गलती मानवीय होती है न्यायिक पद पर बैठे हममें से कोई भी ऐसा नहीं है जो दावा कर सके कि हमने कभी गलत आदेश नहीं सुनायाः कोर्ट

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 4, 2019 06:14 PM2019-10-04T18:14:03+5:302019-10-04T18:14:03+5:30

शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता ‘पवित्र’ है और जब तक कदाचार तथा बाहरी प्रभाव के स्पष्ट आरोप नहीं हैं तब तक केवल इस आधार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं होनी चाहिए कि किसी न्यायाधीश ने गलत आदेश सुनाया है।

The mistake is human, there is no one of us sitting in a judicial office who can claim that we have never given a wrong order: Court | गलती मानवीय होती है न्यायिक पद पर बैठे हममें से कोई भी ऐसा नहीं है जो दावा कर सके कि हमने कभी गलत आदेश नहीं सुनायाः कोर्ट

अधिकतर वादी उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय आने का खर्च नहीं उठा पाते।

Highlights जब तक मजबूत, निडर और स्वतंत्र न्यायपालिका नहीं होगी, कानून का शासन नहीं रह सकता, लोकतंत्र नहीं रह सकता।पीठ ने बिहार के एक न्यायिक अधिकारी की याचिका पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई न्यायाधीश यह दावा नहीं कर सकता कि उन्होंने कभी गलत आदेश नहीं सुनाया है।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि किसी जज के खिलाफ महज गलत आदेश जारी करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई तब तक नहीं शुरू की जानी चाहिए जब तक बाहरी प्रभाव के सबूत नहीं हों। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता ‘पवित्र’ है और जब तक कदाचार तथा बाहरी प्रभाव के स्पष्ट आरोप नहीं हैं तब तक केवल इस आधार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं होनी चाहिए कि किसी न्यायाधीश ने गलत आदेश सुनाया है।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पिछले सप्ताह अपने आदेश में कहा, ‘‘गलती मानवीय होती है न्यायिक पद पर बैठे हममें से कोई भी ऐसा नहीं है जो दावा कर सके कि हमने कभी गलत आदेश नहीं सुनाया।’’

पीठ ने कहा, ‘‘कानून व्यवस्था का पालन करने वाले देश में न्यायपालिका की आजादी पवित्र है। जब तक मजबूत, निडर और स्वतंत्र न्यायपालिका नहीं होगी, कानून का शासन नहीं रह सकता, लोकतंत्र नहीं रह सकता।’’ उन्होंने कहा कि केवल उच्च अदालतों के स्तर पर ही नहीं बल्कि जिला स्तर की न्यायपालिका से भी स्वतंत्रता और निडरता की अपेक्षा होती है क्योंकि अधिकतर वादी उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय आने का खर्च नहीं उठा पाते।

पीठ ने बिहार के एक न्यायिक अधिकारी की याचिका पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं और जिन्होंने अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू किये जाने को चुनौती दी थी। 

Web Title: The mistake is human, there is no one of us sitting in a judicial office who can claim that we have never given a wrong order: Court

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