सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले बलात्कार की शिकार हुए एक नाबालिग लड़की के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के बच्चे को गिराने की इजाजत दी थी। कोर्ट ने ये आदेश इस आधार पर दिया है कि अगर भ्रूण गर्भ में पलता रहा तो महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति को गंभीर खतरा हो सकता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने 'गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971' के प्रावधान के आधार पर ये आदेश दिया।
कानून के इस प्रावधान के मुताबिक, 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति उसी स्थिति में दी जा सकती है जब गर्भवती महिला की जान को गंभीर खतरा हो। आइए हम आपको बताते हैं कि क्या है गर्भपात और क्या कहता है कानून।
क्या कहता है कानून? गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971 है। इस कानून के अनुसार, कुछ विशेष परिस्थितियों में 12 से 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराने की एक मां को अनुमति दी जा सकती है। यह कानून 45 साल पुराना है, जो उस वक्त की जांचों पर आधारित है। इस कानून के अनुसार, गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जिनमेंजब महिला की जान को खतरा हो, शारीरिक और मानसिक और स्वास्थ्य को खतरा हो, गर्भ धारण बलात्कार के कारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का उचित विकास गर्भ में न हुआ हो, विकलांग होने का डर हो शामिल है। साथ ही 12 हफ्तों तक के गर्भ को स्त्री विशेषज्ञ की सलाह से गर्भपात संभव है और 12 से 20 हफ्ते के गर्भ को गिराने के लिए दो महिला डॉक्टरों की राय जरूरी है।
गर्भपात से होने वाली मौत के आंकड़ेगर्भपात के दौरान महिलाओं की मौतों के आकड़े की एक रिपोर्ट हाल ही में आई थी जो हिला देने वाली है। 2015 से 2017 में हुए सर्वे के आंकड़ों से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए प्रति वर्ष गर्भपात कराने वाली डेढ़ करोड़ महिलाओं में से करीब 13 प्रतिशत यानी 20 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। देश के अलग-अलग राज्यों में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट 'दि गुटमाकर' और 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पापुलेशन साइंसेज' के द्वारा सर्वे कराया गया। इस सर्वे की रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी गई है। उसमें बताया गया है कि बर्थ कंट्रोल के साधनों की कमी और अज्ञानता इन मौतों का एक मात्र जायज कारण है।
1 साल में होता है डेढ़ करोड़ महिलाओं का गर्भपात
आंकड़ों की मानें तो पहले सरकारी आकड़ों में हर वर्ष मात्र छह लाख महिलाओं का गर्भपात दर्ज होता था जबकि गैर सरकारी संगठनों का आंकड़ा एक करोड़ था, लेकिन अब सरकार और अन्य संगठनों के आंकड़े समान हैं। उनके अनुसार हर साल डेढ़ करोड़ महिलाएं गर्भपात करवाती हैं, जिनमें से 13 प्रतिशत यानी लगभग 20 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। इस आंकड़े में चोरी छिपे कराए जाने वाले अवैध गर्भपात के मामले भी शामिल हैं। वहीं, मौजूदा साधनों से प्रतिवर्ष 50 प्रतिशत से अधिक ऐसी मौतों को कम किया जा सकता है। प्रसव के दौरान पूरे देश में प्रतिवर्ष तीन लाख 30 हजार महिलाओं की मौत होती है, जिनमें 15 प्रतिशत भारतीय महिलाएं शामिल हैं।
परिवार नियोजन का बजटस्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन के लिए बजट आनुपातिक रूप से बहुत कम हैं। यह दक्षिण अफ्रीका में 4.5, थाईलैंड में 3.7, ब्राजील में 4.7, चीन में 3.1, रूस में 3.1 प्रतिशत हैं. वहीं, भारत में मात्र 1.3 प्रतिशत है। जिस कारण से यहां होंने वाली मौतों का आंकड़ा भी ज्यादा है। ऐसे में ये आंकड़े सभी के लिए चौंकाने वाले हैं।