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कौन हैं चीनी विद्वान झांग बाओशेंग?, कहा- ‘ज्ञान का अमृत’ और ‘भारतीय सभ्यता का लघु इतिहास’ भगवद्गीता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 26, 2025 19:58 IST

भगवद्गीता को ‘भारतीय सभ्यता का एक लघु इतिहास’ बताया जिसके संवाद नैतिक संकट, दार्शनिक संश्लेषण और धार्मिक पुनर्जन्म को दर्शाते हैं।

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ठळक मुद्देमुख्य वक्ता 88 वर्षीय प्रोफेसर झांग बाओशेंग थे, जिन्होंने भगवद्गीता का चीनी भाषा में अनुवाद किया है।भारतीय आत्मा का एक ‘सांस्कृतिक नृविज्ञान’ है।पिछले वर्ष आयोजित रामायण सम्मेलन का विस्तार है। 

बीजिंगः भगवद्गीता ‘ज्ञान का अमृत’ और ‘भारतीय सभ्यता का लघु इतिहास’ है जो आधुनिक समय में लोगों के सामने आने वाली आध्यात्मिक और भौतिक दुविधाओं का समाधान करती है। यह बात प्रसिद्ध चीनी विद्वानों ने प्राचीन भारतीय ग्रंथ की सार्वजनिक तौर पर प्रशंसा में कही जो अपने आप में एक दुर्लभ मामला है। यहां शनिवार को भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित ‘संगमम - भारतीय दार्शनिक परंपराओं का संगम’ विषय पर एक संगोष्ठी में भगवद्गीता पर बोलते हुए चीनी विद्वानों ने गीता को भारत का दार्शनिक विश्वकोश बताया और भौतिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की इसकी कालातीत अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता 88 वर्षीय प्रोफेसर झांग बाओशेंग थे, जिन्होंने भगवद्गीता का चीनी भाषा में अनुवाद किया है।

गीता को एक आध्यात्मिक महाकाव्य और भारत का दार्शनिक विश्वकोश बताते हुए, उन्होंने कहा कि इसका अनुवाद आवश्यक था क्योंकि यह भारत के आध्यात्मिक दृष्टिकोण - कर्तव्य, कर्म और वैराग्य के प्रति उसके विचारों - को प्रकट करता है, जो आज भी भारतीय जीवन को आकार देते हैं।

दक्षिण में केप कोमोरिन (जिसे अब कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है) से लेकर उत्तर में गोरखपुर तक भारत में अपने अनुभवों (1984-86) का वर्णन करते हुए प्रोफेसर झांग ने कहा कि हर जगह, उन्होंने भगवान कृष्ण की उपस्थिति महसूस की – एक जीवित नैतिक और आध्यात्मिक प्रतिमा। प्रोफेसर झांग ने कहा कि ऐसे अनुभवों के माध्यम से उन्होंने देखा कि गीता कोई दूर का धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि इसका भारतीय मनोविज्ञान, नैतिकता और सामाजिक जीवन पर एक जीवंत प्रभाव है, यह भारतीय आत्मा का एक ‘सांस्कृतिक नृविज्ञान’ है।

उन्होंने भगवद्गीता को ‘भारतीय सभ्यता का एक लघु इतिहास’ बताया जिसके संवाद नैतिक संकट, दार्शनिक संश्लेषण और धार्मिक पुनर्जन्म को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि भगवद्गीता ने चीन सहित दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ एक गहरा संबंध स्थापित किया, जिसके कारण इसका सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ।

झेजियांग विश्वविद्यालय में प्राच्य दर्शन अनुसंधान केंद्र के निदेशक, प्रोफेसर वांग जी-चेंग ने अपने संबोधन में कहा कि भगवद्गीता, जो 5,000 साल पहले प्राचीन भारत की युद्धभूमि पर आधारित एक संवाद है, समय से परे जाकर आज लोगों की चिंताओं और उलझनों का समाधान करती है। गीता को ‘ज्ञान का अमृत’ बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कृष्ण के उत्तर भगवद्गीता के 700 श्लोकों में अंकित हैं।

ये शब्द पुराने सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि ‘आध्यात्मिक कुंजियां’ हैं जो सदियों से चली आ रही हैं।’’ शेन्जेन विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफेसर यू लोंग्यु ने कहा कि विभिन्न चीनी विद्वानों द्वारा किए गए अध्ययनों से उभरकर आया मुख्य बिंदु यह है कि एक महान सभ्यता के रूप में भारत के पास गहन सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत है, जिसका गहन अध्ययन और प्रसार किया जाना चाहिए। इससे पहले, चीनी विद्वानों का स्वागत करते हुए, चीन में भारतीय राजदूत प्रदीप कुमार रावत ने कहा कि यह दूतावास द्वारा पिछले वर्ष आयोजित रामायण सम्मेलन का विस्तार है। 

टॅग्स :भगवत गीताचीन
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