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Saharanpur Lok Sabha Seat: सहारनपुर पर त्रिकोणात्मक संघर्ष, जानिए समीकरण और 2019 में किस दल ने मारी थी बाजी, 2024 में क्या माहौल

By राजेंद्र कुमार | Published: March 16, 2024 6:10 PM

Saharanpur Lok Sabha Seat 2024: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवारों की जीत हार को लेकर चिंता कर रहे हैं.

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ठळक मुद्देगांवों में फैल रही बीमारी, बिजली, पानी, सिंगल रेल लाइन सहारनपुर की बड़ी समस्याएं हैं. सहारनपुर के बासमती चावल की खुशबू खाने का जायका बदल देती है. सियासी स्वाद ध्रुवीकरण तय कर रहा है.

Saharanpur Lok Sabha Seat 2024: लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया. उत्तर प्रदेश में सात चरणों में मतदान होगा.पहले चरण में 19 अप्रैल को पश्चिम उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, कैराना सहित आठ संसदीय सीटों पर मतदान होगा. यूपी में लोकसभा सीटों के क्रमांक पर नजर डालें तो नंबर एक पर सहारनपुर संसदीय सीट का नाम दर्ज है. इस सीट की बात करते ही, लकड़ी की नक्काशी वाले खूबसूरत फर्नीचर दिमाग में कौंधने लगते है. मगर फर्नीचर की खूबसूरती के पीछे का स्याह सच किसी से छिपा नहीं है. ऊबड़-खाबड़ सड़कें, गांवों में फैल रही बीमारी, बिजली, पानी, सिंगल रेल लाइन सहारनपुर की बड़ी समस्याएं हैं. लेकिन इस समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय यहां के लोग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवारों की जीत हार को लेकर चिंता कर रहे हैं.

सहारनपुर के बासमती चावल की खुशबू खाने का जायका बदल देती है. लेकिन इस समय यहां का सियासी स्वाद ध्रुवीकरण तय कर रहा है. एक दशक से यहां की राजनीति इसी धुरी पर घूमती नजर आ रही है. आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भी यहां की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही बन रही है. कांग्रेस के नेता इमरान मसूद यहां से चुनाव मैदान में हैं.

उनके नाम का ऐलान अभी नहीं हुआ है लेकिन कांग्रेस-सपा गठबंधन के वही इस सीट से उम्मीदवार होंगे यह ऐलान हो चुका है. जिसके बाद से इमरान मसूद अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं. भाजपा ने भी राघव लखनपाल को चुनाव मैदान में उतार दिया है, वह  वर्ष 2014 में इस सीट से चुनाव जीते थे. बीते लोकसभा चुनाव में राघव लखनपाल सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार हाजी फजलुर्रहमान से चुनाव हार गए थे.

बसपा ने मौजूदा सांसद फजलुर रहमान का टिकट काटकर माजिद अली को प्रभारी बनाया है. पार्टी के कोर दलित वोटों के साथ मुस्लिम चेहरे की जमीनी पकड़ पर बसपा की उम्मीद इस सीट पर टिकी हैं. फिलहाल इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस, भाजपा और बसपा उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष होता दिख रहा है.

सीट का इतिहास

इस सीट का इतिहास देखें तो यहां सबसे अधिक छह बार कांग्रेस को जीत मिली है, लेकिन, यह उन दिनों की बात है जब कांग्रेस के अच्छे दिन चल रहे थे. आखिरी बार वर्ष 1984 में उसे यहां जीत नसीब हुई थी. शहर के लोगों का कहना है कि 90 के दशक के बाद मंडल और कमंडल की टकराहट में कांग्रेस की उम्मीदें चूर होती गईं.

वर्ष 1999, 2009 और 2019 में तीन बार बसपा इस सीट पर काबिज हुई तो जबकि वर्ष 1996, 1998 और 2014 में यहां भाजपा को जीत हासिल हुई. दलित मुस्लिम बाहुल्य वाली इस सीट से बसपा के संस्थापक कांशीराम वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में यहां से न केवल भाजपा के नकली सिंह हार गए थे, बल्कि तीसरे नंबर पर चले गए थे.

दूसरे नंबर पर कांग्रेस के रशीद मसूद थे, जिनका यहां की सियासत में लगभग चार दशक तक प्रभावी दखल रहा है. रशीद चार बार जनता दल व एक बार सपा से इसी सीट से संसद पहुंचे. हारने पर भी चार बार राज्यसभा के जरिए एंट्री हुई. हालांकि, 2013 में मेडिकल एडमिशन घोटाले में चार साल की सजा होने के बाद उनकी सदस्यता चली गई थी.

