Citizenship Amendment Act: जानिए क्या है नागरिकता संशोधन कानून जिसके विरोध में देशभर में हो रहे हैं प्रदर्शन
By आदित्य द्विवेदी | Updated: December 19, 2019 13:20 IST2019-12-19T13:16:32+5:302019-12-19T13:20:26+5:30
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। लोकमत न्यूज ने इस कानून का अध्ययन करके इससे जुड़े सवालों का जवाब देने की कोशिश की है...

नागरिकता संशोधन कानून का देश के हिस्सों में हो रहा है विरोध (फाइल फोटो)
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसके बाद यह एक कानून बन गया है। इस कानून के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा दिल्ली समेत कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले। इस कानून को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। लोकमत न्यूज ने इस कानून का अध्ययन करके इससे जुड़े सवालों का जवाब देने की कोशिश की है।
इस कानून में क्या प्रस्ताव है?
नागरिकता संशोधन अधिनियम के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं और जिन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना पड़ा है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
क्या होगी समयसीमा?
कानून के मुताबिक इन छह समुदायों के शरणार्थियों को पांच साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता दी जाएगी। अभी तक यह समयसीमा 11 साल की थी। कानून के मुताबिक ऐसे शरणार्थियों को गैर-कानून प्रवासी के रूप में पाए जाने पर लगाए गए मुकदमों से भी माफी दी जाएगी।
इस कानून में किसे छोड़ा गया है?
विपक्षी पार्टियाों का कहना है कि यह कानून मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है क्योंकि उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है। सरकार ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक रिपब्लिक हैं जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इस वजह से उनका धार्मिक उत्पीड़न नहीं हो सकता। सरकार ने यह भी भरोसा दिलाया कि प्रत्येक आवेदन का परीक्षण करके ही नागरिकता दी जाएगी।
किन राज्यों में कानून लागू नहीं होगा?
कानून के अनुसार, यह असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि ये क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं। इसके साथ ही यह कानून बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन, 1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन परमिट (आईएलपी) वाले इलाकों में भी लागू नहीं होगा। इनर लाइन परमिट अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम में लागू है।
मोदी सरकार ने क्या तर्क दिया?
मोदी सरकार ने तर्क दिया है कि 1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था। कई अलग-अलग धर्म के अनुयायी बांग्लादेश और पाकिस्तान में रुक गए। इन दोनों देशों ने इस्लाम धर्म घोषित कर दिया। इस वजह से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय को धार्मिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। इनमें से कई लोग शरण लेने के लिए भारत आ गए। उनके पास या तो डॉक्यूमेंट भी नहीं हैं। धार्मिक प्रताड़ना के शिकार इन अल्पसंख्यकों को अगर भारत जगह नहीं देगा तो ये कहां जाएंगे।
कौन विरोध कर रहा है?
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की प्रमुख वजह में से एक है कि यह संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है जिसमें समानता का अधिकार दिया गया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई(एम) और कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियां इस कानून का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं दी जा सकती।
इसके अलावा उत्तर पूर्व के राज्यों (असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम) में व्यापक विरोध हो रहा है। विरोध कर रहे एक बड़े समुदाय का मानना है कि अवैध शरणार्थियों के आने से यहां से स्थानीय निवासियों के संशाधनों और रोजगार पर असर पड़ेगा। कुछ लोगों का मानना है कि इससे 1985 का असम अकॉर्ड भी प्रभावित होगा।
इस कानून से भारत की जनसंख्या पर कितना बोझ पड़ेगा?
इस कानून से कितने लोगों को नागरिकता मिलेगी इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। इंटेलिजेंस ब्यूरो ने जेपीसी के समक्ष कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय के 31,313 लोग भारत में लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रहे हैं। उन्होंने धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारत से शरण मांगी है। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि इस विधेयक से लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगी में नया सवेरा होगा।