बांग्लादेश को छोड़कर भारत आए हिंदुओं के दिलो दिमाग पर जुल्म और यातना की यादें अभी भी ताजा, विस्थापन का दर्द कह नहीं सकते

By भाषा | Updated: January 21, 2020 17:10 IST2020-01-21T17:10:07+5:302020-01-21T17:10:07+5:30

पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर शरणार्थी के रूप में भारत आये हिन्दू अल्पसंख्यक बताते हैं कि मुस्लिम समाज के लोग हिन्दू कालोनियों में आकर अल्लाहो अकबर के नारे लगाते हुए भयानक आगजनी, लूटपाट, महिलाओं के साथ बलात्कार, बच्चों, बड़ों की हत्या तक कर रहे थे।

The memories of persecution and torture on the hearts of Hindus who came to India except Bangladesh are still fresh, can not say the pain of displacement | बांग्लादेश को छोड़कर भारत आए हिंदुओं के दिलो दिमाग पर जुल्म और यातना की यादें अभी भी ताजा, विस्थापन का दर्द कह नहीं सकते

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर खासा उत्साह है।

Highlightsविस्थापन का दर्द आज भी उनकी आंखों से छलक पड़ता है। तंग होकर और अपनी जान बचाकर लाखों लोग वहां से भागकर भारत में आ गए।

पूर्वी पाकिस्तान यानि मौजूदा बांग्लादेश को छोड़कर भारत आए हिंदुओं के दिलो दिमाग पर वहां उन पर हुए अत्याचार की यादें अभी भी ताजा हैं।

विस्थापन का दर्द आज भी उनकी आंखों से छलक पड़ता है। पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर शरणार्थी के रूप में भारत आये हिन्दू अल्पसंख्यक बताते हैं कि मुस्लिम समाज के लोग हिन्दू कालोनियों में आकर अल्लाहो अकबर के नारे लगाते हुए भयानक आगजनी, लूटपाट, महिलाओं के साथ बलात्कार, बच्चों, बड़ों की हत्या तक कर रहे थे।

इससे तंग होकर और अपनी जान बचाकर लाखों लोग वहां से भागकर भारत में आ गए। इन लोगों में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर खासा उत्साह है, जो आज राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में हुई विशाल जनसभा में नजर आया।

अब इन लोगों को भारतीय नागरिकता मिलने की उम्मीद बढ़ गई है और इसीलिए वे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जनसभा में शामिल होने आये थे। खीरी जिले के रमिया बेहड़ ब्लॉक में सुजानपुर (कृष्णनगर) के रहने वाले अनुकूल चन्द्र दास ने बताया, ''हम ज्यादातर लोग खुलना, जैसोर और फरीदपुर के रहने वाले थे। शुरुआत में 200 के आसपास परिवार विस्थापित होकर सन् 1952 में आये थे।''

उन्होंने बताया, ''तब सरकार की ओर से पांच एकड़ जमीन, एक कमरे का मकान और एक जोड़ी बैल दिये गए थे। बाद में 1964 में सरकार ने जमीन को पहले पांच से घटाकर साढ़े तीन एकड़ और फिर ढाई एकड़ कर दिया। 1964 के बाद विस्थापित होकर आये लोगों को सरकार ने पंजीकृत नहीं किया।

दास ने कहा, ''वो लोग जहां तहां सड़क के किनारे जहां रोजी रोटी मिली, वहां रहे। अब सीएए लागू होने के बाद इन सब को सभी सुविधाएं मिल सकेंगी।'' जनसभा का आयोजन राजधानी के बंग्ला बाजार इलाके में स्थित कथा पार्क में किया गया था । रैली स्थल पर ही इन शरणार्थियों को मुख्य मंच के सामने बैठाया गया था। ये सभी सीएए के समर्थन में पोस्टर और तख्तियां लिये हुए थे और लगातार नारे लगा रहे थे।

नारे 'भारत माता की जय' से लेकर 'वन्दे मातरम', 'नरेन्द्र मोदी जिन्दाबाद', 'अमित शाह जिन्दाबाद' और 'जय श्रीराम जय जय श्रीराम' लग रहे थे। दास ने बताया कि जब उनके पिताजी, मां, दादी और उनका एक छोटा भाई पूर्वी पाकिस्तान के जिला फरीदपुर की तहसील गोपालगंज क्षेत्र से विस्थापित होकर आए, तब उनकी उम्र मात्र 14 साल थी।

तब उनका परिवार शुरुआत में माना कैम्प, रायपुर तब के मध्य प्रदेश और वर्तमान छत्तीसगढ़ में रुका। तीन माह तक ट्रांजिट कैम्प में रुकने के बाद पहले 1700 परिवार उधम सिंह नगर और रुद्रपुर आये। वहां से सरकार ने इन परिवारों को खीरी जिले में भेजा। बाद में भी हजारों परिवार लगातार 1970 तक खीरी में आकर बसे।

रवीन्द्रनगर, मोहम्मदी तहसील खीरी के रहने वाले निर्मल विश्वास ने बताया कि उनके परिवार के लोग बांग्लादेश के जसोर जिले से आये थे। तब निर्मल आठ साल के थे । 1964 में अपने माता पिता के बाद आये निर्मल के पिता खीरी तक नहीं पहुंचे और विस्थापन की दौड़ में कलकत्ता में ही उनकी मृत्यु हो गयी।

आज निर्मल 65 साल के बुजुर्ग हैं। कुछ यही कहानी रवीन्द्र नगर के ही रहने वाले विधान बिस्वास की है, जो विस्थापन के समय एक वर्ष के थे । जुल्म और यातनाओं के जो अनुभव बिस्वास ने अपने वरिष्ठों से सुने, उसे बताते हुए आज भी उनके रोंगटे खडे हो जाते हैं लेकिन अब उन्हें उम्मीद है कि सीएए लागू होने के बाद उन्हें भारत की मिट्टी नसीब हो सकेगी। 

Web Title: The memories of persecution and torture on the hearts of Hindus who came to India except Bangladesh are still fresh, can not say the pain of displacement

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