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सुखदेव जयंती: जब भगत सिंह को सुखदेव ने मारा था ऐसा ताना कि रो पड़ा था उनका दिल, पत्र लिखकर बयां किया था दर्द

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: May 15, 2018 10:36 IST

Sukhdev Birthday: सुखदेव, भगत सिंह के बेहद करीबी मित्र थे. एक ऐसी घटना हुई थी कि भगत सिंह से नाराज सुखदेव ने उनको दे दिया था ताना। इस ताने को सुनकर भगत सिंह बेहद दुखी हुए थे और उन्होंने लिखा था सुखदेव को एक बेहद भावुक पत्र। पढ़िए क्या लिखा था उन्होंने -

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आज शहीद सुखदेव की जयंती मनायी जा रही है. भगत सिंह आउटर सुखदेव की दोस्ती बहुत सराही जाती रही है लेकिन एक ऐसी घटना हुई थी जब सुखदेव ने भगत सिंह का दिल दुख दिया था. 

घटना तब की है जब भगत सिंह नेशनल कॉलेज में पढ़ा करते थे. एक सुन्दर सी लड़की भगत सिंह को पसंद करती थी और आते - जाते उनको देखकर मुस्कुरा दिया करती थी. भगत सिंह के करीब रहने के लिए उस लड़की ने भी क्रांतिकारियों का दल ज्वाइन कर लिया था. भगत सिंह के प्रति उस लड़की की भावना सबको पता थी, हालांकि भगत सिंह की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं था लेकिन इस बात को ध्यान में रखते हुए उनको असेंबली में बम फेंकने की योजना से यह कह कर अलग कर दिया गया था कि दल को उनकी ज्यादा ज़रुरत है इसलिए उनको इस योजना में जगह नहीं दी जा रही है.

यह बात सुखदेव को बिल्कुल भी पसंद नहीं आयी. उन्हें लगा एक लड़की भगत सिंह को उनके लक्ष्य से भटका रही है. भगत सिंह के बेहद करीबी मित्र सुखदेव ने इस बात को लेकर उनको ताना मारा कि उस लड़की का तुम पर ऐसा असर पड़ गया है कि अब तुम मरने से डरने लगे हो. सुखदेव के मुंह से यह बात सुनकर भगत सिंह का दिल भारी हो गया. उन्होंने दोबारा से मीटिंग बुलाई और असेंबली में बम फेंकने की ज़िम्मेदारी खुद को देने पर बेहद ज़ोर दिया।  

 8 अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहलेशायद 5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार के घर में उन्होंने सुखदेव को यह पत्र लिखा था जिसे शिव वर्मा ने उन तक पहुँचाया। यह 13 अप्रैल को सुखदेव के गिरफ़्तारी के वक्त उनके पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सबूत के तौर पर पेश किया गया। पढ़िए क्या लिखा था उन्होंने उस पात्र में अपने मित्र सुखदेव को - 

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प्रिय भाई,

जैसे ही यह पत्र तुम्हे मिलेगा, मैं जा चुका होगा-दूर एक मंजिल की तरफ। मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं। हमेशा से ज्यादा। मैं यात्रा के लिए तैयार हूं, अनेक-अनेक मधुर स्मृतियों के होते और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी, एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा और मुझ पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए- कमजोरी का। आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं। पहले से कहीं अधिक। आज मैं महसूस करता हूं कि वह बात कुछ भी नहीं थी, एक गलतफहमी थी। मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी। मैं कमजोर नहीं हूं। अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं।

भाई! मैं साफ दिल से विदा होऊंगा। क्या तुम भी साफ होगे? यह तुम्हारी बड़ी दयालुता होगी, लेकिन ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। गंभीरता और शांति से तुम्हें काम को आगे बढ़ाना है, जल्दबाजी में मौका पा लेने का प्रयत्न न करना। जनता के प्रति तुम्हारा कुछ कर्तव्य है, उसे निभाते हुए काम को निरंतर सावधानी से करते रहना।

