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Bihar Assembly Election 2025: सियासी चक्रव्यूह में घिरे तेजस्वी यादव, चुनौतियां कम होने के बजाय बजाय बढ़ती जा रही

By एस पी सिन्हा | Updated: September 21, 2025 14:48 IST

Bihar Assembly Election 2025: इस तरह एनडीए एक मजबूत गठबंधन और समीकरण के सहारे तेजस्वी यादव के अगुवाई वाले राजद को घेर रखा है।

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Bihar Assembly Election 2025: राजद नेता तेजस्वी यादव इस समय बिहार के सियासी चक्रव्यूह में घिरे दिखाई देने लगे हैं। ऐसे में तेजस्वी यादव की सत्ता पर काबिज होने की राह में कई चुनौतियां दिखाई देने लगे हैं। महागठबंधन में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर तेजस्वी यादव की सियासी चुनौतियां कम होने के बजाय बजाय बढ़ती जा रही हैं। कहा जाए तो जिस तरह महाभारत में अभिमन्यु घिरे थे, उसी तरह बिहार की सियासत में तेजस्वी यादव चक्रव्यूह में घिर गए हैं।

तेजस्वी यादव को एक तरफ तो एनडीए से मुकाबला करना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी लेकर प्रशांत किशोर तक से सवालों का जवाब देना पड़ रहा है। जबकि महागठबंधन की प्रमुख साझीदार कांग्रेस इसके लिए राजी नहीं हो रही है। 

वहीं, घर में भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। लालू प्रसाद यादव के द्वारा तेज प्रताप यादव को पार्टी और पद से बाहर किए जाने के बाद लगा था कि अब तेजस्वी की राह में कोई बाधा नहीं बचेगी। लेकिन तेज प्रताप के बाद अब बहन के तेवर भी बदलने लगे हैं। इस बीच महागठबंधन में कांग्रेस और दूसरे सहयोगी दलों की सीटों के लिए खड़े हो रहे बखेड़े अलग मुसीबत हैं।

तनातनी तो ऐसी दिख रही है कि महागठबंधन के अक्षुण्ण रहने पर भी संदेह होने लगा है। जबकि बिहार की सत्ता पर काबिज होने की उम्मीद लगाए तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती एनडीए भी है। वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अलग चुनौती बने हुए हैं। तेजस्वी ने आनन-फानन में जनहित की जितनी घोषणाएं की, उस पर नीतीश कुमार ने अपने अंदाज में अमल कर उनका सारा खेल बिगाड़ दिया है।

इस तरह तेजस्वी यादव चौतरफा सियासी चुनौतियों से घिरे हुए हैं। एक तरफ एनडीए के निशाने पर तेजस्वी हैं, तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर से भी उन्हें दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। इसके अलावा कांग्रेस ने भी तेजस्वी यादव की सियासी टेंशन बढ़ा रखी है। जबकि घर में बडे भाई तेजप्रताप के बाद अब बडी बहन रोहिणी आचार्या ने भी बगावत का बिगुल फूंक कर तजेस्वी यादव के रास्ते में मुश्किलें खडी कर दी है।

उधर, मुस्लिम सियासत के आक्रामक चेहरा माने जाने वाले असदुद्दीन ओवैसी बिहार में पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी की है। मुस्लिम बहुल वाले सीमांचल में ओवैसी ने 2020 के चुनाव में पांच सीटें जीतकर तेजस्वी यादव के सत्ता में वापसी करने की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया था।

मुस्लिम दबदबे वाले सीमांचल के इलाके की सीटों पर ओवैसी का सियासी आधार है और बिहार में मुस्लिम वोट राजद का परंपरागत रहा है, लेकिन एआईएमआईएम के चलते तेजस्वी यादव का गेम गड़बड़ाता हुआ नजर आ रहा है। बिहार विधानसभा उपचुनावों में ओवैसी अपनी उपस्थिति से राजद का खेल गोपालगंज सीट पर बिगाड़ चुके हैं।

इस बार के चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर ओवैसी ने महागठबंधन के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है, जिसमें ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवार होंगे। मुस्लिम प्रत्याशी के उतारने से सबसे ज्यादा चुनौती राजद की बढ़ने वाली है। इस तरह ओवैसी के उतरने से तेजस्वी का समीकरण फिर एक बार न बिगड़ जाए। 

