NRC: असम में 15 दस्तावेज देने के बाद भी विदेशी हो गई जाबेदा, अब सुप्रीम कोर्ट में दिखाएगी कागज, कानूनी लड़ाई में हार गई सबकुछ
By अनुराग आनंद | Updated: February 19, 2020 09:23 IST2020-02-19T09:23:28+5:302020-02-19T09:23:28+5:30
जाबेदा को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने कागजात दिखाने होंगे। जानें किस तरह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद जाबेदा ने अपनी जमीन समेत सबकुछ खो दिया है।

एनआरसी
असम में एनआरसी लागू होने के बाद इस लिस्ट से जाबेदा का नाम बाहर हो गया। जाबेदा अकेली नहीं है जिसके इस लिस्ट से नाम बाहर है बल्कि उसके आस-पास ऐसे सैकड़ों लोग हैं। लेकिन, जाबेदा का केस अहम इसलिए है क्योंकि जाबेदा ने 15 दस्तावेज जमा किए थे, यह साबित करने के लिए की वह भारतीय है। इसके बाद भी एनआरसी लिस्ट में उसका नाम नहीं आया था।
इसके बाद अब जाबेदा को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने कागजात दिखाने होंगे। जानें किस तरह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद जाबेदा ने सबकुछ खो दिया है।
बीमार पति, तीन बेटियां, 50 साल उम्र फिर भी नहीं हारी हिम्मत
एनडीटीवी रिपोर्ट की मानें तो असम में रहने वाली एक 50 वर्षीय महिला जो बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को पाल पा रही है, वह खुद को भारतीय नागिरक साबित करने की लड़ाई अकेले लड़ रही है। ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित की गईं जाबेदा बेगम हाईकोर्ट में अपनी लड़ाई हार चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट उनकी पहुंचे से दूर दिख रहा है। जबेदा गुवाहाटी से लगभग 100 किलोमीटर दूर बक्सा जिले में रहती है।
वह अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य हैं। उनके पति रजाक अली लंबे समय से बीमार हैं। दंपति की तीन बेटियां थीं, जिनमें से एक की दुर्घटना में मृत्यु हो गई और एक अन्य लापता हो गई। सबसे छोटी अस्मिना पांचवीं कक्षा में पढ़ती है। जाबेदा अस्मिना के भविष्य को लेकर ज्यादा परेशान रहती है. उसकी कमाई का ज्यादात्तर हिस्सा उसकी कानूनी लड़ाई में खर्च हो जाता है, ऐसे में उसकी बेटी को कई बार भूखे ही सोना पड़ता है। जाबेदा का कहना है, 'मुझे चिंता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा? मैं खुद के लिए उम्मीद खो चुकी हूं।'
भारतीय होने के लिए जाबेदा ने लड़ी कानूनी लड़ाई
बता दें कि कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘बैंक खातों का विवरण, पैन कार्ड और भूमि राजस्व रसीद जैसे दस्तावेजों का इस्तेमाल नागरिकता साबित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।’ जबकि असम प्रशासन द्वारा स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में भूमि और बैंक खातों से जुड़े दस्तावेजों को रखा गया है। ज़ुबैदा बेगम द्वारा दायर याचिका पर गुवाहटी हाई कोर्ट ने कहा कि “यह कोर्ट पहले की कह चुकी है कि पैन कार्ड और बैंक खाते नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं। भूमि राजस्व भुगतान रसीद किसी व्यक्ति की नागरिकता को साबित नहीं करता है। इसलिए हमने पाया है कि न्यायाधिकरण ने अपने सामने रखे गए साक्ष्यों को सही ढंग से समझा है।”
कानूनी फीस के चक्कर में सब खो दिया-
जाबेदा के मामले में उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरण ने कहा कि महिला ने अपने पिता और पति की पहचान घोषित करने के लिए गांव के मुखिया द्वारा जारी किया एक प्रमाण पत्र समेत 14 दस्तावेज विदेशी न्यायाधिकरण को दिए थे लेकिन वह खुद को अपने परिवार से जोड़ने का कोई भी दस्तावेज दिखाने में नाकाम रही। बेगम पहले ही कानूनी फीस चुकाने के लिए तीन बीघा जमीन बेच चुकी हैं। अब वह 150 रुपये दिन में दूसरों की जमीन पर काम करती है।