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विस्तार से जानिए बादल फटने का क्या मतलब?, आईआईटी जम्मू और एनआईएच रुड़की शोध पत्र से समझिए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 5, 2025 22:14 IST

Uttarkashi Cloudburst News: भारतीय हिमालयीय क्षेत्र में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में शामिल बादल फटने की घटनाओं में बेहद कम समय में सीमित इलाके में भारी मात्रा में बारिश होती है।

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ठळक मुद्देआकाशीय बिजली चमकने के बीच 100 मिलीमीटर प्रति घंटे से अधिक की दर से बारिश होने से है। हिमालयी क्षेत्र के अन्य हिस्सों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्रफल में बादल फटने की घटनाएं “बहुत अधिक” होती हैं।हालिया घटनाएं ज्यादा घातक पाई गई हैं और इन्होंने अधिक लोगों को प्रभावित किया है।

Uttarkashi Cloudburst News: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ ने ऊंचाई पर स्थित गांवों में भारी तबाही मचाई है। आइए विस्तार से जानें कि बादल फटने का क्या मतलब है। भारतीय हिमालयीय क्षेत्र में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में शामिल बादल फटने की घटनाओं में बेहद कम समय में सीमित इलाके में भारी मात्रा में बारिश होती है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, बादल फटने की घटना से आशय 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तेज हवाओं और आकाशीय बिजली चमकने के बीच 100 मिलीमीटर प्रति घंटे से अधिक की दर से बारिश होने से है। हालांकि, 2023 में जारी एक शोध पत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जम्मू और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) रुड़की के शोधकर्ताओं ने बादल फटने की घटना को “एक छोटी-सी अवधि में 100-250 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से अचानक होने वाली बारिश के रूप में परिभाषित किया है, जो एक वर्ग किलोमीटर के छोटे-से दायरे में दर्ज की जाती है।”

इस शोधपत्र को ‘इंटरनेशल हैंडबुक ऑफ डिजास्टर रिसर्च’ में प्रकाशित किया गया है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र को असामान्य और चरम मौसमी घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील माना जाता है, जिनमें बादल फटना, अत्यधिक वर्षा, अचानक आई बाढ़ और हिमस्खलन शामिल हैं। कहा जाता है कि जलवायु परिवर्तन के तीव्र होने के साथ ही इन आपदाओं का खतरा बढ़ता जाता है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के जिलों सहित इस पूरे क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा की घटनाएं आमतौर पर मानसून के मौसम में दर्ज की जाती हैं। अत्यधिक बारिश से बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान तो होता ही है, साथ ही अचानक बाढ़ आने, भूस्खलन की घटनाएं घटने, यातायात बाधित होने और संपर्क टूटने का जोखिम बढ़ जाता है।

आईआईटी जम्मू और एनआईएच रुड़की के शोधपत्र में कहा गया है कि समुद्र तल से 1,000 से 2,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जगहों पर (जिनमें मुख्यत: हिमालय की घनी आबादी वाली घाटियां शामिल हैं) चरम मौसमी घटनाएं काफी आम हैं। उत्तरकाशी समुद्र तल से लगभग 1,160 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

शोधपत्र के अनुसार, उत्तराखंड में भारतीय हिमालयी क्षेत्र के अन्य हिस्सों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्रफल में बादल फटने की घटनाएं “बहुत अधिक” होती हैं। इसमें कहा गया है कि बादल फटने की हालिया घटनाएं ज्यादा घातक पाई गई हैं और इन्होंने अधिक लोगों को प्रभावित किया है।

गत 26 जुलाई को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में भारी बारिश हुई, जिससे पहाड़ी से पत्थर एवं चट्टानें गिरने लगीं और केदारनाथ जाने वाला पैदल मार्ग अवरुद्ध हो गया। यात्रा मार्ग पर फंसे 1,600 से अधिक चारधाम यात्रियों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया।

इससे पहले, उत्तराखंड में बड़कोट-यमुनोत्री मार्ग पर सिलाई बैंड में 29 जून को अचानक बादल फटने से एक निर्माणाधीन होटल क्षतिग्रस्त हो गया और आठ से नौ श्रमिक लापता हो गए। शोधकर्ता बादल फटने की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक संगठनों से ठोस नीतियों, योजनाओं और बेहतर प्रबंधन की मांग कर रहे हैं।

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