दिल्ली सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि उपराज्यपाल के पास राज्य द्वारा कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान कथित ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की जांच के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के गठन पर आपत्ति जताने का कोई कारण या कानूनी औचित्य नहीं है। सरकार ने कहा कि एचपीसी के संविधान में हस्तक्षेप करने को लेकर उपराज्यपाल द्वारा आठ जून की अपनी नोटिंग में बताए गए कारण ''गलत'' हैं और अनुच्छेद 239एए (4) के तहत दी गई शक्ति के प्रयोग के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित प्रावधान के अनुरूप नहीं है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ के समक्ष दायर एक हलफनामे में सरकार ने कहा, ''इन परिस्थितियों में, प्रतिवादी (दिल्ली सरकार) के एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन के निर्णय को अंतिम और बाध्यकारी माना जाना चाहिए।'' अदालत रीति सिंह वर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने मई में महामारी की दूसरी लहर के दौरान अपने 34 वर्षीय पति को खो दिया था। याचिका में दिल्ली सरकार को एचपीसी को संचालित करने, उनके मामले को समिति को सौंपने और उसकी सिफारिशों के अनुसार मुआवजा देने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। महिला ने कहा कि उसके पति को 10 मई को कोविड-19 के इलाज के लिए यहां एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 14 मई को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल को याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया और मामले को 21 सितंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे महामारी की दूसरी लहर के दौरान व्यक्तियों की मौत के मामलों की जांच करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा एचपीसी के गठन के बारे में पता चला। हालांकि, उपराज्यपाल द्वारा समिति के गठन को स्थगित रखा गया है। याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा कि 27 मई को एचपीसी का गठन किया गया था, लेकिन इसके गठन के आदेश को 31 मई को स्थगित किया गया।
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