लखनऊः उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) के सात्म मिलकर कांग्रेस ने बीता लोकसभा चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने सूबे की योगी सरकार को कड़ी शिकस्त दी थी. लेकिन अब अगले साल होने वाले पंचायत चुनावों में कांग्रेस ने सपा के साथ नहीं बल्कि अपने दम पर अकेले ही चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया है. कांग्रेस ने यह फैसला सपा नेताओं के बड़बोले बयानों को सुनने के बाद लिया है. सपा के तमाम छुटभैय्ये नेता कांग्रेस को यूपी में दोयम दर्जे की पार्टी बताते है, ऐसे बयान कांग्रेस नेताओं को अखरते हैं.
यही वजह है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने यूपी में कांग्रेस की ताकत का अहसास सपा नेताओं को कराने की फैसला करते हुए अकेले की पंचायत चुनब लड़ने का फैसला किया. इसी के बाद उन्होने पार्टी नेताओं से यह कह दिया है कि अगर उन्हें विधान सभा चुनावों का टिकट चाहिए तो अपने क्षेत्र में पार्टी के पंचायत उम्मीदवारों को जिताएं. जो जितना सफल होगा, उसकी दावेदारी उतनी ही पुख्ता होगी.
सबसे अधिक निर्दलीय जीते थे
यूपी में अगले मार्च-अप्रैल में पंचायत चुनाव प्रस्तावित हैं. वर्ष 2021 में हुए पंचायत चुनाव में 3,050 जिला पंचायत सदस्य सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सपा से ज्यादा निर्दलीयों ने जीत हुई थी. इसी प्रकार ग्राम प्रधान भी ज्यादातर सत्ताधारी दल के समर्थक नेता ही जीते थे. तब जिला पंचायत सदस्यों में सपा 759, भाजपा 768, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 319, कांग्रेस 125, राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) 69, आम आदमी पार्टी 64 और 944 सदस्य निर्दलीय जीते थे.
इन चुनाव परिणामों के आधार पर भाजपा ने ने निर्दलीय सदस्यों को अपने साथ मिलाकर जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख सीट पर कब्जा जमाया था. इस जोड़तोड़ के चलते भाजपा ने यूपी के 75 में से 67 जिलों में अपना जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया था. जबकि सपा महज पांच जिले में ही अपना अध्यक्ष बना सकी थी. इसके अलावा तीन जिलों में अन्य ने अपना कब्जा जमाया था.
इसलिए अकेले चुनाव लड़ रहे चुनाव
बीते पंचायत चुनावों के ये आंकड़े कांग्रेस के लिए बेहतर नहीं थे, फिर भी उसने अकेले चुनाव लड़ने की फैसला किया था तो इसके पीछे सपा को कांग्रेस की ताकत का अहसास कराने की मंशा है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि बीते पंचायत चुनावों के बाद अखिलेश यादव अकेले चुनाव लड़े थे लेकिन वह भाजपा को सूबे की सत्ता पर काबिज होने से रोक नहीं सके थे.
फिर उन्होने कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा और सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 43 सीटों पर कब्जा जमाकर भाजपा को मात्र 36 सीटों पर सीमित कर दिया. यह जीत कांग्रेस और सपा की एकता का परिणाम थी लेकिन सपा नेताओं ने इसे सिर्फ अपनी जीत के रूप में प्रस्तुत किया और कांग्रेस नेताओं पर टिप्पणी करने लगे.
तो कांग्रेस ने उपचुनावों से दूरी बना ली और भाजपा ने सपा की जीती हुई सीटों को भी अपनी झोली में डाल लिया. इसके बाद भी सपा नेताओं के रुख में कांग्रेस को लेकर कोई परिवर्तन नहीं हुआ तो फिर पंचायत चुनाव में अकेले ही लड़कर पार्टी को मजबूत करने का फैसला लिया गया. इसके के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने ऐलान किया कि पार्टी के जो भी नेता आगामी विधानचुनाव चुनाव लड़ना चाहते हैं,
वह सभी अपने क्षेत्र में पंचायत के पार्टी उम्मीदवारों को जिताकर लाएं. इसे उनकी दावेदारी में एक पैमाने की तरह देखा जाएगा. अजय राय का कहना है कि मिशन 2027 में लंबी छलांग लगाने की तैयारी में जुटी कांग्रेस पंचायत चुनावों को 'टेक ऑफ बोर्ड' की तरह देख रही है.
हमारी मंशा है कि पंचायत चुनावों में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करें ताकि विधानसभा चुनावों में उसे फायदा मिल सके. इसी सोच के तहत पार्टी ने विधानसभा चुनावों में पार्टी की उम्मीदवारी चाहने वालों को साफ शब्दों में बताया है कि वे पंचायत चुनावों पर ध्यान केंद्रित करें. इस फैसले के तहत अब कांग्रेस के नेता अकेले की पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं.