सियाचिन: दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल, 38 साल पहले जहां हुआ भारत-पाक सेना का आमना-सामना

By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 12, 2022 03:32 PM2022-04-12T15:32:28+5:302022-04-12T15:36:46+5:30

यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है जहां होने वाली जंग बेमायने है क्योंकि लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता।

Siachen Glacier World's highest battlefield | सियाचिन: दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल, 38 साल पहले जहां हुआ भारत-पाक सेना का आमना-सामना

सियाचिन: दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध स्थल, 38 साल पहले जहां हुआ भारत-पाक सेना का आमना-सामना

Highlights13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत से पाक सेना को पीछे धकेलादुनिया का सबसे खर्चीला युद्ध मैदान है सियाचिन

जम्मू: दुनिया के सबसे ऊँचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह है कि इस युद्धस्थल पर भारत व पाक की सेनाओं को आज 13 अप्रैल को 38 साल हो गए हैं बेमायने की जंग को लड़ते हुए। यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है जहां होने वाली जंग बेमायने है क्योंकि लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता। 

इस बिना अर्थों की लड़ाई के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है जिसने अपने मानचित्रों में पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा को एलओसी के अंतिम छोर एनजे-9842 से सीधी रेखा खींच कर कराकोरम दर्रे तक दिखाना आरंभ किया था। चिंतित भारत सरकार ने तब 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत आरंभ कर उस पाक सेना को इस हिमखंड से पीछे धकेलने का अभियान आरंभ किया जिसके इरादे इस हिमखंड पर कब्जा कर नुब्रा घाटी के साथ ही लद्दाख पर कब्जा करना था।

13 अप्रैल ही के दिन 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र बलों ने अभियान छेड़ा था। इसे ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे।

आपरेशन मेघदूत के 38 साल बाद आज भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा है। यह विजय भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं। ये ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानि पूरे 18 साल तक। 

भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक दूसरे के सामने डटी रहीं। जीत भारत की हुई। आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है। इस अभियान में भारत के करीब एक हजार जवान शहीद हो गए थे। हर रोज सरकार सियाचीन की हिफाजत पर करोड़ो रुपये खर्च आती है।

यह उत्तर पश्चिम भारत में काराकोरम रेंज में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर 76.4 किमी लंबा है और इसमें लगभग 10,000 वर्ग किमी विरान मैदान शामिल हैं। सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है। 

ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती। चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था। सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है।

भारत सरकार ने इसके बाद कभी भी सियाचिन हिमंखड से अपनी फौज को हटाने का इरादा नहीं किया क्योंकि पाकिस्तान इसके लिए तैयार ही नहीं है। नतीजतन आज जबकि इस हिमखंड पर सीजफायर ने गोलाबारी की नियमित प्रक्रिया को तो रूकवा दिया है पर प्रकृति से जूझते हुए मौत की आगोश में जवान अभी भी सो रहे हैं, पाकिस्तान सेना हटाने को तैयार नहीं है।

Web Title: Siachen Glacier World's highest battlefield

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