नयी दिल्ली, 18 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को बम्बई उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें उसने महाराष्ट्र में विशेष पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आने वाले 'गोवारी' समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) 'गोंड गोवारी' के रूप में घोषित किया था। न्यायालय ने यह कहते हुए यह फैसला दिया कि ये दोनों अलग-अलग जातियां हैं।
बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने 14 अगस्त, 2018 को माना था कि संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में एसटी के रूप में शामिल 'गोंड गोवारी' समुदाय 1911 से पहले विलुप्त हो गया था और इसका कोई पता नहीं चला। 1956 से पहले या तो महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश में इसके अस्तित्व का कोई सुराग नहीं मिला है।
उच्च न्यायालय ने घोषणा की थी कि 29 अक्टूबर, 1956 को 'गोंड गोवारी' जनजाति का अस्तित्व नहीं था, जब इसे महाराष्ट्र के संबंध में संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में एसटी के रूप में शामिल किया गया था और 'गोवारी' को अनुसूचित जनजाति के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की एक पीठ ने संवैधानिक प्रावधानों और उच्च न्यायालय के फैसले पर विस्तार से गौर किया और कहा कि यह पता लगाने के लिए उच्च न्यायालय में पर्याप्त साक्ष्य नहीं दिए गए कि क्या गोवारी समुदाय गोंड गोवारी समुदाय था और आरक्षण देने सहित सभी उद्देश्यों के लिए अनुसूचित जनजाति के रूप में उन्हें मान्यता देने की आवश्यकता है या नहीं।
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