वहीं, चुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर उतरे प्रशांत किशोर सबसे बड़ी चुनौती तेजस्वी यादव के लिए बनते जा रहे हैं। प्रशांत किशोर जन सुराज नाम से अपनी पार्टी बना ली है और 2025 के विधानसभा चुनाव पूरे दमखम के साथ लड़ने की तैयारी में हैं। इस तरह से पीके का सवाल जितना नीतीश कुमार को चुभता है, उससे ज्यादा तेजस्वी यादव को परेशान कर रहा है।

पीके अक्सर तेजस्वी को नौवीं फेल बताकर मजाक उड़ाते नजर आते हैं, तो साथ ही लालू प्रसाद यादव के बेटे होने का तंज कसते हैं। तेजस्वी की नजर उसी वोट बैंक पर है, जिस पर राजद खड़ी है। प्रशांत किशोर दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक पर नजर गढ़ाए हुए हैं, जिससे तेजस्वी यादव की सियासी टेंशन बढ़ रही है। 

इसी बीच बिहार में कांग्रेस इस बार अलग ही तेवर में नजर रही है। पिछले दो दशकों से कांग्रेस बिहार में राजद के सहारे राजनीति करती रही है, लेकिन इस बार लालू यादव की पकड़ से बाहर निकलकर अपनी खोए हुए सियासी आधार को पाना चाहती है। कांग्रेस की नजर दलित और मुस्लिम वोटों को साधने की है, जो राजद का कोर वोटबैंक माना जाता है। इसके अलावा सीट शेयरिंग को लेकर भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव के आधार पर बंटवारा चाहती है, लेकिन राजद बहुत ज्यादा देने के मूड में नहीं है।

कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारु ने मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर तेजस्वी यादव का नाम लेने से बचते चल रहे हैं। जबकि कांग्रेस के सहप्रभारी शाहनवाज आलम भी अलग ही राह पर हैं और बिहार में उपमुख्यमंत्री बनाने की मांग उठा रहे हैं। इसके अलावा युवा नेता कन्हैया कुमार बिहार की सियासत में सक्रिय हो गए हैं। राजद बिहार में कन्हैया के सक्रिय होने पर अभी तक अपना वीटो पावर लगा रखा था।

लेकिन अब कांग्रेस ने लालू यादव के परवाह किए बगैर उन्हें सक्रिय कर दिया है। कांग्रेस ने जिस तरह नजरें बदली हैं, वो तेवर राजद को परेशान कर रहे हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता साफ कह रहे हैं कि बिहार में कोई छोटा और बड़ा भाई नहीं है बल्कि बराबर हैं। 

उधर, तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती एनडीए है। नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए में जदयू, भाजपा, लोजपा(रा), जीतनराम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी शामिल है। इस तरह एनडीए एक मजबूत गठबंधन और समीकरण के सहारे तेजस्वी यादव के अगुवाई वाले राजद को घेर रखा है। ऐसे एमं बिहार का चुनावी मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है।

महागठबंधन में राजद और कांग्रेस सहित वामपंथी दल भी शामिल हैं, लेकिन एनडीए के निशाने पर तेजस्वी यादव रहते हैं। राजद को घेरने के लिए एनडीए लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल और राजनीति की याद दिलाकर घेरता हुआ नजर आता है, इसे काउंटर करना तेजस्वी यादव के लिए भी आसान नहीं रहता।

इस तरह से तेजस्वी अपने पिता के सियासी समीकरण एम-वाई से राजद को बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, तो एनडीए का जवाब देना आसान नहीं हो रहा है। ऐसे में चुनावी तपिश के बीच सियासी चक्रव्यूह में घिरे तेजस्वी यादव कैसे उससे बाहर निकल पाएंगे? इसपर सभी की निगाहें टिकी  हैं। अगर सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने में तेजस्वी यादव कामयाब रहते हैं तो सत्ता उनके नाम होगी, नही तो फिर से उन्हें विपक्ष की भूमिका निभाने को बाध्य होना पडेगा।

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