Ayodhya Dispute: क्या मोल्डिंग ऑफ रिलीफ से निकलेगा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का हल, जानें इसका प्रावधान
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 17, 2019 09:33 AM2019-10-17T09:33:45+5:302019-10-17T09:33:45+5:30
सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सीपीसी (सिविल प्रोसिजर कोड) की धारा 151 के तहत मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के अधिकार का इस्तेमाल करता है.
अयोध्या मामले पर 40 दिनों तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. 5 जजों की संविधान पीठ ने विवाद से जुड़े सभी पक्षों को 3 दिन के भीतर 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है, यानी मालिकाना हक किसी एक या दो पक्ष को मिल जाए तो बचे हुए पक्षों को क्या वैकल्पिक राहत मिल सकती है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बुधवार शाम 5 बजे सुनवाई खत्म करने के निर्देश दिए थे, लेकिन सभी पक्षों की दलीलें 4 बजे तक पूरी हो गईं. राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस मुद्दे पर 17 नवंबर से पहले फैसला आने की उम्मीद है, क्योंकि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई इस दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
शीर्ष अदालत ने शुरू में इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से सर्वमान्य समाधान निकालने का प्रयास किया था. अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित की थी लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सारे प्रकरण पर 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई करने का निर्णय किया.
विभिन्न पक्षकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बांटने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए अयोध्या में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था.
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ से क्या हासिल होगा
सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सीपीसी (सिविल प्रोसिजर कोड) की धारा 151 के तहत मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के अधिकार का इस्तेमाल करता है. आसान भाषा में ये कहा जा सकता है कि फैसले में दूसरे पक्ष को सांत्वना और सम्मान मिले. मोल्डिंग ऑफ रिलीफ ज्यादातर मालिकाना हक यानी टाइटल सूट बिक्री के मामलों में इस्तेमाल होता है.
इस प्रावधान के तहत कोर्ट इस बात को सुनिश्चित करता है कि याचिकाकर्ता ने जो मांग की है, उसे विकल्प के तौर पर क्या दिया जा सकता है. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का केस पूरी तरह जमीन के मालिकाना हक की लड़ाई है. विवादित 2.77 एकड़ जमीन के कई दावेदार हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने 2010 के फैसले में जमीन को तीन पक्षों में बांट दिया था और सभी पक्ष उस जमीन पर अपना पूरा दावा कर रहे हैं. कोर्ट ने मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर सभी पक्षों को लिखित नोट देने के लिए तीन दिन की मोहलत दी है.
यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड शर्तों पर विवादित जमीन पर दावा छोड़ने के लिए तैयार
कुछ खबरों में कहा गया है कि अयोध्या केस के एक प्रमुख पक्षकार यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता समिति को चिट्ठी लिखकर विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर दावा छोड़ने की बात कही है. दावा किया जा रहा है कि वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर राम मंदिर बनवाने पर सहमत है, बशर्तें सरकार अपने खर्च पर मुसलमानों के लिए मस्जिद के लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध करवा दे. हालांकि इस केस में केवल यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ही मुस्लिम पक्षकार नहीं है. 6 अन्य मुस्लिम पक्षों ने दावा ठोंक रखा है.