सलाह के तौर पर मैं कहना चाहूँगा की शास्त्री मुझे पहले से ज्यादा अच्छे लग रहे हैं। मैं उन्हें मैदान में लाने की कोशिश करूँगा,बशर्ते की वे स्वेच्छा से, और साफ़ साफ़ बात यह है की निश्चित रूप से, एक अँधेरे भविष्य के प्रति समर्पित होने को तैयार हों। उन्हें दूसरे लोगों के साथ मिलने दो और उनके हाव-भाव का अध्यन्न होने दो। यदि वे ठीक भावना से अपना काम करेंगे तो उपयोगी और बहुत मूल्यवान सिद्ध होंगे। लेकिन जल्दी न करना। तुम स्वयं अच्छे निर्णायक होगे। जैसी सुविधा हो, वैसी व्यवस्था करना। आओ भाई, अब हम बहुत खुश हो लें।

खुशी के वातावरण में मैं कह सकता हूं कि जिस प्रश्न पर हमारी बहस है, उसमें अपना पक्ष लिए बिना नहीं रह सकता। मैं पूरे जोर से कहता हूं कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर हूं और जीवन की आनंदमयी रंगीनियों ओत-प्रोत हूं, पर आवश्यकता के वक्त सब कुछ कुर्बान कर सकता हूं और यही वास्तविक बलिदान है। ये चीजें कभी मनुष्य के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह मनुष्य हो। निकट भविष्य में ही तुम्हें प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाएगा।

किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए एक बात सोचनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूँ – हाँ, यह मेजिनी था। तुमने अवश्य ही पढ़ा होगा की अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालने वाली हार, मरे हुए साथियों की याद वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक ही पत्र से वह, यही नहीं कि किसी एक से मजबूत हो गया, बल्कि सबसे अधिक मजबूत हो गया।

जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाए एक आवेग के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है। प्यार अपने आप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है। प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है। सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता। वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब?

हाँ, मैं यह कह सकता हूँ कि एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाये रख सकते हैं। मैं यहाँ एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ की जब मैंने कहा था की प्यार इंसानी कमजोरी है, तो यह एक साधारण आदमी के लिए नहीं कहा था, जिस स्तर पर कि आम आदमी होते हैं। वह एक अत्यंत आदर्श स्थिति है, जहाँ मनुष्य प्यार-घृणा आदि के आवेगों पर काबू पा लेगा, जब मनुष्य अपने कार्यों का आधार आत्मा के निर्देश को बना लेगा, लेकिन आधुनिक समय में यह कोई बुराई नहीं है, बल्कि मनुष्य के लिए अच्छा और लाभदायक है। मैंने एक आदमी के एक आदमी से प्यार की निंदा की है, पर वह भी एक आदर्श स्तर पर। इसके होते हुए भी मनुष्य में प्यार की गहरी भावना होनी चाहिए, जिसे की वह एक ही आदमी में सिमित न कर दे बल्कि विश्वमय रखे।

मैं सोचता हूँ,मैंने अपनी स्थिति अब स्पष्ट कर दी है.एक बात मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की क्रांतिकारी विचारों के होते हुए हम नैतिकता के सम्बन्ध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धारणा नहीं अपना सकते। हम बढ़-चढ़ कर बात कर सकते हैं और इसे आसानी से छिपा सकते हैं, पर असल जिंदगी में हम झट थर-थर कांपना शुरू कर देते हैं।

मैं तुम्हे कहूँगा की यह छोड़ दो। क्या मैं अपने मन में बिना किसी गलत अंदाज के गहरी नम्रता के साथ निवेदन कर सकता हूँ की तुममे जो अति आदर्शवाद है, उसे जरा कम कर दो। और उनकी तरह से तीखे न रहो, जो पीछे रहेंगे और मेरे जैसी बिमारी का शिकार होंगे। उनकी भर्त्सना कर उनके दुखों-तकलीफों को न बढ़ाना। उन्हें तुम्हारी सहानभूति की आवशयकता है।

क्या मैं यह आशा कर सकता हूं कि किसी खास व्यक्ति से द्वेष रखे बिना तुम उनके साथ हमदर्दी करोगे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है? लेकिन तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते जब तक तुम स्वयं उस चीज का शिकार न बनो। मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं? मैं बिल्कुल स्पष्ट होना चाहता था। मैंने अपना दिल साफ कर दिया है।

तुम्हारी हर सफलता और प्रसन्न जीवन की कामना सहित,

तुम्हारा भाईभगत सिंह        

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