लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार चिकित्सा के क्षेत्र में सुधार के बड़े-बड़े दावे करती है. प्रदेश सरकार का कहना है कि अखिलेश यादव की सरकार में प्रदेश में मात्र 42 मेडिकल कालेज थे, जिसकी संख्या बढ़कर 80 हो गई है. अब सवाल यह है कि क्या यूपी के हर जिले में मानसिक रोगों के इलाज के लिए मनोचिकित्सक की तैनाती है? तो इसका जवाब है, प्रदेश के 75 जिलों में से 26 में एक भी मनोरोग विशेषज्ञ ( डॉक्टर) तैनात नहीं है. यह हाल उस राज्य में है जहां के मेडिकल कालेजों और चिकित्सा संस्थानों में कुल 12,150 मेडिकल की सीटें हैं. इन मेडिकल कॉलेजों और चिकित्सा संस्थानों से करीब 110 मनोरोग विशेषज्ञ हर साल निकल रहे हैं. इसके बाद भी राज्य के 26 जिलों में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए एक भी मनोरोग विशेषज्ञ तैनात नहीं है.
इन 26 जिलों में नहीं कोई मनोरोग विशेषज्ञ
इस सच्चाई बीते दिनों तब उजागर हुई जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन(एनएचएम) ने उक्त 27 जिलों के लिए संविदा पर मनोरोग विशेषज्ञ नियुक्त करने की कोशिश की, लेकिन सिर्फ एक डॉक्टर ही सरकारी अस्पताल में इलाज करने के लिए आगे आया. जबकि एनएचएम डॉक्टरों को पांच लाख रुपए हर माह देने को तैयार है. इसके बाद भी यूपी के उक्त सरकारी अस्पतालों में लोगों के मानसिक रोगों का इलाज करने के लिए मनोरोग विशेषज्ञ आने को तैयार नहीं हैं.
ऐसे में अब एक बार फिर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उक्त 26 जिलों में मनोरोग विशेषज्ञों की तैनाती के लिए विज्ञापन जारी करने की तैयारी में है ताकि उक्त जिलों में लोगों के मानसिक रोगों का इलाज करने ही व्यवस्था हो सके और उक्त जिलों के लोगों को सूबे के अन्य जिलों में इलाज के लिए दौड़भाग ना करनी पड़े.
फिलहाल यूपी में एनएचएम के तमाम प्रयास के बाद भी मथुरा, फिरोजाबाद, संभल, बदायूं, हाथरस, रामपुर, एटा, मैनपुरी, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, फतेहपुर, फर्रुखाबाद, कानपुर देहात,हरदोई, गोंडा, बलरामपुर, संत कबीर नगर, गाजीपुर, जौनपुर, मऊ, सिद्धार्थ नगर, सोनभद्र, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, रायबरेली और बाराबंकी में एक-एक मनोरोग विशेषज्ञ के लिए भर्ती निकाली थी, लेकिन लंबी कवायद के बाद भी सिर्फ रायबरेली के लिए ही मनोरोग विशेषज्ञ मिला है. बाकी के 26 जिलों में कोई भी मनोरोग विशेषज्ञ ने कार्य करने में रुचि नहीं दिखाई. अधिक वेतन देने की तैयारी
उत्तर प्रदेश के जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल डा. अरविंद कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पूरे देश में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की निगरानी करता है. इस व्यवस्था के तहत राज्यों में हाईकोर्ट समय-समय पर मानसिक रोगियों के इलाज के संबंध में याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिशा-निर्देश जारी करता है. उक्त निर्देशों का अनुपालन केंद्र में केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और प्रदेश के स्तर पर राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण करता है. इसके नोडल प्रभारी प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य होते हैं. जबकि जिला स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड (एमएचआरबी) जिला जज की देखरेख में काम करता है.
स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का नोडल अधिकारी बनाया जाता है. यह सभी लोग जिलों में मनोरोग विशेषज्ञों की तैनाती की व्यवस्था करते हैं. डा. अरविंद का कहना है कि हाईकोर्ट से समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी होने के बावजूद प्रदेश में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए मनोरोग विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं. और अब मनोरोग विशेषज्ञों के रिक्त पदों को भरने के लिए उप्र लोक सेवा आयोग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन फिर से विज्ञापन निकाल की तैयारी कर रहा है.
अब यह कोशिश की जा रही है कि सभी जिलों में एक-एक विशेषज्ञ की तैनाती हो जाए. छोटे जिलों के लिए विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं. इसके लिए संविदा विशेषज्ञों को अधिकतम भुगतान की व्यवस्था की गई है. ताकि इन जिलों में भी अधिक वेतन मिलने से मनोरोग विशेषज्ञ मिल जाये.