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रिसर्च: नगालैंड के चमगादड़ों में मिले इबोला विषाणु होने के संकेत, लोगों के संक्रमित होने खतरा

By भाषा | Updated: November 1, 2019 19:40 IST

शोधकर्ताओं ने शोधपत्र में लिखा, ‘‘पूर्वोत्तर भारत के राज्य नगालैंड में कई समुदाय कम से कम सात पीढ़ियों से भोजन एवं पारंपरिक दवाओं के लिए चमगादड़ों का शिकार कर रहे हैं। ये शिकारी राउसेट्टस लेसचेनउल्टी और इयोनीकेटरिस स्पेलिया प्रजाति के चमगादड़ों के लार, खून और मल के संपर्क में आते हैं।’’

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ठळक मुद्देनगालैंड के कुछ इलाकों में पाए जाने वाले चमगादड़ ‘फिलोवायरसेस’ परिवार के विषाणुओं के वाहक हो सकते हैं। इस श्रेणी में इबोला एवं मारबर्ग विषाणु शामिल हैं और इनका शिकार करने वाले लोगों को इनसे संक्रमित होने का खतरा है।

हालिया अध्ययन में आशंका जताई गई है कि नगालैंड के कुछ इलाकों में पाए जाने वाले चमगादड़ ‘फिलोवायरसेस’ परिवार के विषाणुओं के वाहक हो सकते हैं। इस श्रेणी में इबोला एवं मारबर्ग विषाणु शामिल हैं और इनका शिकार करने वाले लोगों को इनसे संक्रमित होने का खतरा है।

सिंगापुर स्थित ड्यूक नेशनल यूनिवर्सिटी के इयान मेंडेनहाल, बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय जैव विज्ञान केंद्र के पायलट डोविह और उमा रामकृष्णन सहित कई अनुसंधानकर्ताओं ने नगालैंड के मिमी गांव में लोगों द्वारा शिकार किए गए चमगादड़ों के खून के नमूनों की जांच की। ‘पीएलओएस नेगलेक्टड ट्रॉपिकल डिजीज’ में गुरुवार रात को अनुसंधान के नतीजे प्रकाशित किए गए। इसके मुताबिक कुछ चमगादड़ों के ‘फिलोवायरस’ के संपर्क में आने के संकेत मिले हैं।

शोधकर्ताओं ने शोधपत्र में लिखा, ‘‘पूर्वोत्तर भारत के राज्य नगालैंड में कई समुदाय कम से कम सात पीढ़ियों से भोजन एवं पारंपरिक दवाओं के लिए चमगादड़ों का शिकार कर रहे हैं। ये शिकारी राउसेट्टस लेसचेनउल्टी और इयोनीकेटरिस स्पेलिया प्रजाति के चमगादड़ों के लार, खून और मल के संपर्क में आते हैं।’’

शोधपत्र में इन खास इलाकों में समुदाय आधारित बेहतर निगरानी की सिफारिश की गई है ताकि भविष्य में संभावित महामारी को रोका जा सके। शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘‘हमें चमगादड़ों के खून में फिलोवायरस (उदाहरण के लिए इबोला विषाणु, मारबर्ग विषाणु और डियानलो विषाणु) की मौजूदगी का पता चला है जो पूर्वोत्तर में इनसानों (चमगादड़ शिकारियों) और चमगादड़ों में सक्रिय हो सकते हैं। अभी तक इलाके में इबोला बीमारी का कोई इतिहास नहीं है।’’

शोधकर्ताओं ने कहा कि मीमी गांव के 85 लोगों के खून की जांच की गई और उनमें से पांच के शरीर में इन विषाणुओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता मिली। सह शोधकर्ता इयान मेंडेनहाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को ई-मेल के जरिये दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘हमें चमगादड़ों में प्रतिरक्षी मिले जो तीन अलग तरह के फिलोवायरस के सतह पर मौजूद प्रोटीन से प्रतिक्रिया करते हैं जो इन विषाणुओं को पनपने से रोकता है और इस प्रकार अधिकतर प्रतिरक्षी बनते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एक संभवत: मेंगला विषाणु है जिसे नगालैंड से 800 किलोमीटर दूर चीन में पाया गया था और यह शिकार किए गए चमगादड़ की प्रजातियों में मिलते हैं। दो अन्य तरह के फिलोवायरस अब भी अज्ञात हैं।’’ हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्हें पुख्ता तौर पर चमगादड़ों में फिलोवायरस होने के सबूत नहीं मिले हैं। कारण बताते हुए मेंडेनहाल ने कहा कि यह चमगादड़ों से लिए गए नमूने कम होने, सीरम में विषाणु की कमजोर मौजूदगी, विषाणुओं की आनुवंशिक विविधता की वजह से भी संभव है कि परीक्षण में इनकी पुष्टि नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि हम इस बारे में अंजान हैं कि क्या ये विषाणु रोगकारी हैं या वे बिना किसी लक्षण चमगादड़ों में रहते हैं। हम लोगों की सेहत पर खतरे को विस्तार से समझने के लिए और अध्ययन कर रहे हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि पारिस्थितिक अवरोध सहित कुछ कारणों की वजह से यह बीमारी एशिया में नहीं फैली लेकिन चमगादड़-मानव के बीच संपर्क बढ़ने से इन बीमारियों के फैलने का खतरा है। गौरतलब है कि इबोला और मारबर्ग विषाणु से संक्रमित होने पर तेज बुखार और रक्तस्राव होता है जिससे कई अंग और धमनियां प्रभावित होती हैं और 50 फीसदी मामलों में व्यक्ति की मौत हो जाती है।

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