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कश्मीर और लद्दाख में बर्फबारी ने समय से पहले दी दस्तक, अब तक अधूरी हैं तैयारियां, सेना को भी हो सकती है परेशानी

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: October 3, 2023 14:45 IST

द्रास स्थित प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि चीन सीमा पर सैनिकों की तैनाती की कवायद में ही जुटे रहने के कारण वे करगिल व द्रास के नागरिकों के लिए सर्दी में की जाने वाली तैयारियां ही आरंभ नहीं कर पाए।

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ठळक मुद्देकश्मीर के साथ-साथ लद्दाख सेक्टर में बर्फ ने समय से बहुत पहले दस्तक दे दी हैकरगिल और द्रास के नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं सैनिकों को सर्दी से बचाने की खातिर तैयारी भी पूरी नहीं

जम्मू:  इस बार भी कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख सेक्टर में बर्फ ने समय से बहुत पहले दस्तक दे दी है। समयपूर्व बर्फबारी से करगिल और द्रास के नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। ऐसा ही हाल उन हजारों सैनिकों का भी है जो चीन सीमा पर चीन की बढ़त व घुसपैठ को रोकने की खातिर तैनात किए गए हैं। 

चिंता का कारण स्पष्ट है, न ही नागरिक व नागरिक प्रशासन कोई तैयारी कर पाया और न ही तैनात सैनिकों को सर्दी से बचाने की खातिर तैयारी पूरी की जा सकी है। अक्सर, नवम्बर 15 के बाद करगिल और द्रास समेत लद्दाख के पहाड़ों पर बर्फबारी आरंभ होती थी। लेकिन इस बार भी पिछले हफ्ते ही इसकी दस्तक ने सभी को चौंकाया है। द्रास स्थित प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि चीन सीमा पर सैनिकों की तैनाती की कवायद में ही जुटे रहने के कारण वे करगिल व द्रास के नागरिकों के लिए सर्दी में की जाने वाली तैयारियां ही आरंभ नहीं कर पाए। नतीजतन, राजमार्ग के बंद होने की चिंता के कारण अब सारा भार वायुसेना पर आ पड़ेगा।

यही दशा लद्दाख में चीन सीमा पर तैनात किए गए दो लाख के करीब भारतीय जवानों के प्रति भी है जिनके लिए सर्दियों के लिए आवश्यक सामान की आपूर्ति का काम दावों के बावजूद अभी भी अधूरा है। सप्लाई के साथ साथ भयानक सर्दी से बचाने की खातिर मुहैया करवाये जाने वाले कपड़े इत्यादि की अभी भी कमी महसूस की जा रही है जो सभी तक नहीं पहुंच पाए हैं। हालांकि इस परिस्थिति का सामना करने की खातिर सेना ने अब अग्रिम चौकिओं पर अधिक से अधिक जवानों को रोटेशन के आधार पर तैनात करना आरंभ किया है। ऐसा ही चीन भी कर रहा है जो प्रत्येक चौकी में जवानों को तीन से चार दिन ही तैनात करते हुए फिर उन्हें बैरकों में वापस बुला रहा है।

सूत्र मानते हैं कि लद्दाख में सर्दी अपने भयानक रूप में दस्तक दे चुकी है और ऐसे में दोनों मुल्कों की सेनाएं अपने जवानों का मनोबल बढ़ाने की कोशिश में जुटी हैं। अधिकारी कहते  हैं  कि प्रकृति के स्वरूप को लेकर वे कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं। वे इसका खामियाजा सियाचिन हिमखंड में शुरू के सालों में भुगत चुके हैं जब 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने इसे अपने कब्जे में लिया था। यह भी सच है कि आज भी सियाचिन हिमखंड में सबसे अधिक नुक्सान कुदरत के कारण सहन करना पड़ रहा है और भारतीय सेना चीन सीमा पर इसे दोहराना नहीं चाहती है।

ऐसे हालात में सेना के वरिष्ठ अधिकारी अग्रिम इलाकों का दौरा करने के साथ सर्दियों का सामना करने के लिए हो रही तैयारियों का भी जायजा ले रहे हैं। लद्दाख की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली सेना की नार्दन कमान के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने सियाचिन ग्लेशियर का दौरा कर वहां तैनात जवानों की हिम्मत बढ़ाई। जवान अत्याधिक ठंड में पाकिस्तान सेना के सामने सीना ताने खड़े हैं।

याद रहे कि सर्दियों के महीनों में बर्फ में जम गए लद्दाख के अग्रिम इलाकों में अत्याधिक ठंड में जीवन और भी कठिन हो जाता है। ऐसे हालात में भी सेना के जवानों की पेट्रोलिंग जारी रहती है। इस समय लद्दाख में सेना पेट्रोल, डीजल से लेकर अपनी जरूरत का सारा सामान स्टोर कर सर्दियों का सामना करने की तैयारी कर रही है। लद्दाख में इस समय बड़े पैमाने पर सेना की ऑपरेशनल तैयारियां चल रही हैं। पिछले डेढ़ महीने के दौरान भारतीय सेना लद्दाख में दो युद्धाभ्यास कर अपनी ऑपरेशनल तैयारियों को धार दे चुकी है।

 

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