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अदालत में दस साल से लटकी है जिनकी जमानत उनपर सर्वोच्च न्यायालय का कड़ा रुख, HC से कहा- दो हफ्ते में लें एक्शन नहीं तो हम लेंगे फैसला

By अनिल शर्मा | Updated: July 26, 2022 12:26 IST

हाईकोर्ट की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, आपराधिक अपीलों के 853 मामले लंबित हैं, जहां हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने 10 साल से अधिक समय जेल में बिताया है।

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ठळक मुद्दे शीर्ष अदालत की पीठ ने राज्य को लंबित मामलों को निपटाने के लिए दो सप्ताह का समय दिया हैसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेरे लिए चिंता कि विषय है कि 10 साल और 14 साल से अपील लंबित हैं

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने दशकों से लंबित मामलों को लेकर नाराजगी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को साफ-साफ कहा है कि 10 सालों से अधिक समय से जेल में बंद कैदियों को या तो जमानत पर या समय से पहले रिहा करने का फैसला करने के लिए सिर्फ दो हफ्ते का समय है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आप लंबित आवेदनों पर विचार करने में विफल रहते हैं तो हम 'जमानत देने के एक साथ कई आदेश पारित कर करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी फटकार लगाई। 

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, "यदि आप इसे संभालने में असमर्थ हैं, तो हम इसे अपने ऊपर ले लेंगे और इसे संभाल लेंगे।" अदालत ने अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से यह जानकारी मांगी कि उनमें से कितने एकल अपराध के मामले हैं जिन पर जमानत के लिए प्राथमिकता के आधार पर विचार किया जा सकता है। प्रसाद ने कहा कि राज्य को अभी सूची की जांच करनी है और एकल अपराध अपराधियों को कई मामलों का सामना करने वालों से अलग करना है।

मामले को आगे की सुनवाई के लिए 17 अगस्त को पोस्ट करते हुए पीठ ने कहा, "राज्य को दो सप्ताह का समय दिया जाता है। 853 ऐसे मामले हैं जहां व्यक्ति 10 वर्षों से ज्यादा समय से हिरासत में है और उनकी अपीलों पर निर्णय नहीं लिया गया है। पीठ ने कहा कि 853 मामलों की क्रम संख्या, हिरासत में बिताई गई अवधि और इनमें से किन मामलों में राज्य जमानत का विरोध कर रहा है और इसके आधार के साथ एक सूची दायर की जाए।

इलाहाबाद और लखनऊ की पीठों में लंबित मामलों की भारी संख्या को देखते हुए और उनपर कोई निर्णय नहीं लेने को लेकर शीर्ष अदालत ने सख्त लहजे में कहा, “मानदंड निर्धारित करने के बाद, इसे निपटाने में सप्ताह नहीं लगने चाहिए। …नहीं तो हम जमानत देने के लिए एक साथ व्यापक आदेश पारित करेंगे।”

9 मई को मामले की आखिरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को राज्य और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सूचित किया गया था कि उत्तर प्रदेश की जेलों में 350 दोषियों की जमानत याचिका एक दशक से अधिक समय से लंबित है और 159 ऐसे हैं जिन्हें जेल में 15 साल से अधिक समय से रखा गया है। 

पिछले हफ्ते, उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत में एक और स्थिति रिपोर्ट दायर की, जिसमें बताया गया कि अप्रैल में पहले हलफनामा दाखिल करने के समय से 17 जुलाई तक 350 में से केवल 62 जमानत आवेदनों पर फैसला होना बाकी है। रिपोर्ट में कहा गया कि  इस अवधि के दौरान 232 ताजा जमानत आवेदन दायर किए गए हैं।

हाईकोर्ट की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, आपराधिक अपीलों के 853 मामले लंबित हैं, जहां हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने 10 साल से अधिक समय जेल में बिताया है। जेलों में भीड़ कम करने के लिए, पीठ ने राज्य को 60 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के लिए स्थायी पैरोल पर विचार करने की अनुमति दी।

सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश सोमवार को सुलेमान नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका पर पारित किए जो 12 साल से जेल में था और उसकी आपराधिक अपील पर सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय में कोई पीठ उपलब्ध नहीं थी। याचिकाकर्ता ने अपने से भी बदतर अन्य कैदियों के मामले की ओर इशारा करते हुए राज्य की जेलों की गंभीर वास्तविकता को उजागर किया, जो बिना जमानत के 15 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं।

पिछले आदेश में, पीठ ने कहा था, "हमारे लिए चिंता का विषय ऐसे मामले हैं जिनकी अपील 10 साल और 14 साल से लंबित हैं, जहां जमानत आवेदन भी लंबित हैं और उनमें से कुछ जमानत आवेदन लंबित होने के बावजूद भी कैद में हैं। हो सकता है कि उनका निपटारा कर दिया गया हो।" 

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