नई दिल्ली: हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में रणनीतिक रूप से बढ़त हासिल करने की कोशिश भारत और चीन दोनों देशों की तरफ से होती रहती है। हिंद महासागर क्षेत्र में मौजूद श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश चीन अक्सर करता है। ऐतिहासिक रूप से ये देश भारत के करीब रहे हैं। हाल ही में श्रीलंका में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई जब कोलंबो में भारतीय युद्धपोत, गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक आईएनएस मुंबई का सामना तीन चीनी युद्धपोतों के साथ हो गया।
भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान के एक अधिकारी ने टीओआई से कहा कि चीनी युद्धपोत, जिसमें उसके समुद्री डकैती रोधी एस्कॉर्ट बल भी शामिल हैं, अब पहले की तुलना में अधिक समय तक हिंद महासागर क्षेत्र में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती चीनी नौसैनिक उपस्थिति के साथ-साथ क्षेत्र में अतिरिक्त लॉजिस्टिक टर्नअराउंड सुविधाओं के लिए बीजिंग की तलाश भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।
चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि 140-युद्धपोत भारतीय नौसेना के लिए काफी नहीं हैं और चीन और पाकिस्तान दोनों से समुद्र में बढ़त हासिल करने के लिए और अधिक संसाधनों का जरूरत है। भारतीय नौसेना ने लगभग 1,500 कर्मियों के संयुक्त दल के साथ तीन चीनी युद्धपोतों, विध्वंसक हेफ़ेई और लैंडिंग प्लेटफ़ॉर्म डॉक (उभयचर जहाज) वुज़िशान और क़िलियानशान पर बारीकी से नज़र रखी है।
इस बीच आईएनएस मुंबई श्रीलंका पहुंचा है। इसकी कमान कैप्टन संदीप कुमार के पास है और इस पोत पर 410 नौसैनिकों का दल है। आईएनएस मुंबई और चीनी युद्धपोत श्रीलंकाई युद्धपोतों के साथ अलग-अलग अभ्यास करने वाले हैं जो 29 अगस्त को होगा।
ये पहली बार नहीं है जब चीनी जहाज श्रीलंका पहुंचे हों। इससे पहले शोध के नाम पर चीन जासूसी जहाज को श्रीलंका भेज चुका है। चीनी युद्धपोतों, जासूसी जहाजों और पनडुब्बियों को लंकाई बंदरगाहों पर रुकने की अनुमति भी आसानी से मिल जाती है क्योंकि चीन ने श्रीलंका को भारी कर्ज दे रखा है और वहां की कई परियोजनाओं पर चीन मोटा पैसा खर्च कर रहा है। भारत ऐसे मामलों को लेकर चौकन्ना रहता है।