कोट्टक्कल (केरल), 10 जुलाई पद्मभूषण पन्नियमपिल्ली कृष्णनकुट्टी वारियर को चिकित्सा जगत की आधुनिक आयुर्वेदिक प्रणाली को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय जाता है जिनकी वजह से कोट्टक्कल नगर को आयुर्वेद का नगर कहा जाने लगा।
वह एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे और पी के वारियर के नाम से लोकप्रिय थे जिनका 100 साल की उम्र में शनिवार को निधन हो गया। वह कोट्टक्कल स्थित आर्य वैद्यशाला (एवीएस) के प्रबंध न्यासी थे।
एवीएस एक सदी से अधिक पहले मलप्पुरम जिले के कोट्टक्कल में गांव क्लिनिक के रूप में शुरू हुई थी जो वारियर के मार्गदर्शन में दिन दूनी-रात चौगुनी प्रगति कर करोड़ों रुपये के संगठन में तब्दील होकर दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गई।
वारियर ने एक सदी के अपने जीवनकाल में दुनिया के लाखों रोगियों का इलाज किया और उनसे इलाज कराने वालों में भारत तथा दूसरे देशों के पूर्व राष्ट्रपति एवं पूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल थे।
उन्हें 1999 में पद्मश्री और 2010 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। चिकित्सक के रूप में वारियर ने प्रामाणिक आयुर्वेद उपचार को लोकप्रिय बनाया।
वारियर के मित्रों और शुभचिंतकों ने एक महीने पहले ही कोविड-19 महामारी के बावजूद उनका 100वां जन्मदिन मनाया था।
पांच जून, 1921 को श्रीधरन नंबूदिरी और पन्नियमपिल्ली कुन्ही वारिसियर के घर जन्मे, पन्नियमपिल्ली कृष्णनकुट्टी वारियर (पी के वारियर) की स्कूली शिक्षा कोट्टक्कल में हुई थी। वह भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हुए और पढ़ाई छोड़ दी, लेकिन बाद में फिर से अध्ययन शुरू किया।
आयुर्वेद स्नातक वारियर 1953 में एक हवाई दुर्घटना में अपने बड़े भाई माधव वारियर के निधन के बाद 1954 में आर्य वैद्यशाला के प्रबंध न्यासी बने थे।
आर्य वैद्यशाला (एवीएस) की स्थापना वारियर के चाचा वैद्यरत्नम पी एस वारियर ने 1902 में की थी।
पी के वारियर के नेतृत्व में एवीएस ने वैश्विक प्रसिद्धि हासिल की और यह भारत तथा दूसरे देशों से विद्वानों, छात्रों तथा रोगियों के लिए प्रमुख स्थल बन गई।
एवीएस के अस्पतालों में हर साल लगभग आठ लाख से अधिक लोग नि:शुल्क परामर्श का लाभ उठाते हैं।
यह कोट्टक्कल, दिल्ली और कोच्चि में आयुर्वेदिक अस्पताल चलाती है जहां प्राचीन आयुर्वेदिक औषधियां, चिकित्सा सुविधा और विशेषज्ञ चिकित्सा परामर्श उपलब्ध है।
पी के वारियर की पहल के तहत तीन आधुनिक चिकित्सा विनिर्माण इकाइयां स्थापित की गईं जिनमें गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं भी स्थापित हैं।
इन इकाइयों में 550 से अधिक प्राचीन एवं नवीन औषधियों का उत्पादन होता है जो 26 शाखा चिकित्सालयों के माध्यम से रोगियों को उपलब्ध कराई जाती हैं और देशभर में इनके 1600 से अधिक अधिकृत डीलर हैं। वारियर ने आयुर्वेद पर कई अनुसंधान पत्र प्रकाशित कराए थे।
वारियर के भाषणों और लेखों का एक संग्रह मलयालम भाषा में ‘पदमुद्रकाल’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।