पुण्यतिथिः राजनीति में कांग्रेस के सहारे शिखर पर पहुंचे वीपी सिंह, भ्रष्टाचार पर मतभेद के बाद राजीव गांधी को सत्ता से किया बेदखल  

By रामदीप मिश्रा | Updated: November 27, 2019 15:29 IST2019-11-27T15:29:26+5:302019-11-27T15:29:26+5:30

वीपी सिंह 1969-1971 में उत्तर प्रदेश की विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह 1980 में यूपी के सीएम बने। इस दौरान उनके सामने कई चुनौतियां आ गई थीं। खासकर प्रदेश में पनपे गुंडाराज की चुनौती सबसे बड़ी थी, जिससे उन्होंने सख्ती से निपटा।

vp singh death anniversary know about his political career, highlights, rajiv gandhi politics | पुण्यतिथिः राजनीति में कांग्रेस के सहारे शिखर पर पहुंचे वीपी सिंह, भ्रष्टाचार पर मतभेद के बाद राजीव गांधी को सत्ता से किया बेदखल  

File Photo

Highlightsभारत के आठवें प्रधानमंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) की आज पुण्यतिथि है। उनका निधन 27 नवम्बर, 2008 को हो गया था। वीपी सिंह को गरीबों और पिछड़ी जातियों के रहनुमा कहा जाता है।

भारत के आठवें प्रधानमंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) की आज पुण्यतिथि है। निधन 27 नवम्बर, 2008 को हुआ था। वीपी सिंह को गरीबों और पिछड़ी जातियों के रहनुमा कहा जाता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक राजघराने में 25 जून, 1931 को हुआ था। वह इलाहाबाद की मांडा रियासत के राजा थे।   

छात्र जीवन से रही वीपी सिंह की राजनीति में रुचि

अगर उनके राजनीतिक सफर पर सू्क्ष्म दृष्टि डालें तो वीपी सिंह की छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि रही। उन्होंने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस का दामन पकड़कर शुरू किया। उनके भाषण और आमजन के प्रति लगाव लगातार उन्हें एक नई ऊंचाई पर ले गया। वह 1969-1971 में उत्तर प्रदेश की विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह 1980 में यूपी के सीएम बने। इस दौरान उनके सामने कई चुनौतियां आ गई थीं। खासकर प्रदेश में पनपे गुंडाराज की चुनौती सबसे बड़ी थी, जिससे उन्होंने सख्ती से निपटा। साथ ही साथ उपेक्षित और शोषित वर्ग के लिए आगे आए। इस वजह से उनका कद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ता जा रहा था और यही वजह रही कि राजीव गांधी ने उनको कांग्रेस ने दिल्ली बुला लिया और 29 जनवरी, 1983 को केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री का जिम्मा सौंप दिया। वह यूपी के मुख्यमंत्री सिर्फ दो साल रहे।

वीपी सिंह 1984 में बने भारत के वित्तमंत्री

वीपी सिंह को राज्यसभा का सदस्य गया और और 1984 को वह भारत के वित्तमंत्री भी बने। इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई, जिसके बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी राजीव गांधी ने संभाली। राजीव गांधी के पीएम बनने के बाद वीपी सिंह ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया और कांग्रेस की खिलाफत करने लगे। इस दौरान उन्हें रक्षामंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने बोफोर्स सौदे में हुई कमीशनखोरी का जिक्र किया, जिससे तहलका मच गया था। इस बात को लेकर राजीव गांधी के बीच मतभेद हो गया और उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उन्हें 1987 में कांग्रेस से निकाल दिया गया। 

राजीव गांधी से मतभेद आए सामने

वीपी सिंह ने कांग्रेस से निकलने के बाद पार्टी की जमकर खिलाफत की और उन्होंने राजीव गांधी को भ्रष्टाचार, महंगाई और कई मुद्दों पर घेरा। 1987 में वीपी सिंह ने गैर कांग्रेसी दलों के साल मिलकर अपना एक अलग मोर्चा बना लिया, जिसमें बीजेपी और वामदलों ने भी समर्थन दिया। कुल मिलाकर वीपी सिंह को सात दलों को समर्थन मिला। साल 1989 को आम चुनाव करवाए गए, जिसमें कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ और वीपी सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को पूर्ण बहुमत मिला और उन्होंने आठवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। वहीं, चौधरी देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। 

एक साल से पहले गिर गई सरकार

वीपी सिंह की सरकार बनने के बाद घटक दलों के बीच आपसी खींचतान जारी रही। चौधरी देवीलाल मेहम कांड को लेकर नाराजगी सामने आने लगी। वहीं, वीपी सिंह ने 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया, जिससे बीजेपी खफा हो गई। इसके बाद बीजेपी ने वीपी सिंह पर राम मंदिर मुद्दे को लेकर दबाव बनाया। हालांकि मामले को सुलझाने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके बाद 1990 को वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी सरकार एक साल से भी कम समय चली।

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