निर्भया के माता-पिता नहीं करेंगे लोकसभा चुनाव 2019 में मतदान, कहा- लोगों की व्यवस्था पर भरोसा नहीं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 25, 2019 19:04 IST2019-04-25T19:04:56+5:302019-04-25T19:04:56+5:30

निर्भया के माता-पिता ने कहा कि पार्टियों द्वारा जताई गई सहानुभूति और उनके वादे केवल एक ‘‘राजनीतिक नौटंकी’’ है क्योंकि दोषी अभी तक जीवित हैं। दंपति ने आरोप लगाया कि सड़कें शहर की महिलाओं और बच्चों के लिए असुरक्षित बनी हुई है।

The judgment has come, but justice continues to elude them. And Nirbhaya's parents want to get the message across to those in power. They have decided not to cast their votes for any political party in next year's general elections, citing the tiring pace | निर्भया के माता-पिता नहीं करेंगे लोकसभा चुनाव 2019 में मतदान, कहा- लोगों की व्यवस्था पर भरोसा नहीं

माता आशा देवी और पिता बद्रीनाथ सिंह

Highlightsसामूहिक बलात्कार की शिकार हुई छात्रा की माता आशा देवी और पिता बद्रीनाथ सिंह का कहना है कि शायद वे इस बार वोट न दें। सिंह दंपति का कहना है कि वे पार्टियों द्वारा उनसे किए गए न्याय के वादों से थक चुके हैं और इनके बारे में कुछ नहीं किया जा रहा है।

दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के जोर पकड़ने के साथ ही नेता जहां लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर रहे है तो वहीं सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई छात्रा की माता आशा देवी और पिता बद्रीनाथ सिंह का कहना है कि शायद वे इस बार वोट न दें।

वर्ष 2012 में पूरे देश की संवेदनाओं को बुरी तरह झकझोर देने वाले इस मामले में पीड़िता निर्भया (काल्पनिक नाम) के साथ बर्बरतापूर्ण सामूहिक दुष्कर्म किया गया और बाद में उसकी मौत हो गई थी। सिंह दंपति का कहना है कि वे पार्टियों द्वारा उनसे किए गए न्याय के वादों से थक चुके हैं और इनके बारे में कुछ नहीं किया जा रहा है।

गौरतलब है कि 16 दिसम्बर, 2012 की रात को सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुई पराचिकित्सक छात्रा की इस घटना के 11 दिनों बाद सिंगापुर के एक अस्पताल में मौत हो गई थी। छात्रा को बाद में ‘निर्भया’ के रूप में जाना जाने लगा। निर्भया के माता-पिता ने कहा कि पार्टियों द्वारा जताई गई सहानुभूति और उनके वादे केवल एक ‘‘राजनीतिक नौटंकी’’ है क्योंकि दोषी अभी तक जीवित हैं।

दंपति ने आरोप लगाया कि सड़कें शहर की महिलाओं और बच्चों के लिए असुरक्षित बनी हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारों ने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए। उन्होंने कहा, ‘‘सीसीटीवी कैमरे अभी तक नहीं लगाये गये...देश अभी तक असुरक्षित बना हुआ है, माताएं अपनी बेटियों के घर लौटने तक चिंतित रहती है।

आशा देवी ने कहा, ‘‘लोगों का व्यवस्था पर कोई भरोसा नहीं है। मुझे इस बार किसी भी पार्टी के लिए मतदान करने का मन नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि उनकी बेटी से दुष्कर्म और उसकी हत्या हुए सात वर्ष हो चुके है लेकिन मौत की सजा का फैसला लागू होना बाकी है।

निर्भया के पिता ने कहा, ‘‘कुछ भी नहीं बदला। इस बार मुझे भी अपना वोट डालने जाने का मन नहीं है। व्यवस्था में मेरा विश्वास डगमगाया है।’’ उन्होंने कहा कि सभी पार्टियां महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण की बात करती हैं लेकिन उनके पास इसके लिए कोई रोड मैप नहीं है।

उन्होंने कहा कि 2013 के बजट में केन्द्र सरकार द्वारा घोषित एक कोष निर्भया निधि का ‘‘समुचित ढंग से इस्तेमाल’’ नहीं किया गया है। निर्भया के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी छह लोगों को सितम्बर 2013 में मौत की सजा सुनाई गई थी। इसे 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था।

आरोपियों में से एक आरोपी राम सिंह ने जेल में आत्महत्या कर ली थी और एक अन्य आरोपी एक किशोर को बलात्कार और हत्या मामले में दोषी ठहराया गया था और उसे एक सुधार गृह में अधिकतम तीन वर्ष की सजा दी गई थी। पिछले वर्ष दिसम्बर में शीर्ष अदालत ने मामले में दोषी चार लोगों को तत्काल फांसी पर लटकाये जाने के निर्देश दिये जाने के आग्रह वाली एक याचिका को खारिज कर दिया था।

गत वर्ष नौ जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने तीन दोषियों-मुकेश (31), पवन गुप्ता (24) और विनय शर्मा (25) की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिनमें उन्होंने 2017 के उसके निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। इस निर्णय में शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा था। मौत की सजा पाये चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह (33) ने शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की थी। 

Web Title: The judgment has come, but justice continues to elude them. And Nirbhaya's parents want to get the message across to those in power. They have decided not to cast their votes for any political party in next year's general elections, citing the tiring pace



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