यहां के लोगों का कहना है कि वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों ने वेस्ट यूपी के सामाजिक समीकरण व माहौल को बदल दिया. सहारनपुर की सियासी तासीर भी इससे अछूती नहीं रही. चुनावों के दौरान कांग्रेस नेता इमरान मसूद का भाजपा के पीएम चेहरे नरेंद्र मोदी पर दिया गया बोटी-बोटी का बयान टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.

भाजपा ने यहां फिर डेढ़ दशक बाद कमल खिला दिया. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन ने विपक्ष के वोटों के बिखराव को कम किया और नजदीकी मुकाबले में 22 हजार वोटों से सीट बसपा के खाते में गई. लेकिन, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हवा यहां अब भी सियासत को गर्म-सर्द कर रही है. फिलहाल सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा के सांसदों को जीतने वाले इस शहर के 25 लाख से अधिक मतदाताओं को अभी भी ऐसे सांसद का इंतजार है जो यहां की जमीनी समस्याओं का समाधान कराए.

मुस्लिम-दलित सियासत का केंद्र

सहारनपुर को मुस्लिम-दलित सियासत का केंद्र माना जाता है. इस्लामिक शिक्षा का सबसे अहम केंद्र देवबंद भी इसी सीट का हिस्सा है, जो अक्सर चर्चा में रहता है. यहां एक तिहाई वोटर अल्पसंख्यक वर्ग से आते हैं तो वोटर लिस्ट में 15% से अधिक दलितों की हिस्सेदारी है. सवर्ण भी लगभग इतने ही हैं. पिछड़ी जातियों में गुर्जर, सैनी आदि भी प्रभावी असर रखते हैं.

सहारनपुर की स्थापना 1340 के आस-पास हुई और इसका नाम एक राजा सहारन पीर के नाम पर पड़ा. सहारनपुर की काष्ठ कला और देवबंद दारुल उलूम विश्वपटल पर सहारनपुर को अलग पहचान दिलाते हैं. प्राचीन शाकुम्भरी देवी सिद्धपीठ मंदिर, देवबंद का मां बाला सुंदरी मंदिर, नगर में भूतेश्वर महादेव मंदिर, कंपनी बाग आदि यहां के प्रसिद्ध स्थल हैं.

बासमती चावल, आम और चीनी मिलों के लिए भी सहारनपुर प्रसिद्ध है. शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसे इस जिले के लकड़ी उद्योग का किसी जमाने  में देश-दुनिया में डंका बजता था, मगर, मूलभूत सुविधाओं के अभाव में वुड कार्विंग उद्योग अपनी पहचान खोता जा रहा है. अब भी यहां तमाम गांव ऐसे हैं जहां बिजली नहीं पहुंची. बरसात में घाड़ इलाके के गांवों में बाढ़ की चिंता सताने लगती है.

हाईवे से लेकर गांव तक की सड़कें बेहद दयनीय हालत में हैं. तीन राज्यों की सीमा से सटे जिले की हालत किसी टापू से कम नहीं है. सहारनपुर-दिल्ली वाया शामली मार्ग, सहारनपुर-मेरठ मार्ग की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. कई गांव ऐसे हैं, जहां हर बरसात में बीमारी कहर बरपाती है.  इसके बाद भी चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां विकास के बजाय जाति और धर्म को मुद्दा बनाने में जुट जाती हैं. विकास के नाम पर वादे-दावे तो खूब गूंजते हैं, मगर चुनाव बाद मतदाता खुद को ही कोसता नजर आता है.

वर्ष 2019 का चुनाव परिणाम

हाजी फजलुर रहमान, बसपा : 514,139राघव लखनपाल, भाजपा : 4,91,722इमरान मसूद, कांग्रेस : 2,07,068

वर्ष 2014 का चुनाव परिणाम

राघव लखनपाल, भाजपा : 4,72,999इमरान मसूद, कांग्रेस : 4,07,909जगदीश राणा, बसपा : 2,35,033शाजान मसूद, सपा : 52,765

टॅग्स :लोकसभा चुनाव 2024सहारनपुरBJPउत्तर प्रदेशसमाजवादी पार्टीबीएसपीकांग्रेसमायावतीअखिलेश यादवनरेंद्र मोदीयोगी आदित्यनाथ
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