कुछ न्यायिक फैसलों से प्रतीत होता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा है : उपराष्ट्रपति
By भाषा | Published: November 25, 2020 04:27 PM2020-11-25T16:27:45+5:302020-11-25T16:27:45+5:30
केवडिया (गुजरात), 25 नवंबर पटाखों पर अदालत के फैसले और न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इंकार करने का उदाहरण देते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने बुधवार को कहा कि कुछ फैसलों से प्रतीत होता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा है।
उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान के तहत परिभाषित अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत काम करने के लिए बाध्य हैं।
वह ‘‘विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण समन्वय - जीवंत लोकतंत्र की कुंजी’’ विषय पर अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 80वें सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। नायडू ने कहा कि तीनों अंग एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप किए बगैर काम करते हैं और सौहार्द बना रहता है।
उन्होंने कहा कि इसमें परस्पर सम्म्मान, जवाबदेही और धैर्य की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीमाएं लांघी गईं।
नायडू ने कहा कि ऐसे कई न्यायिक फैसले किए गए जिसमें हस्तक्षेप का मामला प्रतीत होता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘स्वतंत्रता के बाद से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय ने ऐसे कई फैसले दिए जिनका सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों पर दूरगामी असर हुआ। इसके अलावा इसने हस्तक्षेप कर चीजें ठीक कीं। लेकिन यदा-कदा चिंताएं जताई गईं कि क्या वे कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की बहस है कि क्या कुछ मुद्दों को सरकार के अन्य अंगों पर वैधानिक रूप से छोड़ दिया जाना चाहिए।’’
नायडू ने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि दिवाली पर पटाखों को लेकर फैसला देने वाली न्यायपालिका कॉलेजियम के माध्यम से जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इंकार कर देती है।
नायडू ने कहा, ‘‘कुछ न्यायिक फैसलों से प्रतीत होता है कि हस्तक्षेप बढ़ा है। इन कार्रवाइयों से संविधान द्वारा तय रेखाओं का उल्लंघन हुआ जिससे बचा जा सकता था।’’
नायडू ने कहा कि कई बार विधायिका ने भी रेखा लांघी है। इसे लेकर उन्होंने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चुनाव को लेकर 1975 में किए गए 39वें सविधान संशोधन का जिक्र किया।
विधायिका के कार्यों में आ रही अकसर बाधाओं पर चिंता जताते हुए नायडू ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर की ‘‘शालीनता, गरिमा और शिष्टाचार’’ को तभी बरकरार रखा जा सकता है जब तीन ‘‘डी’’ --बहस (डिबेट), चर्चा (डिसकस) और निर्णय (डिसाइड) का पालन किया जाए।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।