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अध्ययन ने बादल फटने के जंगल की आग से संबंध के दिए संकेत

By भाषा | Updated: June 29, 2021 21:37 IST

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नयी दिल्ली, 29 जून हाल में हुए एक अध्ययन में बादल की छोटी बूंदों के बराबर छोटे कणों जिन पर जल वाष्प संघनित होकर बादल बनती है और जंगल की आग के बीच संबंध पाया गया है।

बादल संघनन केंद्रक (सीसीएन) कहे जाने वाले ऐसे कणों की मात्रा जंगल की आग की घटनाओं से जुड़ी चोटियों पर पाई गईं।

हेमवती नंदन बहुगुणा (एचएनबी) गढ़वाल विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,कानपुर के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से सीसीएन के सक्रिय होने को मापा और ऊंचाई पर बादल बनने पर इसके प्रभाव और विभिन्न मौसमी परिस्थितियों के प्रभाव में स्थानीय मौसम प्रभाव की जटिलताओं का आकलन किया। वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय के पारितंत्र के रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में मौसम की विभिन्न स्थिति के प्रभाव में अधिक ऊंचाई वाले बादलों के निर्माण और स्थानीय मौसम की घटना की जटिलता पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया।

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के स्वामी रामतीर्थ परिसर के हिमालयी बादल वेधशाला से अति प्राचीन हिमालयी क्षेत्र के सीसीएन काउंटर से छोटी बूंद मापक प्रौद्योगिकी (डीएमटी) से सीसीएन को मापा गया जो अति संतृप्ति (एसएस) की मौजूदगी में कोहरे या बादल के तौर पर सक्रिय या बढ़ सकता है।

यह प्रेक्षण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम प्रभाग के तहत वित्तपोषित परियोजना के तहत किया गया और इसके लिये एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय और आईआईटी कानपुर ने मिलकर काम किया। इसके तहत दैनिक, मौसमी और मासिक आधार पर सीसीएन की विभिन्नता की जानकारी दर्ज की गई।

‘एटमॉस्फीयरिक एनवायरमेंट’ पत्रिका में प्रकाशित पहला अध्ययन यह दिखाता है कि सीसीएन की उच्चतम सांद्रता भारतीय उपमहाद्वीप में अत्याधिक वनाग्नि की गतिविधियों से जुड़ी हुई थी। लंबी दूरी के परिवहन और स्थानीय आवासीय उत्सर्जन जैसी कई अन्य तरह की घटनाएं भी जंगल की आग की घटनाओं से प्रबल रूप से जुड़ी थीं।

सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग ने कहा कि यह अध्ययन, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के आलोक सागर गौतम के नेतृत्व में किया गया और आईआईटी, कानपुर के एसएन त्रिपाठी के साथ विश्वविद्यालय के अभिषेक जोशी, करण सिंह, संजीव कुमार, आरसी रमोला इसके सह लेखक हैं। इस अध्ययन से हिमालय के इस क्षेत्र में बादल फटने, मौसम के पूर्वानुमान और जलवायु परिवर्तन की स्थिति के जटिल तंत्र की समझ में सुधार करने में मदद मिल सकती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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