सुप्रीम कोर्ट ईडी की पीएमएलए पर दिये फैसले की समीक्षा को हुआ तैयार, याचिका को किया सूचीबद्ध
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 22, 2022 02:18 PM2022-08-22T14:18:44+5:302022-08-22T14:23:29+5:30
देश की सर्वोच्च अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तारी, आरोपी की संपत्ति के कुर्की करने, आरोपी की या उसके परिसर की तलाशी लेने और जब्ती के संबंध में दिये गये अपने आदेश की समीक्षा के लिए तैयार हो गई है और याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की विवादित मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत होने वाली गिरफ्तारी के संबंध में दिये गये अपने हाल के आदेश की समीक्षा करने पर समहति जताई है। इस मामले में देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को कहा कि वो मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तारी, मनी लांड्रिंग के आरोपो में शामिल संपत्ति के कुर्की करने, संबंधित आरोपी की या उसके परिसर की तलाशी लेने और जब्ती के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को बरकरार रखने के अपने आदेश की समीक्षा करने की मांग को स्वीकार करते हुए उसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर रहा है।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, "ठीक है, हम इस विषय में दायर की गई समीक्षा याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हैं।" बीते 27 जुलाई को देश की सर्वोच्च अदालत ने ईडी के पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि जहां तक मनी लांड्रिंग का सवाल है तो यह दुनिया भर में आम धारणा है कि मनी लॉन्ड्रिंग वित्तीय कार्य प्रणाली के लिए एक "खतरा" साबित हो सकता है और इस कारण यह कोई "साधारण अपराध" की श्रेणी में नहीं आता है।
कोर्ट के सामने केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की इस स्वीकारोक्ति पर जोर देते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक ऐसा अपराध है जो न केवल बेईमान व्यापारियों द्वारा बल्कि आतंकी संगठनों द्वारा भी इस्तेमाल में लाया जाता है और इस नजरिये से लॉन्ड्रिंग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि पीएमएलए 2002 अधिनियम के तहत ईडी अधिकारी "पुलिस अधिकारी नहीं हैं" और प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत प्राथमिकी के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।
मामले में याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के सामने कहा था कि ईडी आरोपी की गिरफ्तारी के समय ईसीआईआर में दर्ज किये गये आरोपों के बारे में न तो बताती है और न की वो ईसीआईआर की कॉपी उन्हें देती है। जिसके जवाब में जस्टिस खानविलकर की बेंच ने कहा था कि यह ईडी अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करता है कि वो गिरफ्तारी के समय संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर का कॉपी दें या न दें।
इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने जस्टिस खानविलकर की कोर्ट में यह मुद्दा भी उठाया कि ईडी जिस तरह से पीएमएलए एक्ट के तहत मामले में कार्रवाई कर रही है और बाद में उसके जो रिजस्ट निकल रहे हैं, वो बेहद चौंकाने वाल हैं। इसके साथ ही पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए व्यक्तियों और अन्य संस्थाओं ने करीब 200 याचिकाओं में कहा था कि मौजूदा केंद्र सरकार ईडी का इस्तेमाल कर रही है ताकि वो अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान कर सके।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार ईडी का इस्तेमाल किसी हथियार की तरह कर रहा है और इसके जरिये वो अपने विरोधियों को निशाना बनाने का काम कर रहा है। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)