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UP Politics: अकेले भटक रहे स्वामी प्रसाद फिर मायावती की शरण में जाएंगे

By राजेंद्र कुमार | Updated: September 20, 2025 18:50 IST

वर्ष 2023 में समाजवादी पार्टी (सपा) से नाता तोड़ने के बाद से ही स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी में अकेले भटकते हुए सियासी राह तलाश रहे हैं. बसपा सुप्रीमो उन्हें अपनी शरण में लेले, इसके लिए स्वामी प्रसाद ने अपने तेवर बदले हैं.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा फेरबदल होने वाला है. ओबीसी समाज के एक बड़े नेता फिर से मायावती की शरण में जाने वाले है. यह नेता है, अपनी जनता पार्टी के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य. वर्ष 2023 में समाजवादी पार्टी (सपा) से नाता तोड़ने के बाद से ही स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी में अकेले भटकते हुए सियासी राह तलाश रहे हैं. बसपा सुप्रीमो उन्हे अपनी शरण में लेले, इसके लिए स्वामी प्रसाद ने अपने तेवर बदले हैं. अब वह सपा और योगी सरकार के खिलाफ गरम रुख अपना रहे हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को लेकर नरम रुख अपना रखा है. 

बीते दिनों स्वामी प्रसाद ने बसपा प्रमुख मायावती की तारीफ़ करते हुए उन्हें अब तक का सबसे बेहतर मुख्यमंत्री तक बता दिया था. उनके इस कथन के बाद से यह कहा जा रहा है कि जल्दी ही मायावती उनको बसपा में घर वापसी करने का मौका देंगी, लेकिन इसके पहले स्वामी प्रसाद को आकाश आनंद और अशोक सिद्धार्थ की तरफ अपनी गलती की माफी मांगनी होगी. इसके बाद ही उनकी बसपा में घर वापसी हो जाएगी. 

इसलिए शुरू हुई वापसी पर चर्चा 

बसपा में स्वामी प्रसाद मौर्य की वापसी की चर्चा, दिल्ली में स्वामी प्रसाद की बेटी पूर्व सांसद संघमित्रा मौर्य की दिल्ली में मायावती से मुलाकात के बाद से शुरू हुई है. संघमित्रा ने बसपा के टिकट पर वर्ष 2024 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गई और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बदायूं संसदीय सीट से सांसद चुनी गई. 

वर्ष 2024 के चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया. उसके बाद से ही संघमित्रा अपने सियासी भविष्य की राह तलाश रही हैं, लेकिन अभी उन्हें कहीं ठिकाना नहीं मिला है. यहीं हाल संघमित्रा के पिता स्वामी प्रसाद मौर्य का भी है. वर्ष 2023 में उन्होंने सपा को नाता तोड़ा और अपनी पार्टी बनाई. इसके बाद भी स्वामी प्रसाद सूबे की सियासत में कोई प्रभाव नहीं जमा सके. जबकि अस्सी के दशक में अपनी सियासी पारी का आग़ाज़ करने वाले स्वामी प्रसाद की ओबीसी समाज में एक पहचान है. 

बसपा में उनकी इस पहचान के चलते मायावती ने उन्हे चुनाव हारने के बाद भी अपनी सरकार में मंत्री बनाया था. पार्टी संगठन में भी ज़िम्मेदारी दी थी, लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव से ठीक पहले उन्होने बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. योगी सरकार में वह मंत्री भी बने, लेकिन वर्ष 2022 के वह अखिलेश यादव के साथ हो लिए. यह साथ भी वर्ष 2023 में छूट गया. उसके बाद से स्वामी प्रसाद अकेले ही सूबे की सियासत में भटक रहे हैं. 

मायावती के फैसले पर टिकी स्वामी की वापसी  कहा जा रहा है कि स्वामी प्रसाद ने अपने इस भटकाव को विराम देने के लिए ही अब बसपा की तरफ ध्यान लगाया है. जिसके चलते उन्होंने मायावती की तारीफ करनी शुरू की है. अब वह मायावती को अब तक का सबसे बेहतर मुख्यमंत्री तक बता रहे हैं. जबकि बसपा छोड़ते समय उन्होंने मायावती पर जमकर हमले किए थे. तह उन्होने मायावती को बाबासाहेब के सिद्धांतों और कांशीराम के मिशन से भटक जाने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन अब उसी मायावती के साथ हाथ मिलाने के संकेत दे रहे हैं. 

इसकी भी एक वजह सपा सांसद बाबू सिंह कुशवाहा की स्वामी प्रसाद मौर्य के क्षेत्र में की गई जनसभा है. इस जनसभा में  बाबू सिंह कुशवाहा ने स्वामी प्रसाद के ख़िलाफ़ जमकर हमले किए थे. इस कार्यक्रम के बाद मौर्य समाज ऊंचाहार में दो हिस्सों में बँट गया है. एक तबका स्वामी प्रसाद के साथ तो दूसरा तबका बाबू सिंह कुशवाहा के साथ खड़ा नज़र आ रहा है. इसीलिए भी स्वामी प्रसाद मौर्य अपने लिए मज़बूत ठिकाना तलाश रहे हैं. 

कहा जा रहा है कि नौ अक्टूबर के पहले स्वामी प्रसाद मौर्य की बसपा में घर वापसी हो सकती है, फिलहाल स्वामी प्रसाद को लेकर बसपा का कोई नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. कहा जा रहा है कि बसपा प्रमुख मायावती अचानक ही स्वामी प्रसाद मौर्य के बाबत फैसला लेंगी. उनकी वापसी मायावती के फैसले पर ही टिकी हुई है.

टॅग्स :स्वामी प्रसाद मौर्यबहुजन समाज पार्टी (बसपा)मायावती
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