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बिहार एनडीए से बाहर जाएंगे केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान?, जोर पर मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा, लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

By एस पी सिन्हा | Updated: September 8, 2025 15:04 IST

तेजस्वी यादव के अलावा भाजपा से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर, हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और चिराग पासवान का नाम इस सूची में शामिल हैं।

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ठळक मुद्देमुख्यमंत्री कुर्सी की दौड़ में कई युवा चेहरे दो-दो हाथ के लिए तैयार हैं।विधानसभा चुनाव में युवाओं की भूमिका अहम होने वाली है। सभी नेताओं की ओर से दावेदारी भी शुरू हो गई है।

पटनाः लोक जनशक्ति पार्टी(रामविलास) प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान को मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा को देखते हुए बिहार में एनडीए के भीतर उनकी भूमिका को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। दरअसल, चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में सक्रिय होने के संकेत दिए हैं। उनकी पार्टी के नेता उनको मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं। चिराग के जीजा और जमुई से सांसद अरुण भारती ने संकेत दिए हैं कि चिराग पासवान विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं और बिहार उन्हें याद भी कर रहा है। उन्होंने तर्क दिया है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की इच्छा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष विधानसभा का चुनाव लड़े। बता दें कि विधानसभा चुनाव में युवाओं की भूमिका अहम होने वाली है। मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में कई युवा चेहरे दो-दो हाथ के लिए तैयार हैं।

इसमें नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के अलावा भाजपा से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर, हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और चिराग पासवान का नाम इस सूची में शामिल हैं। सभी नेताओं की ओर से दावेदारी भी शुरू हो गई है।

अभी पिछले दिनों मुजफ्फरपुर में पार्टी की तरफ से आयोजित नव-संकल्प महा सभा में लोजपा(रा) नेताओं ने “बिहार का सीएम कैसा हो, चिराग पासवान जैसा हो” के नारे खूब लगाए। इस तरह चिराग खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं। जबकि एनडीए नीतीश कुमार को अगला मुख्यमंत्री बता रहा है।

लेकिन लोजपा(रा) चिराग को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रही है। अपनी इस सभा में चिराग पासवान ने बिहार को पिछड़ा बताया। पलायन और बेरोजगारी को लेकर सवाल उठाया। जाहिर है उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कामकाज पर सवाल उठाया। इसबीच सीटों के बंटवारे में लोजपा (रा) 43 सीटों की मांग कर रही है।

हालांकि एनडीए में अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि गठबंधन में उन्हें कितनी सीटें दी जाएंगी। ऐसे में इन बातों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि मन लायक सीटें नहीं मिलने पर चिराग क्या करेंगे? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां को अपशब्द कहे जाने के विरोध में चार सितंबर को एनडीए से जुड़ी महिलाओं ने बिहार बंद का आह्वान किया था।

चिराग उस दिन मुजफ्फरपुर में पार्टी की नव संकल्प महासभा को संबोधित कर रहे थे। पार्टी की सांसद शांभवी चौधरी गर्व से बता रही थीं कि बिहार बंद के बावजूद बड़ी संख्या में लोग सभा में आए हैं। वहीं, चिराग के जीजा सांसद अरुण भारती के अनुसार-संकल्प महासभा में लाखों का जनसैलाब उमड़ गया था। चिराग बदलाव के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब अपने नेता को प्रदेश का नेतृत्व सौंपेंगी। 

उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव से ही जीतन राम मांझी और चिराग पासवान में ठनी है। गया लोकसभा चुनाव में जीतन राम मांझी हम पार्टी से एनडीए के उम्मीदवार थे। जीतन राम मांझी के चुनाव प्रचार में चिराग पासवान नहीं गये थे। उपचुनाव में भी इमामगंज में जाने से इनकार कर दिया था। मांझी और चिराग पासवान के बीच दलित नेता होने की जंग तब से ही शुरू है।

एक मांझी और दूसरे पासवान जाति से आते हैं। मांझी का दावा है कि वे बिहार की सबसे बड़ी दलित आबादी का प्रतिनिधत्व करते हैं। चिराग का भी दावा रहता है कि पासवान का सौ फीसदी वोट वे ट्रांसफर कराने की क्षमता रखते हैं। इसके साथ ही दलितों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। अपने-अपने दावों के बीच उनमें एक दूसरे से बड़ा दलित नेता होने की जंग चल रही है।

बता दें कि लोकसभा में चिराग पासवान को पांच सीटें मिलीं। जीतन राम मांझी व उपेंद्र कुशवाहा को एक-एक सीट दी गई। इसमें उपेंद्र कुशवाहा की हार हुई। लोकसभा चुनाव में भी इन दोनों दलों की अपेक्षा चिराग पासवान को एनडीए में ज्यादा तरजीह मिली। विधानसभा चुनाव में भी इन दोनों दलों की अपेक्षा चिराग पासवान को अधिक सीटें मिलने की संभावना है।

ऐसे में जीतन राम मांझी की पार्टी हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोमो को काफी कम सीटों पर संतोष करना पड़ेगा। इस कारण मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने चिराग को निशाने पर लिया है। रालोमो प्रमुख एवं राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा ने भी चिराग पासवान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि ये तीनों पार्टियां भाजपा के कोटे में हैं।

मतलब, भाजपा को ही इन तीनों पार्टियों को साधने की जिम्मेवारी है। इन तीनों पार्टियों को कितनी सीटें मिलेंगी, यह भाजपा ही तय करेगी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल कहते हैं कि सभाओं में दलों के कार्यकर्ता उत्साह में नारा (नेता कैसा हो, ऐसा हो) का नारा लगा ही देते हैं। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि तीनों की सियासी बयानबाजी के पीछे अधिक से अधिक सीटें पाने की कवायद है।

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