा ने एनएचआरसी के आठ सितंबर, 2020 के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसमे कहा गया था कि यदि राज्य पांच मार्च, 2020 के निर्देश का अनुपालन नहीं करता है तो परिजन मुआवजे की राशि का दावा करने के लिए सक्षम अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। एनएचआरसी ने चकमा की एक शिकायत पर जनवरी 2009 में आदेश दिया था। इस शिकायत में 21 जनवरी, 2009 को मणिपुर पुलिस कमांडो और 16वीं असम राइफल्स के संयुक्त बल द्वारा कंगलाटोम्बी माखन रोड पर दो लोगों - निंगथौजम आनंद सिंह और पलुंगबाम कुंजाबिहारी उर्फ बोस की न्यायेतर हत्या का आरोप लगाया गया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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