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कश्मीर: प्रशासन और मांस बेचने वालों के बीच तनातनी से आम लोग है काफी परेशान, बकरे की मीट नहीं मिलने पर लोग मछली और ऊंट के मांस खरीदने पर है मजबूर

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: January 9, 2023 17:22 IST

आपको बता दें कि कश्मीरी करीब 51 हजार टन से अधिक मांस एक साल में खा जाते हैं जिसमें से 21 हजार टन के करीब मांस देश के अन्य भागों से मंगवाया जाता है। अगर आंकड़ों की बात करें तो कश्मीर में 1200 करोड़ के मांस की बिक्री प्रतिवर्ष होती है।

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ठळक मुद्देकश्मीरियों के सामने एक बार फिर से मांस मिलने का संकट गहरा रहा है। प्रशासन और मांस बेचने वालों के बीच रेट को लेकर तनातनी से यह कमी आई है। ऐसे में बकरे के मांस में कमी के कारण कश्मीरी अब मछली और ऊंट के मांस को मजबूरन खरीद रहे है।

जम्मू: एक बार फिर कश्मीर में मांस का संकट पैदा हो गया है। कश्मीरियों को बकरे के मांस की कमी का सामना इसलिए नहीं करना पड़ रहा है कि कश्मीर में बकरों की कमी है बल्कि उनका मांस बेचने वालों और प्रशासन के बीच रेट को लेकर चल रहे विवाद के बाद कश्मीरियों को अब अन्य जानवरों के मांस की ओर मुढ़ना पड़ा है। 

हालांकि इस विवाद के बाद मछली की बिक्री में भी इजाफा हुआ है। जानकारी के लिए कश्मीरी एक साल में 51 हजार टन से अधिक मांस को डकार जाते हैं। इनमें बकरे और मुर्गे ही ज्यादातर शामिल हैं।

केटीए ने सरकार से यह मांग की है

इस मामले पर श्रीनगर कश्मीर व्यापार गठबंधन (केटीए) में कृत्रिम संकट, कमी और मटन की कालाबाजारी पर आक्रोश व्यक्त करते हुए सरकार से हितधारकों के साथ आपसी समझ के साथ इस मुद्दे को हल करने की मांग की है। केटीए के अध्यक्ष एजाज अहमद शाहदार ने कहा कि श्रीनगर में पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से मांस की कृत्रिम कमी पैदा हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप बीमार रोगियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

पिछले 8 महीने में दूसरी बार बढ़ी है कीमत

दरअसल प्रशासन ने 8 महीनों के भीतर दूसरी बार कीमतों में वृद्धि करते हुए बकरे के मांस की कीमत प्रति किग्रा रू 535 फिक्स की है। पिछले साल मार्च महीने में भी इसमें वृद्धि करते हुए इसे 480 किया गया था लेकिन मांस विक्रेताओं को यह मंजूर नहीं है। नतीजतन कई महीनों से चल रहे विवाद के बीच मांस विक्रेताओं ने मांस बेचना लगभग आधे से भी कम कर दिया है जिनका कहना है कि उन्हें इन महीनों में 500 करोड़ से अधिक का घाटा हो चुका है। आपको बता दें कि पिछले साल वे कई दिनों तक वे हड़ताल पर भी रहे हैं।

सरकार द्वारा 535 प्रति किग्रा के मूल्य को सख्ती से लागू करने और आधिकारिक मूल्य सूची का उल्लंघन करने वाले कसाइयों की दुकानों को सील करने के बाद, जहां अधिकांश कसाई की दुकानें बंद थीं, वही कुछ कसाई अपने समय में सुबह और शाम को अतिरिक्त कीमतों पर मांस बेच रहे हैं।

परंपरा स्वरूप मांस की कमी के कारण नहीं मिल पा रही है बीमोरों को मीट

शाहधर ने कहा कि घाटी में सर्दियों में बीमारों को मांस देने की परंपरा है, लेकिन मांस की कमी ने बीमार लोगों को भी परेशान कर दिया है। उन्होंने कहा कि हितधारकों और जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए समझबूझ कर मामले को सुलझाया जाना चाहिए, ताकि बनावटी कमी खत्म हो और कसाई की दुकानें भी खुल सकें। शाहधर ने प्रशासन से मासूम उपभोक्ताओं की मजबूरी का फायदा उठाने वाले कसाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी मांग की है।

मांस की कमी के बीच लोगों ने मछली और ऊंट के मीट को किया खरीदना शुरू

नतीजतन 85 परसेट नान वेज कश्मीरियों के लिए मांस का संकट पैदा हो गया तो वे मछली और ऊंटों के मांस की ओर मुढ़ने लगे हैं। जहां कश्मीर में कभी कभार ईद के मौके पर ही ऊंटों का मांस उपलब्ध होता था वहां अब यह बहुतयात में मिलने तो लगा है पर कश्मीरी अभी भी उतनी मात्रा में इसे पाने में असमर्थ हैं जितना उन्हें चाहिए।

ऊंट के मांस में बिक्री तेज हुई तो मछली के दाम भी बढ़ सकते है

जानकारी के लिए कश्मीरी करीब 51 हजार टन से अधिक मांस एक साल में खा जाते हैं जिसमें से 21 हजार टन के करीब मांस देश के अन्य भागों से मंगवाया जाता है। अगर आंकड़ों की बात करें तो कश्मीर में 1200 करोड़ के मांस की बिक्री प्रतिवर्ष होती है। 

बकरे के मांस की कमीतों पर बने हुए विवाद के बाद अगर ऊंट के मांस की तलाश तेज हुई है तो मछली की बिक्री में भी 25 से 30 फीसदी का उछाल आया है। हालांकि कश्मीरी अभी तक मछली को तरजीह नहीं देते थे लेकिन उन्हें मजबूरन इसकी ओर मुढ़ना पड़ रहा है। 

टॅग्स :जम्मू कश्मीरईद
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